श्रीरामचरितमानस की इन पंक्तियों से अंग्रेज सबसे ज्यादा भयभीत थे l रामचरितमानस कोई सामान्य ग्रन्थ नहीं है , यह दिव्य और अद्भुत ग्रन्थ है l इसका जनमानस पर व्यापक प्रभाव था किन्तु ब्रिटिश साम्राज्यवाद को इससे षड्यंत्र की गंध आ रही थी l तुलसी बाबा की ये पंक्तियाँ --- 'पराधीन सपनेहु सुख नाहीं ' और ' नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं ' भारत के स्वाधीनता संग्राम में आग में घी डालने का काम करती थीं l उत्तर भारत में रामलीला का उपयोग राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए होता था l
रामचरितमानस आज भी जनमानस में उतनी ही लोकप्रिय है l भगवान राम का नाम लोगों की जबान पर हैं और समाज को जाग्रत करने वाली वे पंक्तियाँ उसमे हैं लेकिन अब लोगों ने उनसे प्रेरणा लेना बंद कर दिया l कहने को देश आजाद है लेकिन लोग अपने विकारों के अपनी कमजोरियों के गुलाम हैं l इसलिए सब तरफ अशांति है l अब कोई विदेशी यहाँ आकर दुष्कर्म , हत्या , लूटपाट जैसे अपराध नहीं करता l ये सारे घ्रणित कार्य अब देश के ही लोग कर लेते हैं और समाज में रौब से रहते हैं l यह पराधीनता समाज को आदिम युग की ओर ले जा रही है l मनुष्य अब पशु से भी बदतर राक्षस बन रहा है l
अब सबसे जरुरी है कि लोग भगवान राम को अपने ह्रदय में बैठाएं l
रामचरितमानस आज भी जनमानस में उतनी ही लोकप्रिय है l भगवान राम का नाम लोगों की जबान पर हैं और समाज को जाग्रत करने वाली वे पंक्तियाँ उसमे हैं लेकिन अब लोगों ने उनसे प्रेरणा लेना बंद कर दिया l कहने को देश आजाद है लेकिन लोग अपने विकारों के अपनी कमजोरियों के गुलाम हैं l इसलिए सब तरफ अशांति है l अब कोई विदेशी यहाँ आकर दुष्कर्म , हत्या , लूटपाट जैसे अपराध नहीं करता l ये सारे घ्रणित कार्य अब देश के ही लोग कर लेते हैं और समाज में रौब से रहते हैं l यह पराधीनता समाज को आदिम युग की ओर ले जा रही है l मनुष्य अब पशु से भी बदतर राक्षस बन रहा है l
अब सबसे जरुरी है कि लोग भगवान राम को अपने ह्रदय में बैठाएं l