28 February 2021

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  महानता  एक  प्रतीक   है  l  जो  महान  दीखता  हो ,  जिसे  सब  जानते  हों ,  जो  ख़बरों  में  प्रमुखता  से  हो  ,  वास्तव  में   वह  महान  हो  ,  यह  जरुरी  नहीं   l   महानता  की  झलक  देखनी  है  तो   उस  बच्चे  में  भी   दीख  सकती  है  ,  जो  अनुशासित  है   और    अपने  बड़ों  से  भी    यही  अपेक्षा  करता  है   l   घर  में  बाहर  से  आकर   काम  करने  वाली   वह  महिला  भी  महान  है  ,  जो  माँ - बाप   की अनुपस्थिति  में  बच्चे  को  माँ  का  दुलार  देती  है  ,  उसकी  परवरिश  का  जिम्मा  लेती  है   l   सड़क  पर  चलता  हुआ  वह  युवक  भी  महानता  की  श्रेणी  में  आता  है  ,  जो  अपने  समय  व  पैसे  की  परवाह    किए   बगैर  किसी   जरूरतमंद  की  मदद  के  लिए   आगे  बढ़ता  है   l   इस  तरह  ऐसे  कई  उदाहरण  हैं  ,  जो   महानता  की  झलक   दिखलाते  हैं   l   महानता  के  इन  लक्षणों  को  जो  जीवन  भर   बनाए   रखते  हैं   ,  इन्हे  अपने  व्यक्तित्व   का  अभिन्न  अंग   बना   लेते हैं  ,  वे  ही  एक  दिन  महानता   का  शिखर   छूते   हैं   l  "  कन्फ्यूशियस   के  अनुसार   ---  जो  साधारण  हैं  ,  वे  भी  महान  हैं   क्योंकि  महानता   हमारी  सोच  में  है  ,  यह  हमारे  अंदर   बसती   है   l '

27 February 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'मनुष्य  जीवन  की  सबसे  बड़ी  उपलब्धि   भावनाओं  का  परिष्कार  है   l   भावनाएं  न  हों  तो  जीवन  नीरस  हो  जायेगा  l   जीवन  का  उल्लास   भावात्मक  आधार  पर  ही  बन  पाता   है   l   ये   भावनाएं  यदि  पवित्र  हो  जाएँ   ,  अंत:करण   प्रेम  और  शीतलता  से  भर  उठे    तो  मानवीय  व्यक्तित्व  ,  शांति  व  सुगंध  का   प्रतीक   बन  जाता  है   l   उसमें  से  कुछ   ऐसी सुगंध  निकलती  है  ,  जो  कस्तूरी  मृग  की   कस्तूरी  की  तरह  से  समस्त  उपवन  को   सुरभित  करने  में  पीछे  नहीं  रहती   l   पवित्र  अंत:करण   वाले  व्यक्तित्व   इसी  प्रकार   समस्त  वातावरण  को  सुगन्धित  एवं  सुरभित  बनाते  हैं   l  '

संत रविदास

     स्वामी  रामानंद जी  ने   चर्मकारों  की  बस्ती    मडुआडीह   में  जाकर   जन्म  लिए   बालक  को  ढूंढ़ा ,  उसके  बत्तीस  लक्षणों  से  उसे  पहचाना   एवं  बीस  दिन  के  बालक  का  नाम   रविदास  रखा   l  रविदास  बड़े  हुए  l   जूते   सीने  के  काम  में  लग  गए   l   उनकी  पत्नी  लोना  भी  उनके  रंग  में  रंग  गई   l   एक  दिन  पिता  से  अपने  जन्म  का  विवरण  सुन   वे  काशी   में   स्वामी  रामानंद जी  के  आश्रम  में   पहुंचे   l   गुरु   ने शिष्य   को विधिवत   दीक्षा  दी   एवं  मन्त्र  दिया  l   गरीबी  की  स्थिति  में  रहकर   समाज  को   सच्चे  अध्यात्म   का  शिक्षण  देने  का  उपदेश  दिया  l   संत  रविदास  ने  उस  समय  के  समाज  में  अपनी  जाति   की  घोषणा  कर   अपनी  प्रतिष्ठा  सभी  संतों  में  की  l   उनने  लिखा ---- ' मेरी  जाति   कमीनी   पाँति  कमीनी   ओछा  जनमु  हमारा  l    तुम  सरनागति  राजा  रामचंद  कहि   रविदास  तुम्हारा   l   जाति   भी  ओछी  ,  करम  भी  ओछा  किसन   हमारा   l   नीचे  से  प्रभु  ऊँच   कियो  है  ,  कह  रैदास  चमारा   l '    उनको  धर्मोपदेश  देते  देख    पंडित  लोग  चिढ़े   l   राजा  से  शिकायत  की  l   महल  में  शास्त्रार्थ  हुआ   l   सभी  पंडित  पराजित  हुए  l   उनकी  प्रार्थना  पर   मूर्ति  ,  मंदिर  से   निकलकर    उनकी  गोदी  में  आ  गई   l   सभी  ने  रैदास  की  जय -जयकार  की  l   एक  बार  रैदास  झाला  रानी  के  भंडारे  में  भोजन भोजन   कर रहे  थे  l   उन्हें  अछूत  समझने  वाले  ब्राह्मणों  ने    अपना  स्वयं  का  अलग  भंडारा  किया   और  वे  खाने  बैठे  l   खाना  खाते   समय  का  दृश्य  बड़ा  ही  विस्मयकारक  था  ,  जब  ब्राह्मणों   का समूह  खाने  बैठा   तो  देखा  कि   प्रत्येक  की  बगल  में  रैदास  बैठे  हैं  l   तब  उन्हें  यह  ज्ञात  हुआ  कि   हम  जिन्हे  अछूत  समझ  रहे  हैं  वे  असाधारण  व्यक्ति  हैं   l 

26 February 2021

WISDOM -------

   चंपारण   आंदोलन  के  लिए  गाँधी  जी   के पहुँचने  पर  जो  माहौल   बना ,  उससे  राजेंद्र  बाबू  ने  अपनी  निजी  वकालत  बंद  कर  दी   एवं   कई  माह  तक  नील  की  खेती  करने   वाले   अंग्रेज  जमींदारों  द्वारा  गरीब  किसानों  पर  किये  जाने  वाले   अत्याचारों     विरुद्ध  लोगों  के  बयान   लिखने  लगे  l   गाँधी जी  के  व्यक्तित्व  से  प्रभावित  होकर   राजेंद्र   बाबू  ने   अपने  आपको    पूरी   तरह उन्हें  सौंप  दिया   l   उनने  गाँधी जी  के  साथ  बैठकर   ' तीन  कठिया  '    इस  अन्याय -मूलक   प्रणाली   को सदा  के  लिए   बंद  करा  दिया  l   चंपारण   के  किसानों  की  कायापलट    गई   और  वह  क्षेत्र   अंग्रेजों  के  जाने  तक   एक  संमृद्ध  क्षेत्र   के  रूप  में  विकसित  हो  गया    l 

WISDOM ------

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी कहते  हैं ---- ' हम  में   ' न  '  कहने  की  हिम्मत  होनी  चाहिए  l   गलत  का  समर्थन  नहीं  करेंगे  ,  उसमें  सहयोग  नहीं  देंगे  l  '     लोभ - लालच ,  कामनाएँ ,  तृष्णा  , अनुचित  महत्वाकांक्षा   ऐसी  कमजोरियाँ   हैं   जिसने  मनुष्य  में  साहस  के  गुण   को  समाप्त  कर  दिया  है   l   लोगों    पास  करोड़ों , अरबों  की  संपदा   होती  है  , फिर  भी   वे स्वाभिमान  से  नहीं  जीते  , कठपुतली  बन  कर  रहते  हैं   l   आचार्य श्री  कहते  हैं ---  साहस   और   स्वाभिमान  से  जीने   लिए  हमारा   पथ  सच्चाई  का  होना   चाहिए  l ---------        एक  राक्षस   था  l    उसने  एक  आदमी   को पकड़ा  l   उसने  उसको  खाया  नहीं  ,  डराया  भर   और   बोला ------- ' मेरी  मर्जी  के  काम  में   निरंतर    लगा   रह ,  मेरे  कहे  अनुसार  चल  ,  यदि  ढील  की  तो  खा  जाऊँगा  l '     वह  आदमी  जब  तक  बस  चला  ,  तब  तक  काम  करता   रहा   l    जब थक  कर  चूर - चूर     हो गया   और     काम   सामर्थ्य   से  बाहर   हो  गया   तो  उसने  सोचा   कि   तिल - तिलकर  मरने  से  तो   एक  दिन    पूरी   तरह    मरना     अच्छा  है   l   उसने  राक्षस  से  कह   दिया  ----- " जो  मरजी   हो  सो  करे   ,  इस  तरह  मैं   नहीं  करते   रह   सकता   l   "  राक्षस   ने  सोचा   काम  का  आदमी  है   l   थोड़ा - थोड़ा  काम   बहुत  दिन  तक  करता  रहे    तो  क्या   बुरा   है  ?  एक  दिन  खा  जाने  पर    तो   उस  लाभ   से   हाथ  धोना  पड़ेगा  ,  जो  उसके  द्वारा   मिलता  रहता    है  l  राक्षस  ने  समझौता  कर   लिया   और  खाया  नहीं  ,  थोड़ा - थोड़ा  काम  करते  रहने  की   बात   मान  ली   l   '  चाहे  कैसी  भी  परिस्थिति  आएं   ,  जूझने  का  साहस  होना  चाहिए   l 

