7 November 2020

WISDOM -----

   राजा  भोज  ने  युद्ध  में  विजय  के  उपलक्ष्य  में   सारे  नगर  को  भोज  दिया  l   नाना  प्रकार  के  व्यंजन  इसमें  बनाए   और  परोसे  गए   l  खाने  वालों  ने  राजा  भोज  की  उदारता  की  भरपूर  प्रशंसा  की  ,  जिसे  सुनकर  राजा  भोज  का  सिर   अहंकार  से   ऊपर  उठ  गया  l  और  अधिक  प्रशंसा  सुनने  के  उद्देश्य  से   वे  वेश  बदल  कर   नगर  भ्रमण   को  निकले  l   मार्ग  में  एक  लकड़हारा  मिला  ,  जो  अपने  कंधे  पर   लकड़ियों  का   एक  बड़ा  गट्ठर   लिए  चला  जा  रहा  था  l   राजा  भोज  उसे  रोककर  बोले  --- " क्यों  भाई  !  आज  के  दिन  तो  राजा   ने   बड़ा  भोज  दिया   था ,  फिर  इतनी  ज्यादा  मेहनत   किसलिए  कर  रहे  हो  ?  क्या  तुम्हे  भोज  का  आमंत्रण  नहीं  मिला   था  ? "  सुनकर  लकड़हारा  बोला  ------- " नहीं  भाई  !  निमंत्रण  तो  मिला  था  ,  पर  मैंने  सोचा  कि  यदि  बिना  परिश्रम  के  खाने  की  आदत  पड़   गई   तो  जीवन  भर  ऐसे  ही  निमंत्रणों  की   प्रतीक्षा  करता  रहूँगा   और  परिश्रम  करने  की  प्रवृति  गँवा  बैठूंगा  l   आत्मगौरव  अपने  परिश्रम  का  खाने   में  ही  है  ,  दूसरों  की  प्रदत्त  सहायता  में  नहीं   l "  राजा  भोज   का अहंकार  लकड़हारे  की  बात  सुनकर  विगलित  हो  गया  ,  पर  साथ  ही  उन्हें   इस  बात  का  गर्व  भी  हुआ  कि   उनके  राज्य  में  इतने  नैष्ठिक   नागरिक  भी  निवास  करते  हैं  l