29 August 2022

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   लघु  कथाओं , घटनाओं  और  कथानकों  के  माध्यम  से  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  जीवन  जीने  की  कला  का  ज्ञान  न  होने  से  ही  आज  संसार  में  हर  व्यक्ति  परेशान  है  , तनाव  में  है  l  उनका    कहना  है  कि  जीवन  में  आने  वाले  सुख -दुःख  को  हम  सहज  भाव  से  लें  l  दिन  के  बाद  जब  रात्रि  आती  है  तो  हम  विचलित  नहीं  होते   क्योंकि  वह  तो  प्रकृति  का  नियम  है  ,  रात्रि  तो  आएगी  ही  ,  फिर  रात्रि  के  बाद  जब  दिन  होता  है  तो  हम  ख़ुशी  से  विचलित  नहीं  होते  ,  रात  के  बाद  दिन  तो  होना  ही  है  l  सुख -दुःख  भी  जीवन  में  इसी  तरह  आते  हैं   , अंतर  केवल  इतना  है  कि  हमारे  कर्मों  के  परिणामस्वरूप  कभी  -कभी  रात  बहुत  लम्बी  हो  जाती  है  ,  यहाँ  हमें  सत्कर्म  करते  हुए  धैर्य  रखना  है  ' सुबह  अवश्य  आएगी  l ----- आचार्य श्री  ने ने  एक  घटना  का  उल्लेख  किया  है --- एक  गाँव  में  एक  आदमी  की  बीस  लाख  की  लाटरी  लग  गई  l  वह  बहुत  ही  गरीबी  में  दिन  काट  रहा  था  l  जब  लॉटरी  की  खबर  आई  उस  समय  वह  गाँव  के  बाहर  था  l  इस  खबर  को  सुनकर  उसकी  पत्नी  को  चिंता  हो  गई , वह  समझदार  थी  ,  उसे  लगा  कि  अति  गरीबी  के  हाल  में  इतना  धन  मिलने  की  खबर  सुनकर  कहीं  उसके  पति  का  हार्ट फेल  न  हो  जाये  l  इसलिए   वह  गाँव  से  कुछ  दूर  बने  मंदिर  में  पुजारी  के  पास  गई  l  पुजारी  को  सब  बात  बताई  और  कहा  आप  तो  बहुत  ज्ञानी  हैं  ,  मेरे  पति  को  ज्ञान  की  बातें  इस  तरह  से  समझाएं  कि  वे  बीस  लाख  मिलने  की  बात  सुनकर  किसी  सदमे  में  न  आएं ,  न  पागल  हों , न  हार्टफेल  हो  l  आप  समर्थ  हैं  उन्हें  ज्ञान  की  बात  समझा  सकते  हैं  l  पुजारी  ने  कहा  --हाँ  ठीक  है , मैंने  बहुत  शास्त्र  पढ़े  हैं ,  मुझे  ज्ञान  है , मैं  उसे  समझा  दूंगा  ,  लेकिन  बदले  में  तुम  मुझे  कितना  दोगी  ?  उस  महिला  ने  कहा --- 'महाराज  1  मैं  आपको  बीस  हजार  दूंगी  l '  पुजारी  भी  बेचारा  बहुत  गरीब  था  ,  बीस  हजार  की  बात  सुनकर  चौंका  l  फिर  उसने  कई  बार बीस  हजार , बीस हजार  दोहराया  ,  फिर  उसे  ह्रदयघात  हुआ  और  वह  मर  गया  l   बीस  हजार  की  ख़ुशी  वह  पुजारी  सह  न  सका  l  इसलिए  सुख  हो  या  दुःख  हम  उसे  सहजता  से  स्वीकार  करें  ,  विचलित  न  हों  l