भारत में गुरु और शिष्य का आध्यात्मिक सम्बन्ध सब सम्बन्धों से श्रेष्ठ होता है । अन्य सांसारिक सम्बन्धों से ऊपर उठकर दो आत्माओं का यह आध्यात्मिक सम्बन्ध जन्म - जन्मान्तर तक चलता रहता है । गुरु ईश्वर का रूप होता है । गुरु की आज्ञा शिष्य के लिए वेद - वाक्य के समान होती है । स्वामी विवेकानन्द का शब्दों में ------ " गुरु का स्थान माता - पिता से भी ऊँचा है ।
वह आध्यात्मिक शिक्षक और सर्वोपरि ईश्वर दोनों का सम्मिलित स्वरुप है । गुरु शिष्य के ह्रदय के गुप्त तंतुओं और गहराइयों को समझता है । "
शिष्य के जीवन में प्राण और प्रकाश फूंकने वाला गुरु ही है l पर शिष्य में भी अनुरूप पात्रता आवश्यक है l जहाँ यह संयोग मिल जाता है , गुरु - शिष्य के सम्बन्ध सार्थक हो उठते हैं l
कभी - कभी शिष्य इन सब बातों को न समझकर उनके प्रति संशय और अविश्वास कर बैठता है किन्तु गुरु अपनी कृपा और प्रेम के कारण शिष्य के अपराधों को क्षमा कर उसे सब आपत्तियों से बचाता है l गुरु कभी - कभी शिष्य के प्रति कठोर भी हो जाता है किन्तु वह कठोरता भी माता के समान उसके हित में ही होती है l
वह आध्यात्मिक शिक्षक और सर्वोपरि ईश्वर दोनों का सम्मिलित स्वरुप है । गुरु शिष्य के ह्रदय के गुप्त तंतुओं और गहराइयों को समझता है । "
शिष्य के जीवन में प्राण और प्रकाश फूंकने वाला गुरु ही है l पर शिष्य में भी अनुरूप पात्रता आवश्यक है l जहाँ यह संयोग मिल जाता है , गुरु - शिष्य के सम्बन्ध सार्थक हो उठते हैं l
कभी - कभी शिष्य इन सब बातों को न समझकर उनके प्रति संशय और अविश्वास कर बैठता है किन्तु गुरु अपनी कृपा और प्रेम के कारण शिष्य के अपराधों को क्षमा कर उसे सब आपत्तियों से बचाता है l गुरु कभी - कभी शिष्य के प्रति कठोर भी हो जाता है किन्तु वह कठोरता भी माता के समान उसके हित में ही होती है l