पुराण की एक कथा है ---- दैत्यकुल के महाराज बलि इंद्रासन पर प्रतिष्ठित थे l यह बात देवताओं को सहन नहीं हो रही थी l महाराज बलि महान तपस्वी थे , वे स्वर्ग के भोग - विलास , राग - रंग में मगन नहीं थे , उनका हर क्षण , हर पल श्रेष्ठ कर्मों में नियोजित रहता था l उनका अपरिमित बल था , उनकी भक्ति भी असाधारण थी l वे तपस्वी के साथ एक सच्चे भक्त भी थे l वामन बनकर भगवान विष्णु उनके पास गए और कहा --- " बलि ! मुझे तीन पग जमीन दान में दे दो l ' गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें भगवान विष्णु के इस छल के प्रति आगाह भी किया था लेकिन बलि ने कहा --- हे गुरुवर ! स्वयं भगवान मेरे द्वार पर याचक बन कर आएं , तो मैं उन्हें कैसे मन कर सकता हूँ l "
भगवान विष्णु ने दो पग में धरती - आसमान नाप लिए , अब तीसरा पग कहाँ रखें , बलि ने कहा -- इसे मेरे सिर पर रखें l भगवान ने बलि के सिर पर पाँव रखकर उसे पाताल भेज दिया l महाराज बलि का समस्त साम्राज्य छिन गया , अब वे साधारण इनसान की भांति पाताललोक में रहने लगे l यह स्थिति उनके परिजनों को मंजूर नहीं थी कि वे इतनी साधारण स्थिति में रहें l तब महाराज बलि ने उन्हें समझाया ---- " काल की बड़ी महिमा है l काल की महिमा से जो अवगत होते हैं , वे उसको प्रणाम कर के उसके अनुकूल स्वयं को ढाल लेते हैं l आज काल हमारे साथ नहीं खड़ा , अत: ऐसे विपरीत समय में कोई ज्ञान , कोई तप , कोई साधन काम नहीं आते l काल की इस विपरीत दशा में हमें शांत एवं स्थिर बने रहना चाहिए l प्रभु द्वारा निर्धारित स्थान पर रहकर , अपनी भक्ति के सहारे आने वाले अनुकूल समय की प्रतीक्षा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है l इस समय कोई प्रयास - पुरुषार्थ काम नहीं आता l इस समय कोई अपना भी साथ नहीं देता है , केवल भगवान ही सुनता है और साथ देता है l '
भगवान विष्णु ने दो पग में धरती - आसमान नाप लिए , अब तीसरा पग कहाँ रखें , बलि ने कहा -- इसे मेरे सिर पर रखें l भगवान ने बलि के सिर पर पाँव रखकर उसे पाताल भेज दिया l महाराज बलि का समस्त साम्राज्य छिन गया , अब वे साधारण इनसान की भांति पाताललोक में रहने लगे l यह स्थिति उनके परिजनों को मंजूर नहीं थी कि वे इतनी साधारण स्थिति में रहें l तब महाराज बलि ने उन्हें समझाया ---- " काल की बड़ी महिमा है l काल की महिमा से जो अवगत होते हैं , वे उसको प्रणाम कर के उसके अनुकूल स्वयं को ढाल लेते हैं l आज काल हमारे साथ नहीं खड़ा , अत: ऐसे विपरीत समय में कोई ज्ञान , कोई तप , कोई साधन काम नहीं आते l काल की इस विपरीत दशा में हमें शांत एवं स्थिर बने रहना चाहिए l प्रभु द्वारा निर्धारित स्थान पर रहकर , अपनी भक्ति के सहारे आने वाले अनुकूल समय की प्रतीक्षा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है l इस समय कोई प्रयास - पुरुषार्थ काम नहीं आता l इस समय कोई अपना भी साथ नहीं देता है , केवल भगवान ही सुनता है और साथ देता है l '