11 July 2020

WISDOM ------

  प्रसंग  है -- मार्डन  रिव्यू '  और  ' प्रवासी ' नामक  पत्रों  के  संपादक  रामानन्द   चट्टोपाध्याय  के  जीवन  का  -----  एक  बार  वे  गंगा  में  नहाते  हुए  भँवर  में  फँस   गए  ,  डूबने  वाले  थे  कि   एक  नवयुवक  ने  अपनी  जान  पर  खेलकर  उन्हें  बचा  लिया   l   उस  बात  को  लगभग  दो  माह  बीत  गए  l   एक  दिन  वह  नवयुवक   अपनी  एक  रचना   लेकर   उनके  पास  पहुंचा  l  रामानंद जी  ने  उसका  स्वागत - सत्कार  किया , उनकी  आँखों  में  कृतज्ञता  का  भाव   था  l   उन्होंने  आने  का  कारण  पूछा   l
  युवक  ने  कहा  कि   यह  रचना  वह  उनके  पत्र  में  छपवाना  चाहता  है  l   उन्होंने  बहुत  ध्यान  से  उस  लेख  को  पढ़ा ,  और  पढ़कर  उसे  थमाते   हुए  बहुत  दुःख  से  कहा -- यह  मेरे  पत्र  में  नहीं  छप   सकेगा  l
  युवक  ने  कहा --- ' क्यों  नहीं  छपेगा  ,  क्या  आप  भूल  गए  कि   मैं  वही  हूँ   ,  वह  अपनी  बात  पूरी  करता  इसके  पहले  रामानंदजी  बोले  --- ' जिसने  मेरी  जान  बचाई   l    मैं   आपके  प्रति  कृतज्ञ  हूँ  लेकिन  यह  लेख  नहीं  छाप  सकता  l   तुमने  मेरे  प्राण  बचाये  ,  तो  अब  मैं  तुम्हारे  साथ  चलता  हूँ  ,  तुम  मुझे  गंगा  में  डुबो  दो  l '  कहने  के  साथ  ही  वे  चलने  को  तैयार  हो  गए  l   युवक  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   उसने  कारण  पूछा  l
  रामानंदजी  ने  कहा ---- '  संपादक  का  कर्तव्य  है ,  जिसके  तहत  मेरी  जिम्मेदारी  है  कि  समाज  का  पथ - प्रदर्शन  करूँ  ,  मनुष्य  को  जीवन  जीना  सिखाऊं  l   इसकी  जगह  मैं  उसमे  पशुता , कुत्सा   कैसे  भड़का  सकता  हूँ   l   यह  मुझसे  न  हो  सकेगा  l   जीवन  तो  एक  न  एक  दिन  समाप्त  होना  है  l   मैं  तुम्हारा  ऋणी  हूँ  लेकिन  कृतज्ञता  के  मोल  के  लिए  कर्तव्य  की  बलि  नहीं  दे  सकता  l  '
उनके  विचारों  से  युवक  के  जीवन  में  परिवर्तन  आया  , उसने  लेखन  सीखने   का  निश्चय  किया  l 

WISDOM ------

  जार्ज  बर्नार्ड शा   को  जीवन  में  नव  - पथ  पर  चलने  की  आदत  थी   ,  व्यापारी  के  साधारण   पुत्र   थे   और  साहित्यिक  जगत  में  उच्च  सम्मान  पाया  l  उनकी  महान  साहित्यिक  सेवाओं   के  उपलक्ष्य  में   उनको  ' लार्ड '  की  पदवी    देने  का  प्रस्ताव  किया   तो   उन्होंने  उसे     सधन्यवाद   वापस  कर  दिया  l
      बर्नार्ड  शा  स्वयं  अपनी    आलोचना  करने  में  पीछे  नहीं  हटते   थे  l  उन्होंने  आरंभिक  अवस्था  में  तीन  उपन्यास  लिखे  l   आगे  चलकर  स्वयं  ही  उनकी  बड़ी  खिल्ली  उड़ाई  l   उन्होंने  लिखा  कि   मेरी  पहली  कहानी  तो  इतनी  घटिया  थी  कि   उसे  चूहों  ने  भी  कुतरने  से  इन्कार   कर  दिया  l
  बर्नार्ड  शा  ने  नाटक  लिखे ,  उनका  एक  नाटक  था  ' मिसेज  वारेन्स   प्रोफेशन ' ( श्रीमती वारिन का पेशा )   इसमें  समाज  में  फैली  दुष्प्रवृतियों  पर  आक्रमण  किया  गया  l  इसमें  दिखलाया  गया  कि   जो  लोग  समाज  में   ऊपर  से  ' सज्जन '  और  ' सभ्य '  बने  रहते  हैं  ,  उनमे  से  कितनों  का  ही   भीतरी  जीवन  कैसा  पतित  होता  है   l   यह  रचना  प्रकाशित  होते  ही  अश्लील  बताकर  जब्त  कर  ली  गई   थी  l   पर  1924  में  इस  पर  से  निषेधता  हटा  ली  गई   और  अब  इसे  अश्लील  के  बजाय   सच्चरित्रता  की   शिक्षा  देने  वाला  माना  जाता  है  l
 इसकी  मुख्य  शिक्षा   यही  है   कि ---- मनुष्य  जैसा  विश्वास   रखता  हो   वैसा  ही  जीवन   उसे व्यतीत  करना   चाहिए  l   दुरंगा  व्यक्तित्व  रखना  नीचता  का  लक्षण  है  l