25 February 2021

WISDOM ------

     ईश्वर  का  नाम  लेने  के  साथ  यदि  उनके  आदर्शों   का  जीवन  में  पालन  किया  जाए   तो  संसार  में  सुख - शांति  हो   l   आज  व्यक्ति  अपने  से  कमजोर  पर  अत्याचार  करने  को  उतारू  है   और  अपने  स्वार्थ  के  लिए  ,  अनुचित  लाभ  के  लिए  वह   अत्याचारी  की  , अपराधी  की  मदद  करता  है  l   भगवान  श्रीराम  को  मर्यादा  पुरुषोत्तम  कहते  हैं  ,  वे  चाहते  तो   रावण  से  मुकाबला  करने  को  महाबलशाली  बालि   की  मदद  ले  सकते  थे  ,  पर  श्रीराम  ने  किसी  दुराचारी  की  मदद  लेना   स्वीकार  नहीं  किया   l   स्वेच्छाचारी  अन्यायी  को  छोड़कर   सदाचारी  दीन - हीन   सुग्रीव  को  अपना  मित्र  बनाया  l   बालि   का  वध  करके  सुग्रीव  का  राज्याभिषेक  किया   और  फिर  वानर  सेना   की  मदद  से  सीताजी  की  खोज  आरम्भ  की   l 

WISDOM ----- स्वाभिमान को खो कर यदि सफलता प्राप्त की है तो वह व्यर्थ है , उसका कोई मूल्य नहीं

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ---- 'हमारे  देश  का  बहुत  सारा  बोध   और  स्वाभिमान   विदेशी  गुलामी  ने  नष्ट  किया   और  काफी  कुछ  रूढ़िवादिता  ने   l  विदेशी  गुलामी  से  जकड़ा  अपना  देश  इतना  निरीह  एवं   दुर्बल   हो  गया  था  कि   वह  अपने  स्वाभिमान  की  रक्षा   ही   न  कर  सका   l  इसके  अलावा   हम  स्वयं  ऋषियों  द्वारा  प्रवर्तित   धर्म  को  भी  सही  ढंग  से   संरक्षित   न  कर  सके  l  '                                                                     आज  के  समय   में  स्वार्थ ,  अति  महत्वाकांक्षा ,  धन  और  पद  की  लालसा  ने   स्वाभिमान  को  ताले   में  बंद  कर  दिया  है   l  हमारे  देश  में  अनेक  महापुरुष  हुए  जिन्होंने  अपने  आचरण  से  लोगों  को  अपने  सोये  हुए  स्वाभिमान  को  जगाने  के  लिए  प्रेरित  किया   l ---- जब  भारत  पर  ईस्ट  इंडिया  कंपनी  का  शासन  था  ,  उन  दिनों  अंग्रेजों  के  सामने  कोई  भारतीय  पालकी  या  घोड़े  पर  नहीं  बैठ  सकता  था  l   एक  दिन  राजा  राममोहन  राय   पालकी  में  बैठकर  कहीं  जा  रहे  थे  l  कलेक्टर  हैम्लिटन   को   ऐसा  देखकर  बहुत  गुस्सा  आया  ,  उसने  उन्हें  पालकी  से  उतार  के  भला - बुरा  कहा  l  राजा  राममोहन  राय   उस  समय  तो  चुप  रहे  ,  बाद  में  उन्होंने  लॉर्ड   मिन्टो   से  इसकी  शिकायत  की  l    उनके मित्रों  ने  बात  को  वहीँ  समाप्त  करने  का  सुझाव  दिया   l   तब  राजा  राममोहन  राय   ने  कहा  ----- " यह  भारत  के    स्वाभिमान  का  मुद्दा  है  l   अगर  उनके  इस  भेदभाव  का  विरोध  नहीं  किया  गया   तो  यह  समस्या  बढ़ती  ही  जाएगी  l  "  उन्होंने  अंग्रेजों  द्वारा    हिन्दुस्तानियों  से  किए   जा  रहे   बुरे  बरताव   के  खिलाफ  कानून  बनाने  की  ठान  ली   और  बाद  में  अपने  अथक   प्रयासों  से   एक  ऐसा  कानून  बनवा  पाने  में  सफल  भी  हुए   l 

24 February 2021

WISDOM -----

   मनुष्य  सत्कर्म  करे  तो  उसे  उसका  पुण्य -फल  अवश्य  मिलता  है  l   यह  जरुरी  नहीं  कि   हमने  जिसके  साथ  अच्छा  किया  , वह  उसका  एहसान  माने,  प्रकृति  में   कहीं  न  कहीं  से  उसका  सुफल  अवश्य  मिलता  है  l  एक  प्रसंग  है   महाभारत  का  ----  जब  पासे   के  खेल   में युधिष्ठिर  ने  द्रोपदी  को  दाँव   पर  लगा  दिया   और  वह  बाजी  हार  गए   तब  दुर्योधन  ने  दु :शासन  को   द्रोपदी  के  चीर  हरण  की  आज्ञा  दी  l  द्रोपदी   अपनी  लाज  बचाने   के  लिए  सबसे  अनुनय - विनय  कर  रही  थी  l  उसने  भगवान  कृष्ण  को  पुकारा  l   कहते  हैं  तब  नारद जी   भगवान  के  पास  गए  और  कहा   कि  द्रोपदी   पर  घोर  संकट  है ,  वह  आपको  पुकार  रही  है  l   तब  भगवान  ने  कहा --- " कर्मों  के  बदले  ही  मेरी  कृपा  बरसती  है   l   क्या  कोई  पुण्य  है  द्रोपदी  के   खाते  में  ?  जाँचा -परखा  गया   कि   कहीं  वस्त्र  दान  है  l   जांच  में  पाया  गया  ऐसे  दो  महत्वपूर्ण  दान  हैं ---- एक  बार  जब  भगवान  कृष्ण  ने   शिशुपाल   द्वारा  दी  गई  सौ   गालियों  के  पूरा  होने  पर   सुदर्शन  चक्र   को   उसका  सिर   काटने  की  आज्ञा  दी  तब  ऊँगली  में  घूमते  हुए  सुदर्शन  चक्र  को  शिशुपाल  की  ओर   प्रहार  करते  समय  उनकी  ऊँगली  में  चोट  लग  गई  , और  बड़ी  तेजी  से  खून  बहने  लगा   l कृष्ण जी  की  महारानी  रुक्मणि , सत्यभामा  आदि  ने  दास  - दासियों   को  आज्ञा  दी  --जल्दी  कपड़ा   लाओ  पट्टी  बांधे  ,  सब अपनी   समझ  से  उनके  इलाज  के  लिए  दौड़े  ,  तब  द्रोपदी  ने   अपनी  कीमती  साड़ी   को  फाड़कर  पट्टी  भगवान  की  ऊँगली  में  बाँध  दी  ,  खून  का  बहना  बंद  हो  गया   तब  भगवान  की  मुस्कराहट  कह  रही  थी   कि   इस  छोटे  से  चीर   के  बदले   तुम्हें   हजारों  गज  चीर ( वस्त्र )  मिलेंगे   l   एक  दूसरा  प्रसंग  है  ---  एक  साधु  यमुना  तट   पर   एक  लँगोटी   पहने   स्नान  कर  रहे  थे  ,  बदलने   के लिए  एक  लँगोटी   किनारे   रखी   थी   l   हवा  के  तेज  झोंके  से  वह  भी  पानी  में  बह    गई  l  इस  कारण  साधु  बहुत  परेशान   था  ,  कैसे  अपनी  झोंपड़ी  तक  जाए  ?  द्रोपदी  प्रात:काल  स्नान  करने  यमुना  तट   पर  आईं  ,  सहज  ही  उनका  ध्यान  साधु   की  ओर   गया  ,  वे  उसकी  समस्या  समझ  गईं  और  अपनी  साड़ी   आधी  फाड़कर  झाड़ी   के  पास  रख दी   और  कहा  --- ' पिताजी  ! आप  इस  वस्त्र  में  अपने  घर  चलें  जाएँ  l            जांच - परख  में   उस  वस्त्र  दान  का  ब्याज  बढ़कर   न  जाने  कितना  गुना  हो  गया  था   कि   भगवान  की  उँगलियों  से  हजारों  गज   साड़ियाँ   निकलती   गईं   l   दस  हजार  हाथियों  के  बल  वाला  दु:शासन   थक  कर  गिर  पड़ा  l   ' द्रोपदी  की  लाज  राखि ,  तुम  बढ़ायो  चीर   l '

