16 January 2021

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " दु:संग   भले  ही   कितना  मधुर   एवं  सम्मोहक   लगे  ,  किन्तु  उसका  यथार्थ  महाविष   की  भाँति   संघातक   होता  है  l  "      आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- "  यदि  किसी  दुराचारी  को   सत्संग  और   सत्पुरुषों   का  साथ  मिल  जाए   तो  उसका  भी  कल्याण  हो  जाता  है   l "               लेकिन  सत्संग   चाहे  वह  सत्पुरुषों  का  हो   या  सद्विचारों  का   ,  ईश्वर  की  कृपा  से  ही  मिलता  है  l  ----------------------    एक   डाकू  फकीरों  के ---दरवेशों   के   वेश  में   डाके  डालता  था  l   अपना  हिस्सा  वह  गरीबों  में  बाँट  देता  था  l  हाथ  में  माला  लिए  जपता   रहता   l  एक  बार  उसके  दल  ने  काफिला  लूटा   l   एक  व्यापारी  के  हाथ  में  ढेर  सारा  पैसा  था  l   लूट  चल  रही  थी   l   उसने  फकीर   को  देखा  l   उसके  पास  सारा  धन  लाकर  रख  दिया  l   काफिला  लुट   जाने  के  बाद   जब  वह  धन  लेने  पहुंचा    तो  देखा  कि   वहां  तो  लूट  का  माल  बांटा   जा  रहा  है   l    सरदार  वही  था  जो  फकीर ---दरवेश  बना  हुआ  था  ,  उसी  के  पास  व्यापारी  का  धन  था   l   व्यापारी  बोला  ---- "  हमने  तो  आपको  दरवेश  समझा  था  l   आप  तो  कुछ  और  ही  निकले  l   हमने  डाकुओं  के  सरदार  पर  नहीं  ,  फकीर   पर  ,  खुदा  के  बन्दे  पर  विश्वास  किया  था   l   आदमी  का  भरोसा  साधु , फकीर   पर  से  उठना  नहीं  चाहिए  l   यह  धन  आप  रखिए ,  पर  आपसे  एक  निवेदन  है   कि   आप  दरवेश  के   वेश  में  मत  लूटिए   l   नहीं  तो  लोगों  का  विश्वास  ही   इस  वेश  पर  से  उठ  जायेगा   l   वह  डाकू  तत्काल  ही  वास्तव  में   फ़क़ीर  बन  गया   l   उसके  बाद  उसने  कभी  डाका  नहीं  डाला   l   दुराचारी   भी  सन्मार्ग  मिलने  पर  कल्याण  पा  जाता  है  l