9 February 2020

WISDOM ----- ईर्ष्या के विष से दूर रहें

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  कि  ----- ' ईर्ष्या  इनसान   से  हैवान  की  ओर -- पतन  की  राह  पर  धकेल  देती  है   l   यह  इंसानियत  की  विशेषता  नहीं   वरन  नर पिशाच  - नर  कीटक  का  मूल्यहीन    मानदंड  है  l '
  मानव  मन  के  मर्मज्ञ  मानते  हैं  कि   ईर्ष्या  का  प्रार्दुभाव  एक  समान   स्तर  पर  होता  है   l   एक  ही  कक्षा  में  पढ़ने  वाले  छात्रों  के  बीच  ,   एक  ही  विषय  लेने  वालों  के  बीच   ईर्ष्या     होती  है  l   इसी  प्रकार   कार्यालय  में  काम  करने  वाले   एक  समान   पद  वालों  के  बीच  ईर्ष्या  पैदा  होती  है   l   ऑफीसर   की  क्लर्क  के  साथ  या  क्लर्क  की  चपरासी  के  साथ  ईर्ष्या  नहीं  होती  l 
  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---  हम  जिससे  ईर्ष्या  करते  हैं  ,  उसके  जैसा  बनना  चाहते  हैं  l   ऐसा  न  बन  पाने  की  अतृप्ति  हमें  ईर्ष्यालु  बना  देती  है  l  हम  उस  व्यक्ति  की  विशिष्टता  को  सम्मान  नहीं  दे  पाते  जो   हमारे  अंदर  नहीं  है   l   जिससे  हम  ईर्ष्या  करते  हैं   उसकी  निंदा  करने  से  भी  नहीं   चूकते   और  साथ  में  यह  भी  चाहते  हैं   कि   लोग  उसकी  घोर  उपेक्षा  करें  ,  उसे  प्रताड़ित  करें   l   और  जब  कभी  ऐसा  होता  है  ,  तो  हमें  एक  अजीब  सी  ख़ुशी  मिलती   है  l   
          बिना  वजह   सिर्फ  ईर्ष्या  के  कारण  किसी  की  उपेक्षा  करना  , उसे  प्रताड़ित   करना  ऐसा  दुर्गुण  है  जो  ईर्ष्यालु  व्यक्ति  को  हैवान  बना  देता  है   l   ईर्ष्यालु  व्यक्ति  को  तो  हम  नहीं  सुधार  सकते ,  न  ही  समझा  सकते    l  लेकिन  उसकी  इस  मन: स्थिति  को  समझ  कर   स्वयं  को  इतना  मजबूत  बना  सकते  हैं   कि   उसके  द्वारा  हमें  प्रताड़ित  करने  वाली  हरकतों  को  उसकी  मानसिक  बीमारी  समझकर   इग्नोर  कर  सकें ,  उसका  अपने  व्यक्तित्व  पर  कोई  असर  न  होने  दें   l    दुष्ट  व्यक्तियों  से  न  दोस्ती  अच्छी  न  दुश्मनी  l   ऐसे  व्यक्तियों  से  दूर  रहने  में  भलाई  है