23 February 2021

WISDOM ------

    विश्वकवि  रवीन्द्रनाथ   टैगोर  की   बढ़ती  हुई  प्रतिभा  और  लोकप्रियता   से  लोग  ईर्ष्या  करने  लगे  थे  l   उन्होंने  गुरुदेव  की  छवि  को  धूमिल   करने  के  लिए   विभिन्न  पत्र - पत्रिकाओं  के  माध्यम  से   अपने  कलुषित   प्रयास  प्रारम्भ  कर  दिए  l   परन्तु  गुरुदेव  समभाव   से  सब  सहन  करते  रहे   तथा  तनिक  भी    विचलित  नहीं  हुए   l   श्री  शरतचंद्र  को  जब   ये  आलोचनाएं   सहन  नहीं   हुईं  तो  उन्होंने  गुरुदेव  से  कहा   कि   वे  इन  आलोचकों   को  रोकने  का  कुछ  प्रयास  करें   l  टैगोर  ने  शांत  भाव  से  शरतचंद्र   को  समझाया  कि ,  प्रयास  क्या  करूँ   ?  मैं  उन  जैसा  नहीं  बन  सकता    और  उन्होंने  जो  मार्ग  अपनाया  है  ,  वह  भी  मैं  नहीं  अपना  सकता   l 

WISDOM -----

   पुरानी   आदत  आसानी  से  जाती  नहीं   l    यह आदत   किसी  को  गुलाम  बनाने  की ,  शोषण  करने  की  हो  या    मानसिक  पराधीनता  की  हो  l   व्यक्ति  हो  या  समाज    ,  अपनी  आदत  के  पोषण  के   रास्ते  , विभिन्न  तरीके  ढूँढ़   ही  लेता  है   l   -----  गुरु  और  शिष्य  भ्रमण  को  निकले  l   उन्हें  राह  में  एक  हाथी   मिला  ,  जो  एक  रस्सी  से  खूँटे   से  बँधा   खड़ा  था  l उत्सुकतावश  शिष्य  ने  महावत  से  पूछा ---- " बंधु  ! यह  रस्सी  तो  पतली   सी है   और  ये  विशाल  हाथी  , जब  चाहे  इसे  तोड़कर  मुक्त  हो  सकता  है  ,  फिर  यह  भागता  क्यों  नहीं  ?  महावत  बोला ---- " जब  ये  हाथी  छोटा   था ,  तब  यही  रस्सी  इसे   बाँधने  के  लिए  पर्याप्त  थी   और  अब  इसके  पूर्व  अनुभव   इसे  ये  आभास  ही  नहीं  होने  देते  कि   रस्सी  इतनी  मजबूत  नहीं   कि   इसे  रोक  सके  l  "          मनुष्य अपनी  संकल्प  शक्ति  को  जगाकर   मानसिक  पराधीनता   से  मुक्त  होकर  स्वाभिमान  की  जिंदगी  जी  सकता  है  l 

22 February 2021

WISDOM ----- कोरा उपदेश नहीं , पीड़ा निवारण जरुरी है l

   धर्म  प्रचार  के  लिए   भगवान  बुद्ध   परिव्राजकों  को  विदा  कर  रहे  थे   l  उन्होंने  अपने  शिष्य   कलंभन   से  कहा  --- ' वत्स  !  लोग  अज्ञानवश  कुरीतियों  में  जकड़े  हुए  हैं  l   जाओ  उन्हें  जाग्रति  का  सन्देश  दो  ,  इससे  बढ़कर  कोई  और  पुण्य  नहीं   l "    कलंभन   एक  सामान्य  आबादी  के  गाँव   पहुंचा  l   ग्रामीणों  ने  उसके  विश्राम  की  समुचित  व्यवस्था  कर  दी  l रात  बहुत  शांति   से बीती  l   सुबह   जब  वह  ध्यान - पूजन   समाप्त  कर  बाहर  निकला  ,  तब  तक  द्वार   ग्रामवासियों  की  भीड़  से   भर गया  था  l   गांव  वालों  के  चेहरे  बहुत  मलिन  थे  ,  कई  लोग  बीमार  थे  ,  कुपोषण  के  कारण  बच्चों  के  शरीर  सूखे  हुए  थे  ,  सब  ओर   गंदगी  थी  l   एक  वटवृक्ष  के  निकट  बैठकर  कलंभन   ने  उपदेश  देना  आरंभ   किया  l  ग्रामीणों  को  कुछ  समझ  में  नहीं  आया   l   धीरे - धीरे  भीड़  छटने  लगी  l   अब  उसकी  सभा  में  ग्रामीणों  का  आना  लगभग  समाप्त  हो  गया  l   इससे  वह  बड़ा  निराश  हुआ  और  उसने  भगवान  बुद्ध  से   कहा --- भगवन  !  उपदेश  कुछ  काम  न  आया  l कृपया  मार्गदर्शन  करें  l "  भगवान  बुद्ध  ने  अपने  शिष्य  सनातन  से  कहा ---- ' जाओ  उस  गाँव  में  शिक्षा  व  स्वास्थ्य   का  प्रबंध  करो  l  '  फिर  उन्होंने  शिष्यों  को  समझाया ---- ' इस  समय  ग्रामीणों  की  आवश्यकता  --- शिक्षा  और  स्वास्थ्य  है  l  अभी  उन्हें  जीवन  की  आशा  चाहिए  l   आज  जियेंगे  तो  कल  सुनेंगे  भी  l 

20 February 2021

WISDOM ------

     एक व्यक्ति  जार्ज  बर्नार्ड  शॉ   से  मिलने  पहुंचा  l   उसने  उनसे  पूछा  कि   वो  उन  दिनों  कुछ  परेशान   चल  रहा  है   और  यदि  वे  किसी  अच्छे   ज्योतिषी    को  जानते  हैं   तो  उसका  पता   उस  व्यक्ति  को  बताएं  l  जार्ज  बर्नार्ड  शॉ   ने   उससे   पूछा   कि   ज्योतिषी  तुम्हारा  भला   कैसे  करेगा  ?  उस  व्यक्ति  ने  कहा   कि   मैं  उससे  अपना  भविष्य  जानना  चाहता  हूँ   l  जार्ज  बर्नार्ड  शॉ   ने  उत्तर  दिया  ---- ' यदि  तुम  अपना  भविष्य  जानना  चाहते  हो   तो  पहले  अपने  अतीत  को  जानो   और  उसमें  जो  भूलें  तुमसे   हुईं  हैं  ,  उन्हें  न  दोहराने  का  निर्णय  करो   तो  तुम्हारा  भविष्य  अपने  आप   सँवर   जायेगा  l '  उनके  समझाने   से  उस  व्यक्ति  का  चिंतन  बदल  गया   और  वो  सदैव  के  लिए  आशावादी  हो  गया   l 

19 February 2021

WISDOM -----

   भगवान  श्रीकृष्ण  ने   अपने  व्यवहार   से  संसार  को  शिक्षण  दिया  कि   मनुष्य  में  नम्रता  होनी  चाहिए ,  अहंकार   को  त्याग  देना  चाहिए  --- श्रीकृष्ण  स्वयं  अर्जुन  के  सारथि   बने  ,  पांडवों  की  ओर   से   एक  स्वयंसेवक   की  भाँति   व्यवहार  करते  हुए    महाभारत  युद्ध  में  भाग  लिया    l   ऐसे  निराभिमानी   भगवान  कृष्ण  को   अर्जुन  ने   अपने  पक्ष  में  चुना  , किन्तु  दुर्योधन  ने  उनका  महत्व   नहीं  समझा  ,  वह  तो  उन्हें  ग्वाला  ही  कहता  था   इसलिए  उसने   उनकी विशाल  सेना  को  मांग  लिया  l   जब  राजसूय  यज्ञ   शुरू  होने  को  था   l   सबके  लिए  काम  बांटे  जा  रहे  थे  l   श्रीकृष्ण  ने  भोलेपन  से  अपने  लिए  भी  काम  माँगा  ,  लेकिन  पांडवों   ने  कहा  --- भगवन  !  आपके   लिए तो  हमारे  पास   कोई  भी  काम  नहीं  है   l   बहुत  ज्यादा  जोर  देने  पर   उनसे  कह  दिया  कि   वे  अपनी  पसंद  का  काम  स्वयं  ढूंढ़   लें  l   सभी  ने  देखा  कि   श्रीकृष्ण  यज्ञ  में   आदि  से  अंत  तक   अतिथियों   के  चरण  धोने  ,  झूठी  पत्तलें  उठाने  तथा  सफाई  रखने  का  काम  स्वयं  करते  रहे   l   

