26 October 2020

WISDOM -------

   श्रीमद्भगवद्गीता   में  भगवान  कहते  हैं  ---  जो  मान - अपमान  में , शत्रु - मित्र  में   तथा  -सुख- दुःख   आदि  द्वंदों  में   सम   है   और  आसक्ति  से  रहित  है   वही  भक्त  मुझे  प्रिय  है  l   भगवान  कहते  हैं --- मान  - अपमान  का  संबंध   हमारे  अहं  से  है  l   अहं   के  कारण  ही  इनका  अनुभव  होता  है  l   पं.श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहते  हैं  --- ' मान  से  यदि  अहंकार  को  पोषण  मिलता  है  , तो   अपमान  से   अहं   को   चोट  लगती  है  l   इसलिए  जब  हम  अपने  अहंकार  को  त्याग  देते  हैं    तो  ये  मान - अपमान  की   अनुभूतियाँ  स्वत:  ही  विसर्जित  हो  जाती  हैं   l   फिर  न  हम  में  मान  पाने  की   लालसा  बची   रह जाती  है   और  न  ही  हमें   अपमानित  होने  का  भय  सताता  है  l -------- स्वामी  रामतीर्थ   प्रव्रज्या  हेतु  अमरीका  गए  हुए  थे   l   उनका  उद्बोधन  प्रसिद्ध  चिंतकों  और  विचारकों    के मध्य  हुआ  तो   सभी  ने   एक स्वर  में  उनके  अद्भुत  व्यक्तित्व  और  प्रकांड   पांडित्य  की  प्रशंसा  की  l   उद्बोधन   के  पश्चात्  वे   जिस महिला  के  घर  रुके  हुए  थे  ,  उनके  घर  पहुंचे  और   उस  महिला  से  बोले  --- " बहन  !  आज  ईश्वर  ने   इस  नाचीज  को   बहुत  प्रशंसा  दिलवाई  l  '  कुछ  दिनों  उपरांत   वे  न्यूयार्क   शहर  के   ब्रौंक्स   क्षेत्र  से  गुजर  रहे  थे   कि   उनकी  वेशभूषा   को  देखकर  कुछ   अराजक  तत्वों  की  भीड़  लग  गई  l   उनमें  से  कुछ  उन  पर  छींटाकशी  करने  लगे   तो  कुछ  ऐसे  भी  थे   जो  बेवजह  उनके  साथ  दुर्व्यवहार  करने  लगे  l   घटना   की खबर  जब   महिला  को  लगी   तो  वह  कुछ  साथियों  को  लेकर   स्वामीजी  को  लेने  पहुंची  l   स्वामी  रामतीर्थ  उसी  निर्विकार  भाव  से  बोले  --- " बहन  !  आप  हस्तक्षेप  न  करो  l   आज  ईश्वर  का   अपने  इस  भक्त  को   अपमान  से  भेंट   कराने  का  मन  है  l   भगवान   के  भक्त  के  लिए  मान  क्या  और  अपमान  क्या    ?  श्रीमद्भगवद्गीता  में  जिस  स्थितप्रज्ञ   का  वर्णन  है  ,  उस  स्वरुप   का दर्शन   उनमे  सबको   उन  क्षणों  में  हुआ   l