26 March 2022

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा आचार्य जी  लिखते  हैं ------ " ध्वंस  के  संरजाम  तो  माचिस  की  एक  छोटी  सी  तीली  ,  आग  की  छोटी  चिन्गारी  भी    कर  सकती  है  l   पर  निर्माण  एक  झोंपड़े  का  भी  करना  हो  तो    ढेरों साधन  सामग्री   और  श्रमशीलों  की   कुशलता ,  तत्परता  चाहिए   l   मनुष्य  खोखला , उन्मादी   और  इस  स्तर   तक  अनाचारी  हो  गया  है   कि   उसे  नर -पशु  तक  नहीं  कहा    जा  सकता   ल मरघट  में  प्रेत   पिशाच   कोलाहल  करते   रहते  हैं   l   डरना  और  डराना   ही  उनका  प्रधान  कार्य  होता  है   l   मनुष्यों  में   एक बड़ी  संख्या   आज  ऐसे  ही  लोगों  की   दीख  पड़ती  है   l   भ्रष्ट  चिंतन  ही  दुष्ट  आचरण   का कारण  है   l  "  विचारों  का  परिष्कार  जरुरी  है  l  "