18 February 2021

WISDOM ------

  यूरोप  की  एक  पुरानी   किन्तु  रोचक  घटना  है  ----- एक  बार  कुछ  पादरी  आपस  में  चर्चा  कर  रहे  थे   कि   उन्हें  दान  में  जो  कुछ  मिलता  है  उसका  वे  क्या  करते  हैं   ?  एक  पादरी  ने  कहा  --- " मेरे  यहाँ  लोग  दान - पेटी  में  जो  कुछ  डालते  हैं  ,  वह  सबका  सब  परमात्मा  के  पास  पहुँच  जाता  है  l  "  एक  अन्य  पादरी  ने  कहा --- ' मैं  अपने  यहाँ  चढ़ाये  गए   तांबे   को  तो  चर्च  में  दे  देता  हूँ  ,  जबकि  चांदी   की  चीजें  परमात्मा  के  पास  पहुंचा  देता  हूँ  l  '      इस  चर्चा  को  सुनकर  एक  तीसरा  पादरी  जो  अब  तक   खामोश  बैठा  था  ,  बोला ----- " मैं  तो  इकट्ठा  किया  गया  सारा  धन   कम्बल  में  रख  देता  हूँ   और  उसे  हवा  में  उछाल  देता  हूँ  l  उछाले  गए  इस  धन  में   से  परमात्मा  को  जो  भी  कुछ  लेना  हो   ले  लेता  है , शेष  मैं   परमात्मा  का  प्रसाद  समझकर   रख  लेता  हूँ  l  "  ये  तीनो   पादरी जब  चर्चा  कर  रहे  थे  ,  उसी  समय   उस   ओर   से    संत  फ्रांसिस    निकले   l   यह  चर्चा   सुन उन्होंने  जोर  का  ठहाका  लगाया    फिर  बोले  ----- " धूर्त  और  चालाक   मत  बनो  ,  क्योंकि  अंत  में  तुम्हारा  ही  नुकसान  होगा  , परमात्मा  का  नहीं   l   जो  ठग  हैं ,  धूर्त  और  चालाक  हैं   उनके  लिए  प्रभु  का  द्वार  कभी   न  खुल  सकेगा   l "

WISDOM ------

   एक  बार  अपने  जन्म  दिवस   12  जनवरी  को  गंगा  तट   पर  टहलते  हुए   स्वामी  विवेकानंद  ने  अपने  गुरु भाइयों  से  कहा  था  ---- " निद्रित  भारत  अब  जागने  लगा  है  ---- जड़ता  धीरे - धीरे  दूर  हो  रही  है  ,   जो अंधे   हैं  वे  देख  नहीं  सकते  ,  जो  विकृत  बुद्धि  हैं  ,  वे  ही  समझ  नहीं  सकते   कि   हमारी  मातृभूमि  अब  जाग  रही  है     ---- अब  उसे  कोई  रोक   नहीं सकता  l   --- एक  नवीन   भारत  निकल  पड़ेगा  -- हल  पकड़कर ,  किसानों  की  कुटी  भेदकर  ,  मछुए ,  माली ,  मोची  ,  मेहतरों  की  कुटीरों  से    l   निकल  पड़ेगा  बनियों  की  दुकानों  से  ,  भुजवा  के  भाड़   के पास  से  ,  कारखाने  से  ,  हाट  से  , बाजार  से   l   अपना  नवीन   भारत  निकल  पड़ेगा   --- झाड़ियों , जंगलों , पहाड़ों  , पर्वतों  से  l   इन  लोगों  ने  हजारों  वर्षों  तक  नीरव  अत्याचार  सहन  किया  है  ,  उससे  पाई  है  अपूर्व  सहनशीलता   l   सनातन  दुःख  उठाया  है  ,  जिससे  पाई  है  अटल  जीवनी  शक्ति   l   यही  लोग  अपने  नवीन  भारत  के  निर्माता  होंगे   l  "

17 February 2021

WISDOM ------

  जलियांवाला  बाग   के  बाद  गुरुदेव  रवीन्द्रनाथ  टैगोर  ने  जगह - जगह  यात्राएं   की  l   एक  यात्रा  तो   कलकत्ता  से   पेशावर   तक  बैलगाड़ी  से  की  l   जलियांवाला   कांड    से  गुरुदेव  बहुत  आहत   हुए   और  उन्होंने  ' सर '  की  उपाधि  का  त्याग  करते  हुए   तत्कालीन   वायसराय  चेम्स  फोर्ड   को  पत्र  लिखा  l    उसमे  सर  या  नाइट   की  उपाधि  को  सम्मान  का  पट्टा   बताया  था  l  उस  पत्र  का  एक  अंश   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपनी  नोट   बुक  में  लिख  लिया  था  l   वह  अंश  इस  प्रकार  है ------ " हमारी  आँखें  खुल  गई  हैं   कि   हमारी  अवस्था  कैसी  असहाय  है  l   भारतीय  जनता  को  इस  समय  जो  दंड  दिया  गया  ,  उसकी  मिसाल  किसी  भी   सभ्य देश  और  सभ्य  सरकार  के  इतिहास  में  नहीं  मिलती   l  विडंबना  है   कि   इस  कृत्य  के  लिए  लज्जा   और  ग्लानि  अनुभव  करने  के  स्थान  पर   आप  अपने  आपको  शाबाशी  दे  रहे  हैं   कि   आपने   भारतीयों   को  अच्छा  सबक  सिखाया  l  "       " अधिकांश  एंग्लोइंडियन   अख़बारों  ने  इस  निर्दयता  की  प्रशंसा  की  है  ----- सरकारी  अधिकारियों   ने   उन  पत्रों  पर  तो  कोई  प्रतिबंध   नहीं  लगाया  ,   उलटे  भारतीय  समाज  से   सहानुभूति  रखने  वाले   पत्रों  का  ही  गला    दबाया   l   इस  अवसर  पर  मैं   कम   से  कम  इतना  तो  कर  ही  सकता  हूँ   कि   जो  भी  दुष्परिणाम  हों ,  उन्हें  भोगने  के  लिए  तैयार  रहकर    उन  करोड़ों  देशवासियों  की  ओर   से  विरोध  व्यक्त  करूँ  ,  जो  आतंक  और   भय   के  कारण   चुपचाप  सरकारी  दमन  सहन  कर  रहे  हैं   l   सरकार   द्वारा  दिए  गए  सम्मान  के  पट्टे   राष्ट्रिय  अपमान  के  साथ  और  मेल  नहीं  खा   सकते ,  वे  हमारी  निर्लज्जता  को  और   भी  चमका  देते  हैं  l   अत:  मैं  विवश  होकर   आदर  सहित   अनुरोध  कर  रहा  हूँ   की  आज  मुझे   सम्राट  की  दी  हुई   नाइट  की  उपाधि  से  मुक्त  कर  दें   l "

WISDOM ------

   प्रसंग  रूस  के  एकछत्र  नायक  रहे  ब्रेझनेव  से  संबंधित   है   l   वे  जब  भारत  आए   तो  राजधानी  में  विभिन्न  विशिष्ट  लोगों  से  मुलाकात  की  l   रामकथा  के  प्रसिद्ध   विद्वान   और  वाचक  पंडित  कपींद्र   जी  भी  उनसे  मिले   l   उन्होंने  ब्रेझनेव  को  रामचरितमानस  भेंट  की   और  कहा  कि    इस ग्रन्थ  में    जहाँ  राम  है  वहां  ' साम्यवाद  '  रख  देना  l   सीता  के  स्थान  पर   ' शक्ति '    और  असुर  के  स्थान  पर  ' पूंजीपति  '  फिर  आपको  इस  ग्रन्थ  की  महत्ता  का  पता  चलेगा   l 

16 February 2021

WISDOM -----

  महाभारत  में  ' विदुर  नीति  '  में  एक  श्लोक  है  जिसका  भावार्थ  है ---- महात्मा  विदुर  धृतराष्ट्र   से  कहते   हैं --- " हे  राजन  !  इस  संसार  में  दूसरों  को   निरंतर  प्रसन्न  करने  के  लिए   प्रिय  बोलने  वाले   प्रशंसक  लोग  बहुत  हैं  ,  परन्तु  सुनने  में  अप्रिय  लगे   और  वह  कल्याण  करने  वाला  वचन  हो  ,  उसका  कहने  और  सुनने  वाला  पुरुष  दुर्लभ  है   l  "   महर्षि  दयानन्द   ऐसे  विरले  मनुष्य  थे  ,  वे  राजाओं -महाराजाओं  के  सामने , बड़े  अंग्रेज   अफसरों  की  उपस्थिति   में  निर्भीक  होकर   सबके  हित   की  सत्य  बात  कहा  करते  थे   l   स्वामीजी   मूर्ति  पूजा  के  विरोधी  थे  ,  वे  कहते  थे  ---- मेरा  काम   लोगों  के  मन - मंदिरों  से  मूर्तियां  निकलवाना  है  ,  ईंट  पत्थर  के  मंदिरों  को   तोड़ना  नहीं    l   महर्षि   दयानन्द  मानते  थे   कि   हमारा  नाम  आर्य  है  ,  हिन्दू  नहीं  l   आर्य  का  अर्थ  है  श्रेष्ठ  पुरुष  l  विदेशियों  ने  हमें  हिन्दू  नाम  दिया   l   उनके  द्वारा  रचित  ' सत्यार्थ  प्रकाश  '  सोई   हुई  जाति   के   स्वाभिमान  को  जगाने  वाला  अद्वितीय  ग्रन्थ  है   l 

