अनाचारी और अधर्मी स्वयं को सबसे अधिक शक्तिशाली मानते हैं , उन्हें यह गलतफहमी हो जाती है कि उनका कोई बाल-बांका भी नहीं कर सकता l ऐसे लोग अपने से अधिक सामर्थ्यवानों से नहीं टकराते , ये ऐसे लोगों को सताते हैं जो पहले से ही हैरान , परेशान और पीड़ित होते हैं l कमजोर और दुर्बल जन जब इस अत्याचार का प्रतिरोध नहीं कर पाते तो इनका हौसला बढ़ जाता है और ये और अधिक अत्याचार करने पर उतारू हो जाते हैं l
अत्याचारी और अनाचारी ह्रदयहीन और कायर होते हैं , ये अशक्त , निरीह , बूढ़े और बच्चों पर भी निर्ममता से वार करते हैं किन्तु इन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं होता , इनका अंतर भय और अविश्वास से परिपूर्ण होता है l ये सदा डरते रहते हैं कि कोई अधिक बलशाली इनके वर्चस्व को समाप्त न कर दे l
हमारे धर्मग्रंथों में इसके उदाहरण हैं --- वानरराज बाली स्वयं बहुत बलवान था और उसे यह वरदान था कि जो भी उसके सामने आयेगा उसका आधा बल उसके ( बाली ) पास आ जायेगा , किन्तु फिर भी वह भयभीत रहता था उसने अजन्मे हनुमान , जो माता अंजनि के गर्भ में पल रहे थे , को भयानक विष देकर मारने का उपक्रम किया और इसमें असफल होने के उपरांत उसने हर वह षड्यंत्र किया , जिससे नवजात हनुमान समाप्त हो जाएँ l
इसी तरह अधर्मी मामा कंस ने अपनी ही बहन की सात नवजात संतानों को मौत के घाट उतार दिया l आखिर इन अत्याचारियों का अंत हुआ l इनके दुष्कर्मों का परिणाम आने में देरी भले ही हो , परन्तु जिस अज्ञात भय , असंतोष और अशांति की पीड़ा से इनका समय गुजरता है , वह बड़े - से - बड़े दंड से कम नहीं होता है l कर्मफल से कोई नहीं बचा है l
अत्याचारी और अनाचारी ह्रदयहीन और कायर होते हैं , ये अशक्त , निरीह , बूढ़े और बच्चों पर भी निर्ममता से वार करते हैं किन्तु इन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं होता , इनका अंतर भय और अविश्वास से परिपूर्ण होता है l ये सदा डरते रहते हैं कि कोई अधिक बलशाली इनके वर्चस्व को समाप्त न कर दे l
हमारे धर्मग्रंथों में इसके उदाहरण हैं --- वानरराज बाली स्वयं बहुत बलवान था और उसे यह वरदान था कि जो भी उसके सामने आयेगा उसका आधा बल उसके ( बाली ) पास आ जायेगा , किन्तु फिर भी वह भयभीत रहता था उसने अजन्मे हनुमान , जो माता अंजनि के गर्भ में पल रहे थे , को भयानक विष देकर मारने का उपक्रम किया और इसमें असफल होने के उपरांत उसने हर वह षड्यंत्र किया , जिससे नवजात हनुमान समाप्त हो जाएँ l
इसी तरह अधर्मी मामा कंस ने अपनी ही बहन की सात नवजात संतानों को मौत के घाट उतार दिया l आखिर इन अत्याचारियों का अंत हुआ l इनके दुष्कर्मों का परिणाम आने में देरी भले ही हो , परन्तु जिस अज्ञात भय , असंतोष और अशांति की पीड़ा से इनका समय गुजरता है , वह बड़े - से - बड़े दंड से कम नहीं होता है l कर्मफल से कोई नहीं बचा है l