काँटे ने फूल से कहा -- बंधुवर पुष्प ! लो सवेरा हुआ , माली इधर ही आ रहा है , अपनी सज्जनता , सौम्यता और उपकार की सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ l यदि मेरी सीख मानते और कठोरता व कुटिलता का आश्रय ग्रहण किए रहते तो आज यह नौबत नहीं आती l फूल कुछ बोला नहीं , वह और भी मोहक हो उठा l माली आया , उसने फूल तोड़ा और डलिया में रखा l काँटा दर्प से हँसा , वृद्ध माली की उँगलियों में चुभा और अहंकार में ऐंठ गया l माली उसे गाली देता हुआ वापस लौट गया l समय बीता l एक दिन मंदिर में चढ़ाये उस फूल की सूखी काया को कोई उस वृक्ष की जड़ों के पास डाल गया l काँटे ने उस फूल को देखा तो हँसा और बोला ---- " कहो तात ! अब तो समझ गए कि परोपकारी होना अपनी दुर्गति कराना है l " फूल की आत्मा बोली ---- " बंधु ! यह तुम्हारा अपना विश्वास है l शरीर में चुभकर दूसरों की आत्मा को कष्ट पहुँचाने के पाप के अतिरिक्त तुम अपयश के भी भागी बने l अंत तो सभी का सुनिश्चित है , किन्तु अपने प्राणों को देवत्व में परिणत करने और संसार को प्रसन्नता प्रदान करने का जो श्रेय मुझे मिला , तुम उससे सदैव के लिए वंचित रह गए l मैं हर द्रष्टि से फायदे में हूँ और तुम घाटे में l "