WISDOM ------ कर्तव्य ही धर्म है

   एक  बार  महाराजा  पुरंजय  ने  राजसूय  यज्ञ  किया  l   इसमें  उन्होंने   दूर - दूर  से  ऋषि - मुनियों  को   आमंत्रित  किया  l   प्रजा  की  सुख - संमृद्धि  के  उद्देश्य  से   आयोजित  यज्ञ  में   विधि - विधान   से  आहुतियाँ  दी  जाने  लगीं   l  यज्ञ  की  पूर्णाहुति   का  दिन  आया  l   महाराज , महारानी , राजकुमार  सभी  यज्ञ मंडप  में  विराजमान  थे   l   वेदमंत्रों  की  ध्वनि  से   वातावरण  गुंजित  हो  रहा  था   l   अचानक  एक  किसान  के  रोने  की  आवाज   सुनाई  दी  l   वह  रोते   हुए  कह  रहा  था  --- " दस्युओं  ने  मेरी  सम्पति  लूट  ली  l  मेरी  गाय  छीनकर  ले  गए  l   दस्यु   अभी  कुछ  ही  दूर  गए  होंगे  l   महाराज  !   तुरंत  उनको  पकड़कर  मेरी  सम्पति  दिलाएँ  l  "  पंडितों  ने  कहा  ---- " इस  व्यक्ति  को  दूर  ले  जाओ  l   यदि  राजा  इस  पर  दया  कर  के  बिना  पूर्णाहुति   के  उठ  गए   तो  देवता  कुपित  हो  जाएंगे  l  "  राजा  दयालु  था  ,  किसान  का  रुदन  सुनकर  उसका  हृदय  करुणा  से  भर  गया   l  राजा  ने  कहा ---- " मेरा  पहला  कर्तव्य   अपनी  प्रजा  का  संकट   दूर  करना  है   l   मैंने  अनेक  यज्ञ  पूर्ण  किए   हैं   l   आज  मैं   पहली  बार   यज्ञ  पूर्ण  किए   बिना   अपने  राज्य  के  किसान   का  संकट  दूर  करने  जा  रहा  हूँ   l   "  राजा  के  ऐसा  कहने  पर   साक्षात्  यज्ञ  भगवान  प्रकट  हुए   और  बोले  --- " राजन  !  तुम्हें  कहीं  जाने  की  आवश्यकता  नहीं  l   यह  तुम्हारी  परीक्षा  थी  कि   तुम  अपनी  प्रजा  के  प्रति  कर्तव्य  का  पालन  करते  हो  या  नहीं  l   अब  तुम्हें  सौ   राजसूय  यज्ञों  का  फल  मिलेगा   l  "

15 February 2021

WISDOM -----

 कोई  भी  परिस्थिति  जिसमे  हम  वर्षों  तक  रहें ,  फिर  हमें  उसकी  आदत  बन  जाती  है   और  उसी  के  अनुरूप  व्यवहार  हो  जाता  है  l   युगों  तक  हम   गुलाम  रहे  l   आजादी  तो  मिल  गई  ,  हम  पर  राज  करने  वाले  तो  चले  गए  लेकिन  उन   परिस्थितियों  में  रहने  की  जो  आदत  बन  गई  थी ,  वह  नहीं  गई  l   पहले  हम   अपनी  कमजोरियों  के  कारण  ,  राजाओं  की  विलासिता  और   आपसी  फूट   के  कारण   गुलामी  का  जीवन  जीने  को  विवश  थे   लेकिन  आज  व्यक्ति  अपने  स्वार्थ ,   लोभ   और  लालच  के  कारण    अपने से   धनी    और  शक्तिशाली   व्यक्ति  की  गुलामी  करता  है   l   सबसे  ज्यादा  जरुरी  है  स्वाभिमान  होना   l                          मनुष्य  की  यह  कमजोरी  है  कि   वह  बुरी  आदत  जल्दी  सीखता  है ,  अच्छाई  ग्रहण  नहीं  करता  l   

WISDOM -------

   एक  बोध  कथा  है  ---- एक  बार  भगवान  बुद्ध    अपने  शिष्यों  के  साथ  एक  नगर   में पहुंचे  l   उस  नगर  के  लोग   भिक्षु - भिक्षुणियों  को  बहुत  प्रताड़ित  करते, गलियां  देते , व्यंग्य  करते  दूषित  लांछन  लगाते  l  इन  सबसे  परेशान     होकर   आनंद  ने  भगवान   बुद्ध  से  कहा  --- भगवन  !  किसी  दूसरे  नगर  चलें  l '  हँसते  हुए  भगवान  बोले ---- ' यदि  वहां  के  लोगों  ने  भी  प्रताड़ित  किया   तो  कहाँ  जाएंगे  ? ' आनंद  बोले -- ' प्रभु  !  संसार  में  नगरों  की  कमी  नहीं  है  l  '  तब  भगवान  बुद्ध  बोले  ---- " आनंद  !  तुम  बहुत  भोले  हो  l  जो  यहाँ  हो  रहा  है  वह  सभी  जगह  होगा  l   सभी  जगह  अँधेरा  हमसे  नाराज  होगा   l  इनसानियत   को  नष्ट  करने  वाली  बीमारी  सभी  जगह  हमसे  रुष्ट  होगीं  l   धर्म  के  नेतागण  हर  जगह  एक  जैसे  हैं   l   जब  भी  उनके  स्वार्थ   पर चोट  पड़ती  है   तो  वे  यही  करते  हैं   l   हमारी  रीति   है    अँधेरे  को  मिटाना   और  उनकी  रीति   है  अँधेरे  में  जीना   l   हम  अँधेरे  पर  चोट  करने  से  नहीं  चूक  सकते    और  वे  प्रतिशोध   लेने  से  नहीं  चूक  सकते   l   उनके  पास  यही  एकमात्र  उपाय  है  l   बड़ी  गहरी  तकलीफ  में  हैं   वे   बेचारे   l   वे  दया  के  पात्र  हैं   l   तू  उन  पर  नाराज  होने  के  बजाय  उनकी  पीड़ा  समझ  l '

14 February 2021

WISDOM -----

   शत्रुओं   से  घिरे    एक   नगर  की  प्रजा   अपना  माल  , असबाब  पीठ  पर  लादे  हुए  जान  बचाकर   भाग  रही   थी  l  सभी  घबराए   और  दुःखी   स्थिति  में  थे  ,  पर  उन्ही  में  से   एक  खाली   हाथ  चलने  वाला  व्यक्ति   सिर  ऊँचा  किए ,  अकड़  कर  चल  रहा  था   l   लोगों  ने  उससे  पूछा  ---- ' तेरे  पास  तो  कुछ  भी    नहीं  है  ,  इतनी  गरीबी  के  होते  हुए   फिर  अकड़  किस  बात  की  ?  "  दार्शनिक  वायस  ने  कहा ---- " मेरे  साथ  जन्म  भर  की  संगृहीत  पूंजी  है   और  उसके  आधार  पर   अगले  ही  दिनों  फिर  अच्छा  भविष्य   सामने   आ  खड़ा  होने  का   विश्वास  है   l   यह  पूंजी  है  ,  अच्छी  परिस्थितियाँ   फिर  बना   लेने  की  हिम्मत  l   इस  पूंजी  के  रहते  मुझे  दुःखी   होने   और  नीचा   सिर   करने  की  आवश्यकता   ही  क्या  है   ? " 

13 February 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'काम , क्रोध , लोभ , मोह  , ईर्ष्या , द्वेष   मनुष्य  की  प्रकृति  में  बड़ी  गहराई  से  अपनी  जड़ें  जमाए   बैठे  हैं  ,  हर  युग  में  उनका  रूप  देखने  को  मिलता  है  l '                     वर्तमान  समय  में  क्योंकि  मनुष्य  कर्मकांड   को  ही  सब  कुछ  समझ  बैठा  है ,  चेतना  के  परिष्कार  पर  ध्यान  नहीं  देता   इसलिए    वर्तमान  समय  में  इन  मनोविकारों  का  रूप   अत्यंत  भयावह  और  विकृत  हो  गया  है  l ये  मनोविकार     उस  व्यक्ति  और  उसके  परिवार  का    अहित    तो   करते   ही  हैं   लेकिन  यदि   इन  मनोविकारों  से  ग्रस्त  व्यक्ति   जितने  ऊँचे   स्तर  का  है   ,   तो  उतने  ही  बड़े   क्षेत्र   में  रहने  वाले  व्यक्तियों   पर  उसका  दुष्प्रभाव  पड़ेगा   l   जैसे  दुर्योधन  अहंकारी  था  ,  उसे  शकुनि  जैसे  छल -कपट  करने  वाले  का   कुसंग  मिला  ,  महाभारत  हो  गया , समूचा  कौरव  वंश  समाप्त  हो  गया  ,  जन - धन हानि   हुई  l   इसी  तरह  रामचरितमानस  में  उल्लेख  है  कि   महारानी  कैकेयी   अपनी  प्रकृति  से  अभिमानी  और  अहंकारी  थीं  l   इससे  भी  अधिक  घातक  था  मंथरा  जैसी  निकृष्ट  दासी  का  कुसंग  l   इसी  कुसंग  ने  महारानी  कैकेयी  के  क्रोध  व  अहंकार  को   इतना    बढ़ा  दिया   कि   उन्होंने  राजा  दशरथ  से   भरत   को  राजगद्दी  और  राम  के  लिए  वनवास  मांग  लिया  l     महारानी  ने   मंथरा   की  सलाह  मानी  ,   उसको  अपने   जीवन  में  हस्तक्षेप  का  मौका  दिया  , परिणाम   दुःखद   हुआ  l   राम  के  जाने  से  अयोध्या  सूनी   हो  गई  ,  पुत्र  वियोग   में   राजा  दशरथ  की  मृत्यु  हो  गई  l   महारानियों  को  वैधव्य  का  दुःख  सहना  पड़ा  l   ये  सब   कथानक  हमें  शिक्षा   देते हैं   कि   हम  होश  में  रहें   l  शकुनि  और  मंथरा  जैसे  लोगों  के   कुसंग  से  बचें  ,  उन्हें  कभी  भी  इतनी  शह   न  दें   कि   वे    हावी  हो  जाएँ   और  पतन  की  राह  पर  धकेल  दें   l  

