28 September 2020

WISDOM -----

   कहते  हैं  किसी  भी  बात  की  अति  अच्छी  नहीं  होती  ,  इसे  प्रकृति  भी  बर्दाश्त  नहीं  करती  ,  अपने  तरीके  से  अपना  क्रोध  व्यक्त  करती  है  l   प्रत्येक  देश  में  कोई - न - कोई  सामाजिक  बुराई   है ,  यहाँ  जाति - प्रथा  सदियों  से  चली  आ  रही  है  l   एक  वर्ग  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझता  है ,  यह  ठीक  है  ,  कुछ   गुण ,  कुछ  विशेषताएं  अवश्य  हैं  ,  जिसके  आधार  पर  वे  श्रेष्ठ  हैं    लेकिन  दूसरे  वर्ग  को  चैन  से  जीने  न  देना   एक  ऐसी  बुराई  है  जो  प्रकृति  को  सहन  नहीं  होती  l   ईश्वर  ने  अवतार  लेकर  अपने  आचरण  से  सिखाया   कि   जातिगत  भेदभाव , ऊंच - नीच  की  भावना  को  त्याग  दो  l   भगवान  श्रीराम  ने  शबरी  के  जूठे   बेर  खाये ,  निषादराज  से  मित्रता  की  l   भगवान  श्रीकृष्ण  ने  दुर्योधन  के महल - मेवा  को  त्यागा  और  विदुर  जी  के  यहाँ  रूखी - सुखी  खा  कर   प्रसन्न  हुए  l   लोग  भगवान  की  जय - जयकार  तो  करते  हैं  लेकिन  उनके  आदर्श  को  स्वीकार  नहीं  करते  l   हमारी  इसी  बुराई  की  वजह  से  हम  सदियों  तक  गुलाम  रहे  l   लेकिन  हम  सुधरे  नहीं ,  इसलिए  प्रकृति   के  प्रकोप  के  रूप  में   यह  महामारी  आ  गई  l   इस  कोरोना  के  माध्यम  से  प्रकृति  हमें  संदेश   देती  है   कि   सब  बराबर  हैं , कोई  ऊंच - नीच   नहीं ,   कोई  भेदभाव  नहीं  है  l    चाहे  कोई  अमीर  हो  या  गरीब ,  नेता  हो  या  नौकर ,   उच्च  जाति   का  हो  या  निम्न  जाति   का  ,  जो  भी  इस  बीमारी  से   ग्रसित  हो  गया   वह  समाज  से  दूर  हो  गया  ,  सब  की  एक  जैसी  दशा ------  इस  महामारी  का  मूल  कारण  जो  भी  हो ,  इसका  माध्यम  कोई  भी  हो  ,  इससे  कोई  फरक  नहीं  पड़ता  ,  हम  इसकी  गहराई  में  छिपे  प्रकृति  के  संदेश   को  समझें   और  सारे  भेदभाव  भूलकर   ' जियो  और  जीने  दो '  की  नीति   पर  चलें  ,  आपस  में  प्रेम  चाहे  न  हो   पर   परस्पर  वैर भाव  भी  न  हो  l   कहते  हैं ' जब  जागो ,  तब  सवेरा  '   l   हम  अपनी  गलतियों  को  सुधार  लें  ,  इसी   में सबका  कल्याण  है  l 

WISDOM ---- सच्चे हृदय से ईश्वर को पुकारो , वे अवश्य आते हैं

       महाभारत  का  प्रसंग  है  ---  युधिष्ठिर  जुएँ   में  महारानी  द्रोपदी  को  हार  गए  l   तब  दुर्योधन  ने    दु:शासन   को  द्रोपदी  के   चीर  - हरण  करने  की  आज्ञा  दी  l  दु; शासन   द्रोपदी  को  उसके  बाल  पकड़  कर  घसीट  कर  ला  रहा  था  l  द्रोपदी  क्रंदन  कर  रही  थीं  और  भगवान   श्रीकृष्ण  का  स्मरण  कर  रही  थीं  l   उधर  भगवान  श्रीकृष्ण  अपने  महल  में  पलंग  पर  लेटे   थे   और  रुक्मणी  जी  पंखा  झल  रहीं  थीं  l  एकदम  अचानक  भगवान  ने  रुक्मणी  जी  का  हाथ  , जिसमें  वे  पंखा  पकड़े   थीं  ,  दूर किया   और पीताम्बर  पहने  ही  तेजी   से दौड़े  ,  दरवाजे  तक  गए ,  फिर  धीमे  से  वापस  आ  गए  l   रुक्मणी  जी  ने  पूछा --- ' भगवन  !  आखिर  बात  क्या  है  ?  आप  ऐसे  तेजी  से  दौड़े  फिर  वापस  आ  गए  l '  तब  भगवान   श्रीकृष्ण  ने  कहा  --- '  देखो  !  हस्तिनापुर  में  पांचाली  की  लाज  पर  संकट  है  ,  उसने  मुझे  बुलाया   तो  मैं  दौड़ा  ,  लेकिन  देखो ,  अब  वह   अब  पितामह  से  अपनी  रक्षा  के  लिए  कह  रही  है  ,   अब   गुरु  द्रोण   से  ,  अब  धृतराष्ट्र  से  ,  अब  देखो   वह किस  तरह  अपने  पाँचों  पतियों  से  अपनी  रक्षा  की  गुहार  लगा   रही है  l '  रुक्मणी  जी  ने  कहा --- ' आप  अवश्य  जाएँ ,  द्रोपदी  की  रक्षा  करें  l "  भगवान  ने  कहा  ---   ' पांचाली  मुझे  नहीं  बुला  रही  ,  वो  अपने  सांसारिक  रिश्तों  से  ही  मदद  मांग  रही  है  ,  इसलिए  मैं  वापस  लौट  आया  l  "    अंत  में  द्रोपदी  सब  से   अपनी  लाज   बचाने  के  लिए  मदद  मांगते - मांगते  थक  गई   तब  उसने  भगवान   को  पुकारा  --- ' हे  कृष्ण  !  मेरी  रक्षा  करो ,  मैं  तुम्हारी  शरण  में  हूँ  l "  तब  भगवान  दौड़ते  आए ,  वस्त्रावतार  धारण  कर  लिया  l  दु:शासन   का दस  हजार  हाथियों  का  बल  हार  गया  l  ' द्रोपदी   की लाज  राखि ,  तुम  बढ़ायो  चीर  l