सच्ची प्रशंसा व्यक्ति को सकारात्मक नजरिया प्रदान करती है l यदि व्यक्ति को अपने सद्गुण नजर आने लगें तो वह स्वयं को सुधारने में लग जाता है l एक कथा है ----- महर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि बनना चाहते थे l इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया , ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और वरदान माँगा कि वे ब्रह्मर्षि का पद चाहते हैं l ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि यदि महर्षि वसिष्ठ आपको ब्रह्मर्षि कह दें , तो आपको ब्रह्मर्षि पद मिल जायेगा l महर्षि वसिष्ठ के प्रति विश्वामित्र जी के मन में बहुत क्रोध था , उन्होंने एक यज्ञ किया , जिसमें उन्होंने सबको आमंत्रित किया , लेकिन महर्षि वसिष्ठ को नहीं बुलाया l यह अपमान महर्षि वसिष्ठ के पुत्रों से सहन नहीं हुआ और वे सब महर्षि विश्वामित्र के समक्ष गए , तब विश्वामित्र ने उन सबको अपने तपोबल से नष्ट कर दिया l इस पर भी वे संतुष्ट नहीं हुए और एक दिन रात में छिपकर महर्षि वसिष्ठ को मारने पहुंचे , लेकिन देखा कि वे अपनी पत्नी अरुंधति से महर्षि विश्वामित्र के गुणों की प्रशंसा कर रहे थे l इतना सब कुछ करने के बाद महर्षि वसिष्ठ के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर वे बहुत लज्जित हुए और उनके समक्ष जाकर अपने कृत्यों के लिए उनसे क्षमा मांगी , अपनी गलतियाँ स्वीकारीं l महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें क्षमा कर दिया और ब्रह्मर्षि पद भी दे दिया l