12 February 2021

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ----- ' देवत्व  का  अर्थ  है  -- भावनाओं  की  समृद्धता  और  अंत :करण   की  उदारता   l   जिसे  यह  समझ  में  आ  जाता  है  कि  जितना  मुझे  मिला  है  ,  उतना  मैं  बांटना  शुरू  कर  दूँ  -- वह  सच्चे  अर्थों  में  देवत्व  का  अधिकारी  बन  जाता  है  l '  पुराण  में  एक  कथा  है  ---- एक  बार  नारद जी  ने   ब्रह्माजी  से  पूछा  ---- देवता  और  असुर  दोनों  ही  आपकी  संतान  है  ,  फिर  देवताओं  को  अमृत  मिला  ,  असुरों  को  नहीं   l   आपकी  सृष्टि  में  यह  भेदभाव  क्यों  ?  '  ब्रह्माजी  ने  उत्तर  दिया  ---- '  देवर्षि  ! देवता  होना  या  असुर  होना   ,  मन:स्थिति  के  आधार  पर  तय  होता  है  ,  वंश  के  आधार  पर  नहीं   l   यदि  वंश  के  आधार  पर  कोई  देवता  बनता   तो  बलि , प्रह्लाद   या  विरोचन   देवता  क्यों  कहलाते    l   इनमें  से  सभी  असुरों  के  वंश  में  जन्मे  थे  ,  जबकि  रावण   सप्त  ऋषियों  के  वंश  में  जन्म  लेने  के  बाद  भी  राक्षस  ही  कहलाया  l     यह     निर्धारण  अंत:करण   की  उदारता   के  आधार  पर  है  l   जिसके  अंत:करण   में   उदारता  है  ,  वह  देवता  है  l    जिसके    अंत:करण   में    संकीर्णता  है  ,  जो  दूसरों  से  छीनने  का  भाव  रखता  हो     वह  असुर   है   l  "     ब्रह्माजी   ने   इस  बात  को  प्रयोग  द्वारा  स्पष्ट  करने  के  लिए  सांयकाल  के  भोजन  के  लिए   देवताओं  और  असुरों  को  आमंत्रित  किया  l   पहले  असुरों  को  बुलाया  l   भोजन  परोसा  गया  ,  तब  ब्रह्माजी  ने  कहा   कि   शर्त  यह  है  कि  इस  भोजन  को  बिना  कोहनी    मोड़े      ग्रहण  करना  है  l   असुर   इस  तरह  भोजन  ग्रहण  नहीं  कर  पाए  l   फिर  देवताओं  को  भोजन  के  लिए  बुलाया  गया  l   ब्रह्माजी  ने  उनके  सामने  भी  यही  शर्त  रखी   कि   बिना  कोहनी     मोड़े   भोजन  करना  है  l   सब  देवता  एक  दूसरे  के  सामने  बैठ  गए   और  बिना  कोहनी  मोड़े   सबने  अपने  सामने  बैठे  देवता  को  भोजन  खिला  दिया   l   इस  तरह  सभी  का  पेट  भर  गया  और  सब  संतुष्ट  हुए  l   यह  देखकर   देवर्षि   नारद   की  जिज्ञासा  का   समाधान    हो  गया    और  वे  समझ  गए   कि   देवता   वो  होते  हैं  जो  बांटना  जानते  हैं ,  जिनमे  उदारता   होती  है   l 

11 February 2021

WISDOM ------ ईर्ष्या में व्यक्ति स्वयं का अहित करता है

   एक  व्यक्ति  के  मरने  का  समय  आया   तो  देवदूत  उसे  लेने  पहुंचे  l    व्यक्ति  ने  जीवन  में  पुण्य  भी  किए   थे   और  पाप  भी  l   इसलिए  देवदूत  उसे  एक   पुस्तक  हाथ  में  देते  हुए  बोले  ---- " तुम्हारे  पुण्य  कर्मों  के  बदले   तुम्हे  यह  पुस्तक  देते  हैं   l   यह  नियति  की  पुस्तक  है  ,  इसमें  सारे  प्राणियों  का  भाग्य  लिखा  है  ,  तुम  चाहो  तो   इसमें  कोई  भी  एक  परिवर्तन   अपने  पुण्य  कर्मों  के  बदले  में     कर  सकते  हो   l  "  उस  व्यक्ति  ने  पुस्तक  के  पन्ने   पलटने   प्रारम्भ  किए   तो  उसमें  अपना  पन्ना  देखने  से  पूर्व  वह  दूसरों   के  भाग्य  के  पन्ने   पढ़ने  लगा  l   जब  उसने   अपने  पड़ोसियों  के  भाग्य  के  पन्ने   देखे   तो  उनका  भाग्य  देखकर  उसका  मन  विद्वेष   से  भर  उठा    l  वह  मन  ही  मन  बोला ---- मैं  कभी  इन  लोगों  को   इतना  सुखी  नहीं  होने   दूंगा   और  क्रोध  में  भरकर   वह  उनके  पन्नों  में   फेर - बदल  करने  लगा  l   देवदूतों  के  द्वारा   दिए  गए  निर्देश   के  अनुसार  परिवर्तन  एक  ही  बार  किया  जा  सकता  है   l   अत:  जैसे  ही  उसने   एक बदलाव  किया  ,  देवदूत  ने  वह  पुस्तक  उसके  हाथ  से  ले  ली    l   अब  वह  व्यक्ति  बहुत  पछताया   ,  क्योंकि  यदि  वह  चाहता   तो  अपनी  नियति  में  सुधार  कर  सकता  था  ,  पर  ईर्ष्यावश    वह  दूसरों  की  नियति  बिगाड़ने   में  लग  गया    और  यह  अवसर  गँवा  बैठा   l   मनुष्य  ऐसे  ही  जीवन  में  आये  बहुमूल्य  अवसरों   को   व्यर्थ  गँवा  देता  है   l   

WISDOM -----

  राजा  जनक   अपनी  साज - सज्जा  के  साथ     मिथिलापुरी  के  राजपथ  से  होकर  गुजर  रहे  थे   l   उनकी  सुविधा  के  लिए  सारा  रास्ता  पथिकों  से  शून्य   बनाने  में  राजकर्मचारी  लगे  हुए  थे   l  राजा  की  शोभा  यात्रा  निकल  जाने  तक    यात्रियों  को  अपने  आवश्यक   काम  छोड़कर   जहाँ - तहाँ   रुका  रहना  पड़   रहा  था   l         अष्टावक्र    को हटाया  गया   तो  उन्होंने  हटने  से  इनकार   कर  दिया   और  कहा ---- ' प्रजाजनों  के  आवश्यक  कार्यों  को   रोककर    अपनी  सुविधा  का  प्रबंध   करना  राजा  के  लिए  उचित  नहीं  है  l   राजा  अनीति  करे    तो  प्रजा  का  कर्तव्य  है  कि   उसे  रोके  और  समझाए   l   इसलिए  आप   राजा  तक  मेरा  सन्देश  पहुंचाएं   और  कहें  कि   अष्टावक्र  ने  अनुपयुक्त  आदेश   को  मानने   से  इनकार    कर  दिया  है   l   वे  हटेंगे  नहीं  और  राजपथ  पर  ही  चलेंगे  l   राज्याधिकारी  कुपित  हुए  और  अष्टावक्र  को  बंदी  बनाकर   राजा  के  पास  ले  गए  l   राजा  जनक  ने  सारा  किस्सा  सुना   तो  वे  बहुत  प्रभावित  हुए   और  कहा ---- ' इतने  तेजस्वी      व्यक्ति    जहाँ     मौजूद  है,  जो  राजा   को सत्पथ   दिखाने    का    साहस    करते  हैं    तो  वो  देश  धन्य    है   l   ऐसे  निर्भीक  व्यक्ति  राष्ट्र   की सच्ची  सम्पति   हैं  l   उन्हें  दंड   नहीं सम्मान  दिया  जाना  चाहिए   l   "  राजा  जनक  ने   अष्टावक्र    से क्षमा   मांगी   और  कहा   ----- "    मूर्खतापूर्ण   आज्ञा   चाहे  राजा   की  ही   क्यों    न   हों    ,  तिरस्कार   के  योग्य  हैं  l     आपकी  निर्भीकता  ने  हमें    अपनी  गलती   समझने     और  सुधारने   का  अवसर  दिया   l   आज   से आप   राजगुरु  रहेंगे   और   इसी  निर्भीकता   के  साथ    न्याय   पक्ष    का  समर्थन     करते   रहने     की   कृपा   करेंगे   l "  अष्टावक्र   ने प्रार्थना   जनहित   में    स्वीकार की    l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

