देवता और असुर शुरू से ही इस संसार में हैं l देखने में तो ये दोनों शरीर से मनुष्य ही हैं , केवल उनके गुण -अवगुण के आधार पर उन्हें देव या असुर कहा जा सकता l जो असुर हैं , उनमें गुणों की कोई कमी नहीं होती l बहुत ज्ञानी , तपस्वी ------ अनेक गुणों से संपन्न होते हैं , केवल एक विशेष दुर्गुण ' अहंकार ' उनके सब गुणों पर पानी फेर देता है l इस अहंकार के कारण अनेक दुर्गुण उनमे स्वत: ही खिंचे चले आते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " गुणवान होना बहुत अच्छी बात है l गुणों से ही संसार में कीर्ति मिलती है , यश फैलता है l सफलता और कुशलता दोनों खिंचे चले आते हैं l लेकिन इन गुणों के साथ यदि अहंकार भी हो तो इन सबका दायरा संसार तक ही सिमट जाता है l अहंकारी व्यक्ति अपने समस्त गुणों, विभूतियों के बावजूद दैवी प्रयोजनों के लिए अनुकूल नहीं रह जाता l " अहंकारी स्वयं को श्रेष्ठ समझता है और अपने अहंकार के पोषण के लिए छल , कपट , षड्यंत्र , कुटिलता , कठोरता ----- आदि का सहारा लेता है l रावण कितना विद्वान् था लेकिन अहंकारी था , अपनी महत्वाकांक्षा के अतिरिक्त वह किसी का सगा नहीं था l बालि से उसकी मित्रता केवल छल और छद्म थी , वह वानरों में फूट डालकर उनकी शक्ति को कम करना चाहता था l इस अहंकार के कारण ही उसने ऋषियों पर अत्याचार किए , सीता -हरण किया l दसों दिशाओं में उसका आतंक था , उसका अहंकार उसे ले डूबा l रावण को युगों से हर वर्ष जलाते हैं , लेकिन यह अहंकार समाप्त नहीं हुआ l आज संसार में जितनी अशांति , युद्ध , अपराध आदि अनेक समस्याएं हैं उनके मूल में किसी न किसी का अहंकार ही है l संसार में जितने भी अहंकारी हैं वे यदि अपने अहंकार को त्याग दें तो संसार में कितनी शांति हो l