13 May 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' दुर्लभ  है  मनुष्य  का  जीवन  पाना  l इससे  भी  दुर्लभ  है  , सम्पूर्ण  स्वस्थ  होना  l  यदि  यह  भी  संभव हो   तो  दुर्लभ  है  , शिक्षित  और  विचारशील  होना  l  यदि  किसी  को  यह  भी  मिल  जाए   तो  फिर  दुर्लभ  है  , विज्ञानं  और  अध्यात्म  में   एक  साथ  आस्थावान   होकर   वैज्ञानिक  अध्यात्म  के  प्रयोगों  के  लिए   स्वयं  को  समर्पित  करना  l  यदि  कोई  ऐसा  निष्काम  दिव्य  जीवन  जीने  लगे  ,  तो  उसके  स्वागत  में   न  केवल  देवदूत   स्वर्ग  का  द्वार   खोलते  हैं  , बल्कि  स्वयं  परमेश्वर   अपनी  बाहें   पसारकर   उसे  स्वयं  से  एकाकार  कर  लेते  हैं  l "      आचार्यश्री  लिखते  हैं ---- "इनसान  के  पास  जो  भी  संपदाएं  हैं  , वे  एक  अमानत  के  रूप  में  हैं   और  वे  इसलिए  मिली  हैं  कि  दुनिया  में  इस  दुनिया  में  खुशहाली  पैदा  करें ,  इस  दुनिया  में  शांति  पैदा  करें  l   ईश्वर  ने  मनुष्यों  को  बुद्धि  दी  है  ,  और  यह  इसलिए  मिली  है  कि  हम  इसका  सदुपयोग  करें  l  '  आचार्य श्री  कहते  हैं ---- हमें  कम  से  कम  भेड़  के  बराबर  समझदार  तो  होना  ही  चाहिए  l   भेड़ों  से  हमको  नसीहत  लेनी  चाहिए  l   भेड़   अपने  बदन  पर  ऊन  पैदा  करती  है   और   इस    ऊन  को  वह  उन  लोगों  को  मुहैया  कराती  है  , जिन  लोगों  को  सर्दियों  में  कंबल   और  गरम  कपड़ों  की  जरुरत  है  l  अपने  बदन  पर  से  वह  बार -बार  ऊन  कटवाती  है   और  भगवान  उस  ऊन  का  मुआवजा  बार -बार  देते  हैं  l  जितनी  बार  ऊन  काटी  जाती  है  , उतनी  ही  बार  नई  ऊन  पैदा  होती  चली  जाती  है  l  मनुष्य  को  कम  से  कम  भेड़  जैसा  तो  होना  ही  चाहिए  l  उसे  रीछ  जैसा  नहीं  होना  चाहिए  l  रीछ  के  बदन  पर  भी  भगवान  ने  ऊन  दी   थी   लेकिन  रीछ  ने  अपनी  ऊन  किसी  को  नहीं  दी  ,  जो  भी  मांगने  आया था  , उसे  काटने  के  लिए  दौड़ा  l  इस  कारण  कुदरत  ने  उसे  ऊन  देना  बंद  कर  दिया  l  जन्म  के  समय  जितनी  ऊन   भगवान  से  लेकर  आया  ,  उसमें  उसके  अंतिम  समय   कोई  वृद्धि  नहीं  होती   जबकि   भेड़  को   प्रकृति  हर  बार  देती  है   l  '