8 February 2021

WISDOM ------ सद्बुद्धि जरुरी

  यदि  मनुष्य  के   पास सद्बुद्धि  हो,  विवेक  हो   तो   संसार  की  सभी  समस्याओं  का  आसानी  से  समाधान  हो  जाये   लेकिन  सद्बुद्धि  के  अभाव  में    उच्च  शिक्षित  और  उच्च  पदों  पर  बैठे  व्यक्ति  भी  हमेशा  समस्या  पर  चर्चा  करेंगे  ,  उसके  समाधान  के  बारे  में  गहराई  से  नहीं  सोचेंगे   l  विवेक  होने  पर  ही  हम  अपनी  जीवन  में  आये  अवसरों  को  पहचान  सकेंगे  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' दुर्भाग्य  मनुष्य  का  द्वार  तब  तक  खटखटाता   है  ,  जब  तक  वह  उसे  खोल  न  दे     जबकि      सौभाग्य   एक  बार    द्वार खटखटा  कर    धीरे  से  चला  जाता  है  l   अत:  हमें  हर   शुभ   अवसर  के  लिए  सजग  और  तैयार  रहना  चाहिए  l ' 

7 February 2021

WISDOM ------ आत्मविश्वास

   सारा  यूरोप   यूनान  की  फौजों  से  संत्रस्त  था  l   अजेय  समझी  जाने  वाली   यूनानियों  की  धाक  उन  दिनों  सब  देशों  पर  छाई  हुई  थी   l   यूनानी  फौजें  जिस  पर  भी  आक्रमण  करतीं  ,  वह  हिम्मत  हार  कर  बैठ  जाता   और अपनी  पराजय  स्वीकार  कर  लेता   l   रोम  के  सेनापति  सीजर  ने  देखा   कि   इस  व्यापक  पराजय  का  कारण   लोगों  में  व्याप्त   आत्महीनता  ही  है  ,  जिसके  कारण  उन्होंने  अपने  को    दुर्बल  और  यूनानियों  को  बलवान  स्वीकार  कर  लिया  है   l   इस  मन: स्थिति  को  बदला  जाना  चाहिए   l   सीजर  ने  अपने  देश  की  दीवारों  पर   यह  वाक्य  लिखवाया  ----- ' यूनानी  फौजें   तभी  तक  अजेय  हैं  ,  जब  तक  हम   उनके  सामने  घुटने  टेके   बैठे  हैं   l   आओ ,  तनकर   खड़े  हो  जाएँ   l  '  इस  वाक्य   का  रोम  की  जनता  पर  जादू   जैसा  असर  हुआ   l   जमकर  लड़ाई  लड़ी  गई    और  अजेय  समझा  जाने  वाला   यूनान  परास्त  हो  गया   l 

6 February 2021

WISDOM ------

     ऋषियों  का   कहना  है  कि ---- अहंकार  से   अज्ञान  उपजता  है  ,  इससे  व्यक्ति  को  दिशा भ्रम  हो  जाता  है  l   दिशा - भ्रम  होने  पर  व्यक्ति    न  करने  योग्य  करता  है   और  न  सोचने  योग्य  सोचता  है   l अहंकार  से  उपजे  अज्ञान  के  कारण  व्यक्ति  स्वयं  अपने  विनाश   को  निमंत्रण  दे  डालता  है   l   पुराण  में  एक  कथा  है  ---- एक  राजा  था   l   वह  राजा  स्वयं  और  उसकी  समस्त  प्रजा  गायत्री  साधना  करती  थी   एवं   एकादशी  का  व्रत  करती  थी  l   इसके  प्रभाव  से  उनके  राज्य  में  समस्त  प्रजा   बहुत  प्रसन्न  तथा  स्वस्थ  थी   और  मृत्यु  के  बाद   कोई भी  नरक  में  नहीं  जाता  था  l   इससे  यमराज  को  बड़ी  परेशानी  थी   l   संभवत:  स्वर्ग  में  बहुत  भीड़  हो  जाये  ,  यह  भी  बहुत  चिंता  की  बात  है   l   उन्होंने  अपनी   ब्रह्मा जी  से  कही   कि   ऐसा  कोई  उपाय  करें   जिससे  राज्य वासी  नरक  में  आने  लगें  l  ब्रह्मा जी  ने  पहले  तो  बहुत   मना    किया   फिर  यमराज  की  चिंता  को  समझते  हुए  बोले ---- तुम  किसी  भी  तरीके   से उस  राजा   के  अहंकार  को  जगाओ  ,  शेष  सभी  कार्य    अहंकार  से  उपजा   अज्ञान   स्वयं    कर  लेगा   l '     यमराज  का  प्रयत्न  सफल  हुआ   l   ---------------   ऋषि  कहते  हैं  ---- अशांति  का  मूल  कारण  स्वार्थ  और  अहंकार  है  l   और  इसके  समाधान   का  उपाय  है  ----  प्रेम , सात्विक  प्रेम ,   सेवा  और  परोपकार  l   इससे  स्वार्थ  और  अहंकार  गलता  है   और  ईश्वर  का  सान्निध्य  प्राप्त  होता  है   l 

5 February 2021

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---  ' लोकसेवियों  के  पतन  का  कारण  मुख्य  रूप  से  तीन  दुष्प्रवृत्तियाँ  हैं  ---- वासना , तृष्णा  और  अहंता  l   वासना  और  तृष्णा  की  दौड़  तो  व्यक्ति  को  थकाती   है  ,  पर  अहंता   का मुख  तो   सुरसा  के  मुख  से  भी  ज्यादा  विशाल  है  ,  जो  व्यक्ति  का  सर्वनाश  किए   बिना    चैन    से      नहीं  बैठता  l    अहंता  के  भूखे  को  दुनिया  जहान   की  सारी  प्रशंसा , सारा  यश , सारा  मान - सम्मान ,  सारा  बड़प्पन,  सारे   अधिकार ,  सारी  सत्ता   अपने  ही  हाथों  में   देखने  का  पागलपन   सवार  हो  जाता  है   l  '    आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ---- " इस  संसार  के  इतिहास  में  सबसे  ज्यादा  अपराध   इसी  अहंता  के  कारण  हुए  हैं  l   रावण  से  लेकर   कंस , दुर्योधन    को  उनकी  अहंता  ही  ले  डूबी   l  अहंकार   ही  है   जिसके  कारण  लोग  आपस  में  लड़ते  हैं   l   प्रतिशोध , उत्पीड़न   इन  सबका  कारण  अहंता  ही  है   l  कथा  चाहे  रावण  की  हो  या  हिरण्यकशिपु   की   या    सिकंदर ,  तैमूरलंग , चंगेज  खां ,  शिशुपाल  की    ----  इन  सबके  अंत  का  कारण   उनके  सिर   पर  सवार  अहंता  ही  रही  l   यह  अहंता  ही  है  जो  इन  चक्रवर्ती  सम्राटों  को  ले  डूबी  l   आचार्य श्री  कहते  हैं ---- इस  दुष्प्रवृति  से  सदा  व  निरंतर  सावधान  रहने  की  आवश्यकता  है   l '

4 February 2021

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' आलोचनाओं  का  जवाब   देने  में  जो  शक्ति  और  ऊर्जा  खरच   होती  है  ,  उससे   कई  रचनात्मक  कार्य  किए   जा  सकते  हैं  l   जो  आलोचनाओं  की  परवाह  किए   बिना   अपने  कार्य  पर  ध्यान  देते  हैं  ,  वे  ही  कुछ  अच्छा  कर  पाते   हैं   l   इसलिए  आलोचना  तो  सुननी   चाहिए  l  यदि  वास्तव    में  आलोचना  के  अनुसार   हमारे  अंदर  कमियां  हैं  ,  तो  उन्हें  दूर  करने  का  प्रयास  करना  चाहिए   ,  न  कि  आलोचना  करने  वाले  की   निंदा  करनी  चाहिए   l '

WISDOM -----

  इसे  मनुष्य  की  दुर्बुद्धि  ही  कहेंगे  कि   वे  अपनी  कमियों  की  ओर   नहीं  देखते  , अपनी   गलतियों को  सुधार  कर  अपनी  जड़ों  को  मजबूत  नहीं  करते     बल्कि    अपनी  सारी  ऊर्जा   दूसरों  की  कमियाँ   निकालने   तथा  दूसरों  की   जड़ें  हिलाने   में  गँवा  देते  है   l   इसका  परिणाम  बड़ा  दुःखदायी   होता  है  l   महाभारत  का  यह  प्रसंग  इसी  सत्य  को   बताता  है  ------  महाभारत  का  एक  पात्र  है  --- ' शकुनि '  , जो  बहुत  ही  धूर्त , कुटिल  और  षड्यंत्र  करने  में  माहिर  था   l   शकुनि  गांधार  नरेश  था  ,  लेकिन  वह  हमेशा   अपनी  बहन  गांधारी  के  पास  हस्तिनापुर  में  ही  रहा   l   शकुनि  जैसा  व्यक्ति     अपनी  बहन  गांधारी   जो    महान  पतिव्रता  थी ,  गुरु  द्रोण ,  भीष्म  पितामह   जैसी  महान  विभूतियों  के  बीच  रहने  पर  भी  अपनी  कुटिलता  को  नहीं  छोड़  सका  l  सारा  जीवन  वह   दुर्योधन  के  मन  में  विषबीज  बोता    रहा   l   अपने  भानजे   दुर्योधन  को  युवराज  बनाने  के  लिए   उसने   पांडवों  को  रास्ते  से  हटाने  के  _लिए  अनेकों  षड्यंत्र  रचे   l  भीम  को   खीर  में  जहर  पिलाया , पांडवों  को  अग्नि  में  भस्म  करने   हेतु    लाक्षागृह  का  षड्यंत्र  रचा   ,  फिर   पांडवों  को  जुए  के  लिए  चुनौती  देकर   उनको  बहुत  अपमानित  किया   l  इन  सब  षड्यंत्रों  का  परिणाम  हुआ  --- महाभारत   l   शकुनि  खुद  तो  डूबा  ,  अपने  साथ  पूरे   कौरव  वंश  को  ले  डूबा  l  महाभारत  में  शकुनि  तो  मारा  गया  ,  उसके  षड्यंत्रों  में   उसके  भागीदार  होने  के  कारण    कौरव वंश  का  ही  अंत  हो  गया   l  कोई  आँसू   पोछने  वाला  भी  नहीं  बचा  l  

