5 October 2019

WISDOM ------

 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कथन  है --- " जीवन  का  अर्थ  है  समय  ,  जो  जीवन  से  प्यार  करते   हों   वे  अपना  समय  व्यर्थ  न  गंवाएं  l  "
आचार्य जी  के  अनुसार  --- हमारा  जीवन  ही  समय  है  ,  हमारा  समय  समाप्त  होने  पर  जीवन  ही  समाप्त  हो  जायेगा  l
जीवन में  जो  भी  कार्य  करने  हैं   वे  इसी  शरीर  से  संभव  है   l  अत:  जरुरी  है   कि  शरीर  स्वस्थ  व  रोगमुक्त  रहे   l     एक  कथा  है ---- भगवान  बुद्ध   एक  गाँव  में  ठहरे  हुए  थे  l  उनके  दर्शन  व  सत्संग  के  लिए  अनेक  व्यक्ति  आते  थे   l  इसी  क्रम  में  एक  धनी व्यक्ति  उनके  दर्शन  के  लिए  पहुंचा  l l  उसका  शरीर  भारी - भरकम  था ,  सेवकों  की  मदद  से    कठिनाई  से  चल  रहा  था  l  झुक  नहीं  पा  रहा  था  , अत:  खड़े - खड़े  अभिवादन  कर  बोला  --- " भगवन  !  मेरा  शरीर  अनेक  व्याधियों  का  घर  बन  चुका  है  l  रात  को  न  तो  नींद  आ  पाती  है   और  न  ही  दिन  में  चैन  से  बैठ  पाता  हूँ  l   मुझे  रोग मुक्ति  का  साधन  बताने  की  कृपा  करें  l " 
भगवान  बुद्ध  उसकी  और  करुणा  भरी  द्रष्टि  से  देखते  रहे  , फिर  बोले  ---- " भंते  !  शारीरिक  श्रम  का  अभाव , प्रचुर  भोजन  करने  से  उत्पन्न  आलस्य ,  भोग  व  अनंत  इच्छाओं  की  कामना  ---- ये  सब  रोग  पनपने  के  कारण  हैं   l  जीभ  पर  नियंत्रण  रखने , संयम पूर्वक  सादा  भोजन  करने ,  शारीरिक  श्रम  करने ,  सत्कर्मों  में  रत  रहने  और  अपनी  इच्छाएं  सीमित  करने  से  ये  रोग  विदा  होने  लगते  हैं   l  असीमित  इच्छाएं  और  अपेक्षाएं  शरीर  को  घुन  की  तरह  जर्जर  बना  डालती  हैं  ,  इसलिए  उन्हें  त्यागो  l  " 
    सेठ  को    भगवान  बुद्ध   की   बातों   का  मर्म   समझ  में   आ  गया   और  संयमित  जीवन शैली  अपनाने  से  कुछ  ही  दिनों    उसने  स्वास्थ्य   लाभ  प्राप्त    किया   l    अब  वह  पुन:  भगवान  बुद्ध    मिलने  आया  l इस  बार  वह  सेवकों    बिना   अकेले  ही   आया  ,   झुककर  प्रणाम  किया   और  बोला ----- " शरीर  का  रोग  तो  आपकी  कृपा  से  दूर  हो  गया   , अब  चित  का  प्रबोधन  कैसे  हो  ?  "
बुद्ध  ने  कहा --- " अच्छा  सोचो , अच्छा  करो  और  अच्छे  लोगों  का  संग  करो   l  विचारों  का  संयम  चित  को  शांति  व  संतोष  देगा  l "   बुद्ध  के  बताये  मार्ग  पर  चलकर    अपने  शरीर  को  शारीरिक  व  मानसिक  द्रष्टि  से  स्वस्थ  रखकर  सेठ  ने  अपने  जीवन  को  सार्थक  किया   l