लघु कथा ----- एक बार एक घुड़सवार एक बस्ती से होकर जा रहा था l मार्ग में एक चोर का घर पड़ा l उसके बरामदे में एक तोता पिंजरे में बंद था , जो उसे देखकर बोला --- " पकड़ो इसे , इसका सारा माल लूट लो l " थोड़ आगे बढ़ने पर उसने देखा एक झोंपड़ी है , वहां भी एक तोता पिंजरे में बंद है l यह तोता उसे देखकर बोला --- " आओ बन्धु !थक गए होंगे , थोड़ा विश्राम कर लो l " घुड़सवार को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह वहीँ बैठ गया l कुछ समय बाद उस झोंपड़ी के अन्दर से साधु निकले और उसकी कुशल -क्षेम पूछने लगे l घुड़सवार ने उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया और उनसे दोनों तोते के भिन्न व्यवहार का कारण पूछा l साधु ने कहा --- ' यह साधुओं की वाणी सुनता है , इसलिए भला बोल रहा है और वह तोता चोर -डाकुओं की बातें सुनता है , इसलिए वैसा ही बोलता है l सत्य यही है कि अच्छाई और बुराई संगत से ही उपजती हैं l घुड़सवार को समझ में आ गया कि सत्संग से सज्जन बनते हैं और कुसंग से दुर्जन l
6 February 2024
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'जीवन उमंग , उत्साह एवं उदेश्य से परिभाषित होता है , उम्र से नहीं l जीवन में उत्साह बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे l व्यक्ति जितना कार्य अपने शरीर से करता है , उससे कई गुना कार्य वह अपने मन से करता है l यदि मन की शक्तियां ही कमजोर पड़ गईं हैं , तो फिर जरूरत है उन्हें जगाने की l " ------- एक कथा है ------ एक राजा के पास कई हाथी थे , लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था , बहुत आज्ञाकारी , समझदार एवं युद्ध कौशल में निपुण था l बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय श्री दिलाकर वापस लौटा था l इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था l उसकी भी जब वृद्धावस्था आ गई तो वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता था इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में नहीं भेजते थे l एक दिन वह सरोवर में जल पीने गया तो वहां कीचड़ में उसका पैर धंस गया l उस हाथी ने बहुत कोशिश की स्वयं को बाहर निकालने की , लेकिन वह धंसता ही जा रहा था l उसके चिंघाड़ने की आवाज सुनकर बहुत लोग वहां आ गए , अनेक पहलवान और सैनिक उसे निकालने का प्रयत्न करने लगे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली l राजा ने हाथी के वृद्ध महावत को बुलाया l महावत ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और राजा से कहा ---' सरोवर के चारों ओर युद्ध के नगाड़े बजाएं जाएँ l सुनने वालों को बड़ा विचित्र लगा कि जब व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से फँसा हुआ हाथी बाहर नहीं निकला तो भला नगाड़े की आवाज से कैसे बाहर निकलेगा l लेकिन आश्चर्य ! जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारम्भ हुए , मृतप्राय हाथी के हाव -भाव में परिवर्तन आने लगा और धीरे -धीरे कोशिश कर के वह स्वयं ही कीचड़ से बाहर आ गया l महावत ने बताया कि वह हाथी युद्ध में अनेकों बार गया है और नगाड़े की आवाज से परिचित है , इस आवाज को सुनकर उसकी चेतना जाग गई , वह उत्साह -उमंग से भर गया कि राजा को युद्ध के लिए उसकी जरुरत है और यह विचार आते ही वह जोश के साथ बाहर आ गया l आचार्य श्री लिखते हैं ---- यदि हमारे मन में एक बार उत्साह -उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वत: ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं है l