लघु -कथा ----- बुरी संगति से जीवन कैसे पतन के गर्त में चला जाता है , इस सत्य को बताने वाली एक कथा है ---- एक चित्रकार ने एक अति सुंदर बालक का चित्र बनाया l चित्र बहुत ही सुंदर बना, उसकी लाखों प्रतियाँ बिक गईं l वर्षों बाद चित्रकार को सूझा कि वह एक अत्यंत दुष्ट और भयानक अपराधी का चित्र बनाए जिसको देखकर ही मन में घ्रणा का भाव आ जाए l इसके लिए वह कारागार और दुराचारियों के आवास स्थान आदि ठिकानों पर गया l कारागार में उसे एक भयानक आकृति का खूंखार कैदी मिला l उसने उससे कहा --- ' मैं तुम्हारा चित्र बनाना चाहता हूँ l " कैदी ने पूछा --- 'क्यों ? ' तब चित्रकार ने उसे अपना विचार बताते हुए उसे बालक का चित्र दिखाया l कैदी उस चित्र को देखकर रोने लगा और बोला --- ' यह चित्र मेरा ही है , यह सुंदर , सौम्य बालक मैं ही हूँ l ' चित्रकार हतप्रभ रह गया और कहने लगा ---- यह परिवर्तन कैसे हो गया ? ' कैदी की आँखों से आंसू थम नहीं रहे थे , वह रुँधे गले से बोला ---- बुरी संगति से मैं अपने जीवन की राह भटक गया और दुष्प्रवृतियों में फंस जाने के कारण मेरी यह दुर्गति हो गई l ' आचार्य श्री लिखते हैं --- जब जागो तब सवेरा , कुछ पतन के गर्त में जाकर भी महामानवों का अवलंबन लेकर , श्रेष्ठ साहित्य के अध्ययन से अपने को सुधार लेते हैं और मँझधार में फँसी अपनी नाव को खे ले जाते हैं l स्वयं को सुधारने का संकल्प जरुरी है l '
2 June 2022
WISDOM -------
लघु -कथा ----- सत्य की राह बहुत कठिन है , सच्चाई की राह पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है , लेकिन इस राह पर शांति है , कोई तनाव नहीं l बुराई की राह पर चलना बहुत आसान है , इसमें तुरंत लाभ मिलता है लेकिन ये बुराइयाँ , दुष्प्रवृत्तियां , व्यसन जिन्हें लोग एक बार पकड़ते हैं, वे कुछ ही दिन में उन्हें अपने शिकंजे में जकड़ लेती है और प्राण लेकर ही छोड़ती हैं l --------- नदी में रीछ बहता जा रहा था l किनारे पर खड़े साधु ने समझा कि यह कम्बल बहता आ रहा है l निकालने के लिए वह तैरकर उस तक पहुंचा और पकड़कर किनारे की तरफ खींचने लगा l रीछ जीवित था , प्रवाह में बहता चला आया था l उसने साधु को जकड़ कर पकड़ लिया ताकि वह उस पर सवार होकर पार निकल सके l दोनों एक दूसरे के साथ गुत्थमगुत्था कर रहे थे l कोई नीचे कोई ऊपर l किनारे पर खड़े दूसरे साधु ने उसे पुकारा और कहा --- कम्बल हाथ नहीं आता तो उसे छोड़ दो और वापस लौट आओ l ' जवाब में उस फंसे हुए साधु ने कहा --- मैं तो कम्बल छोड़ना चाहता हूँ पर उसने तो मुझे ऐसा जकड़ लिया है कि छूटने की कोई तरकीब नहीं सूझती , ऐसा लगता है ये मेरे प्राण ही ले लेगा l ' व्यसन ऐसे ही होते हैं , छोड़ने पर भी नहीं छूटते l