16 July 2020

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' मनुष्य  मूलत:  संवेदनशील  प्राणी  है   किन्तु    हीन   परिस्थितियों  और  संगति   में   पड़कर  वह   आक्रामक  और  पशुभावों   को  अपनाकर  पशु तुल्य  प्रतीत  होने  लगता  है  l  '
मनुष्य   स्वभावत:  कठोर  नहीं  है    परन्तु  आज  समाज  में  विषमता  इस  कदर  बड़ी  है   कि   विवशता  में  पड़कर   व्यक्ति   असुरता  और  आक्रामकता  की   ओर   फिसल  पड़ता  है  l   किसी  के  पास  कुबेर  जैसी  संपति   है   तो  कहीं  भूखों  मरने  की  नौबत  है  l   पेट  की  ज्वाला    व्यक्ति  को  बुरे  कामों  की  ओर   ले  जाती  है   और  उसे  इनसान   से  शैतान  बना  देती  है  l
सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि  जिनके  पास  शक्ति  है ,  अपार  धन - संपदा   है  ,  उनकी  तृष्णा , लोभ - लालच  किसी  तरह  कम   नहीं  होता   l   वे  अपनी  संपदा ,  अपनी  शक्ति  को  और  ---- और  अधिक  बढ़ाना  चाहते  हैं  ,  इसके    लिए  भ्रष्टाचार , बेईमानी  ,  कमजोर  का  शोषण  आदि  अनैतिक  तरीके  अपनाते  हैं  l   गरीब  और  कमजोर  तो  अपनी  रोटी - रोजी  की   चिंता   में  ही  घुल  रहा  है  ,  वह  किसी  को  क्या  परेशान    करेगा   l   आज  संसार  में  जो  समस्याएं  हैं  वे  अमीरों  और  शक्तिसम्पन्न  लोगों  की  देन   हैं   l   उनकी  विकृत  और  असीमित  महत्वाकांक्षाओं   का  परिणाम  सामान्य - जन  भुगतता  है  l
  हर  क्रिया  की  प्रतिक्रिया  होती  है  l  दमन , शोषण  , उत्पीड़न  और  अत्याचार    की  प्रतिक्रिया   समाज  में  क्रोध ,  आक्रामकता  आदि  विभिन्न  रूपों  में  दिखाई  पड़ती  है  l