13 November 2019

WISDOM ------

  श्रीकृष्ण  को  अपनाने  के  बाद  संकटों  में  ग्रस्त  मीराबाई   मानसिक  क्लेश  से  गुजर  रहीं  थीं  ,  उन्होंने  गोस्वामीजी  को  पत्र   लिखा  l   गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  उनकी  दुविधा  समझी    और  अपनी  सलाह   एक  पंक्ति  के  माध्यम  से  लिख  दी  l  ' विनय  पत्रिका '  की  यह  पंक्ति  हम  सबके  लिए  जीवन  संजीवनी  के  समान   है   l   गोस्वामी जी  लिखते  हैं ----
   " जाके  प्रिय  न  राम  वैदेही   l 
                    तजिये   ताहि   कोटि  बैरी  सम ,  जद्दपि   परम  सनेही   l l
                    तज्यो  पिता  प्रह्लाद ,  विभीषण  बंधु ,  भरत  महतारी  l
                     बलि  गुरु  तज्यो  कंत   ब्रज  बनितन्हि ,  भये  मुद  मंगलकारी   l l
   जाके  प्रिय  न  राम  वैदेही   l  "
    पं  .  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- " जब - जब  इसे  मैं  पढ़ता   हूँ    तो  हिम्मत  और  ताकत  से  भर  जाता  हूँ   l   भावार्थ  यह  है  कि  -- चाहे  कोई  कितना  ही  प्रिय  हो  ,  यदि  वह  भगवान   के  कार्य  में  ,  उनसे  मिलने  की  हमारी  साधना   में  बाधक  हो  तो   उसे  छोड़  देना  चाहिए   l   प्रह्लाद  ने  पिता  को  त्यागा ,  विभीषण  ने  भाई  रावण  से  संबंध - विच्छेद  किया ,  भरत  ने  अपनी  माँ  को  त्यागा  ,  गलत  परामर्श  देने  के  कारण   बलि  ने  गुरु  शुक्राचार्य  को  को  छोड़ा   l   व्रज  में  गोपिकाओं  ने   अपने  सगे - संबंधियों   को  छोड़कर   श्रीकृष्ण  का  वरण   किया  l   हम  भी  कभी  राम  को  न  भूलें   l   कोई  भी  आकर्षक  प्रस्ताव   चाहे  वह  कितने  ही  तुरंत  लाभ  का  हो  ,  यदि  भगवान   के  कार्य  में  बाधक  हो   तो  उसे  अपना  सबसे  बड़ा   वैरी  मानकर  छोड़  देना  चाहिए   l