लघु -कथा ---- एक सेठ जी मनोकामना पूर्ति का उदेश्य लेकर मंदिर गए l वह किसी भी कीमत पर भगवान को प्रसन्न करना चाहते थे l अत: अनेक उपहार व धन राशि लेकर मंदिर पहुंचे l वहां उन्होंने देखा कि एक गरीब व्यक्ति भगवान से कह रहा था --- " हे प्रभु ! तेरा लाख -लाख शुक्र है l तेरी कृपा से मुझे जरुरत का सब मिल जाता है , मुझ पर सदा ऐसी ही कृपा बनाए रखना l " सेठ जी को समझ में नहीं आया कि वह व्यक्ति जो भगवान को कुछ भी देने में असमर्थ है , वह इतना संतुष्ट है और मैं रोज मंदिर में इतनी भेंट चढ़ाता हूँ तब भी इतना दुःखी व परेशान हूँ l वे अपनी जिज्ञासा लेकर एक विद्वान व्यक्ति के पास पहुंचे l उन्होंने सारी बातें सुनकर कहा ---- " आप भगवान पर अपने सेवक की भांति मनोकामना पूर्ति के लिए दबाव डालते हैं , जबकि भगवान को ख़रीदा नहीं जा सकता l आप जिस विधि से इनसानों को प्रसन्न करते हैं , उसी तरह ईश्वर को भी प्रसन्न करना चाहते हैं l जबकि उस गरीब व्यक्ति ने भगवान को अपना स्वामी बनाकर अपने ह्रदय में बसा रखा है l " भगवान भक्ति भावना के भूखे हैं , धन -संपदा के नहीं l