3 February 2021

WISDOM ------ एक छोटी सी चूक का कितना बड़ा परिणाम

  हम  सब  इनसान   हैं   और  हम  सब  से  गलतियाँ    होती  है  l   कभी  - कभी  विवेकहीनता   के  कारण    एक  छोटी  सी  गलती   बहुत  बड़े  दंगे  में  बदल  जाती  है  l   इसे  ही  समझाने   के  लिए   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  एक  कहानी  कहते  हैं -----    कलिंग  देश  का  राजा  नाश्ते  में   दही  और  शहद  खा  रहा  था  l    अधिकारियों   से  आवश्यक  बातें  भी  कर  रहा  था  कि   थोड़ा  सा  शहद  जमीन  पर  गिर  गया   l   राजा  तो  दरबार  में  चला  गया   l   शहद  गिरने  से   जमीन  पर     बहुत मक्खियाँ   आ   गईं  l     उन  मक्खियों  को  खाने  के  लिए  बहुत  सी  छिपकली  आ   गईं  l   अब  उन  छिपकलियों  को  खाने  के  लिए  बिल्ली  आ  गई  l यह  सब  देख  कहीं  से  एक  कुत्ता  आ  गया  , उसने  बिल्ली  को  पकड़  लिया  l   नए  कुत्ते  को  अपने  क्षेत्र  में  आया  देख  मोहल्ले  के  चार -  पांच   कुत्ते  उससे   लड़ने  आ  गए   l   बिल्ली   तो भाग  गई  , वे  कुत्ते  आपस  में  बहुत  देर  तक  लड़ते  रहे  , एक - दूसरे  को  घायल  कर  दिया  l   इस  बीच  उन  कुत्तों  के  मालिक  आ  गए  l   अपने  कुत्ते  को  घायल  देख   वे  आपस  में  बहस  करने  लगे  ,  बात  बढ़   गई ,  उनमे   आपस में  मारपीट  हो  गई   l   वे  ब्राह्मण  और  ठाकुर  थे  l   ब्राह्मणों  को  पता  चला  कि   ठाकुर  ने  ब्राह्मण  को  पीट   दिया  ,  यह  अपमान  वे  सह  न  सके   l    पूरे   शहर  के  ब्राह्मण  और  ठाकुर  इकट्ठे  हो  गए   और  दंगा  हो  गया  l   शहर   में ऐसा  बलवा  देख   वहां  के  चोर - डाकुओं  को  मौका  मिल  गया  , उन्होंने  राजा  का  खजाना  लूट  लिया  l   यह  सब  देख  राजा  बहुत  दुखी  हुआ  ,  उसने  कमेटी   बिठाई   l   दंगा  क्यों   हुआ ,  इसकी  तह  में  जाने  के  लिए  योग्य  अधिकारियों   को  नियुक्त  किया  l   कमेटी   ने  रिपोर्ट   दी  तब  पता  लगा    कि   राजा  की  लापरवाही  से  शहद  गिर  गया  ,  उसी  की  वजह  से  यह  सब  दंगा  हुआ   l   ' इसलिए  आचार्य श्री  कहते  हैं   कि   यह  सारा  ढांचा  हमारी  विवेकशीलता  पर  टिका  हुआ  है  l 

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' यदि  संगठित  रूप  से   अत्याचार , अन्याय  का   प्रतिरोध  किया  जाए   तो  शक्तिशाली  बर्बरता  को  भी  परास्त  किया  जा  सकता  है   l   एक  कहानी  है -----  एक  पेड़  पर   चिड़िया  का  घोंसला  था   l   उसी  पेड़  के  नीचे  चींटी  का  बिल  भी  था  l   चींटी  और  चिड़िया  में  गहरी  दोस्ती  थी  l   उस  घोंसले  में  चिड़िया  के  छोटे - छोटे  बच्चे  थे  l  जब  चिड़िया  उन  बच्चों  के  लिए  दाना  लेने  जाती  तब  चींटी   वहीँ  पेड़  के  आसपास  रहकर   उसके  बच्चों  की   सुरक्षा  का  ध्यान  रखती  l   एक  दिन  चिड़िया  दाना  लेने  गई  हुई  थी  ,  तभी  वहां  से  एक  मदमस्त  हाथी   निकला  l   चींटी  ने  दौड़कर  उस  हाथी   को सचेत  किया   कि  तुम  इस  पेड़  से  दूर  होकर  निकलो  ,  इसमें  चिड़िया  के  घोंसले  में  छोटे  बच्चे  हैं  l लेकिन  हाथी  को  तो  अपनी  शक्ति  का  अहंकार  था  ,  उसने  चींटी  की  उपेक्षा  कर  दी  और  अपनी  सूँड   से  पेड़  को  जोर  से  हिला  दिया  ,  उसकी  कुछ  डालें  भी  तोड़  दीं  l   चिड़ियाँ  का  घोंसला  टूट  गया  ,  उसके  बच्चे  भी  गिरकर - दबकर  मर  गए  l  चींटी  बहुत  उदास  हो  गई  ,  जब  चिड़िया  आई   तो  सब  कुछ  बिखरा  हुआ  देखकर  दोनों  खूब  फूट -फूटकर  रोईं  l   फिर   दोनों ने   परस्पर  धैर्य  बँधाया   और  कहा  कि   ऐसे  रोने  से  काम  नहीं  चलेगा  l   आज  हाथी  ने  अपने  अहंकार  में  हमारा  घोंसला  तोड़ा  है  ,  कल  किसी  और  का  तोड़ेगा  l   दोनों  ने  मिलकर  उस  हाथी  को  ढूँढ़   लिया  ,  जब  हाथी  सैर  को  निकला   तो   चिड़िया  उसके  चारों  और  चीं - चीं   कर  उड़ने  लगी  l   हाथी  समझ  गया  ,  बोला --- तू  छोटी  चिड़िया  मेरा  क्या  बिगाड़ेगी ,  तुझे   तो  मैं      एक  ही  बार  में  कुचल  दूंगा  l   हाथी  अपने  अहंकार  में  था  ,  मौका  पाकर   चींटी  उसकी  सूँड   में  घुस  गई  l     अब  तो  हाथी  चिंघाड़ने   लगा  ,------ छोटी  सी  चींटी  ने  हाथी  को  परास्त  कर  दिया  l   वह  समझ  गया  कि   ईश्वर  ने  यदि  हमें   कोई  शक्ति  दी  है   तो  हमें  कमजोर  की  रक्षा  करनी  चाहिए  ,  उस  पर  अत्याचार  नहीं  करना  चाहिए   l 

1 February 2021

WISDOM ------ गलत मार्ग पर चलने की परिणति

    रावण  की  जब  मृत्यु  हुई  ,  तब  उसके  शरीर  में  हजारों  छिद्र  थे  l   लक्ष्मण जी  ने  रामचंद्र जी  से  पूछा  ----   आपने  रावण  को   एक  ही  बाण  मारा    था  लेकिन  रावण   के  शरीर में   हजारों    छिद्र  कैसे  हैं   ?  तब  भगवान  ने  कहा  ----  ये  रावण  के  पाप  हैं ,  उसके  गुनाह  हैं  l   रावण  बहुत  बलवान  था  ,  उसने  सोने  की  लंका  बनाई ,   उसने  सब  देवताओं     को   पकड़  लिया  था  l   लेकिन  सीता  हरण  करना  उसका   ऐसा   पापकर्म   था   जिसने   उसे  कमजोर  बना  दिया  l   लंकेश  जिसके  दरवाजे  पर  असंख्य  लोग  पलते   थे  ,  उस  बेचारे  को  सीता   हरण  के  लिए  भिखारी  बनना  पड़ा   और  वह  भी  इधर - उधर  देखकर  कि   उसे  कोई  देख  तो  नहीं  रहा  है   l   गलत  रास्ते  पर  कदम  रखने   के कारण  उसकी  दशा  बहुत  दयनीय  हो  गई  थी   l  रामायण  में  भी  यही  लिखा  है  --- यदि  व्यक्ति  गलत  रास्ते  पर  कदम   उठाना  शुरू  कर  देता  है   तो   उसका तेज , बल , बुद्धि   सारे   के  सारे  सद्गुण   नष्ट हो  जाते  हैं