पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " अहंकार के वशीभूत होकर जिसने भी स्वयं को भगवान मानने का प्रयास किया है , उसका हश्र क्या हुआ है , यह सब जानते हैं l कोई भी शक्तिमान , सामर्थ्यवान तो हो सकता है , पर भगवान नहीं बन सकता l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " जो व्यक्ति अहंकारी होता है वह अधिक क्रोध करता है और भय भी उसके अंदर किसी न किसी रूप में मौजूद होता है l लेकिन वह ऐसे प्रदर्शित करता है , जैसे उसे कोई भय नहीं है l ऐसा व्यक्ति स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करना चाहता है और स्वयं को बड़ा समझदार मानता है l जबकि उसका व्यवहार ऐसा होता है , जो उसकी नासमझी को दरशाता है l " श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा भी है ---क्रोध से बुद्धि का नाश होता है l क्रोध एक ऐसा विकार है जो कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है l
28 July 2022
WISDOM -----
लघु -कथा ------ ब्रह्मा जी स्रष्टि का संविधान लिख रहे थे l उन्होंने सभी प्राणियों के एक -एक प्रतिनिधि को बुलाया l समिति का कार्य ठीक प्रकार से चल पड़ा l जो निर्णय होता वह पीपल के पत्ते पर लिख दिया जाता l कागज का अविष्कार उस समय तक हुआ न था l रात्रि होने पर सभी सभासद अपने -अपने निवास स्थान पर लौट जाते l एक गधा ही था जो छिपकर किसी कोने में बैठ जाता ताकि आराम से पड़ा रहे l व्यर्थ इधर -उधर घूमना न पड़े l रात्रि को भूख लगी तो गधे ने वे सभी पीपल के पत्ते खा लिए जिन पर बहुत दिनों से संविधान लिखा जाता था l प्रात: जब गोष्ठी आरम्भ हुई तो पीपल के पत्ते तलाशे गए l मालूम हुआ कि उन्हें गधे ने खा डाला l देवताओं को गधे की मूर्खता पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने उसे उठाकर स्वर्ग से धरती पर पटक दिया l उसे थोड़ी चोट लगी पर कुछ ही दिनों में चंगा हो गया l गधे ने सब प्राणियों से कहना शुरू कर दिया कि समस्त शास्त्र चाहे वे धर्म के हों या राजनीति के उसके पेट में भरे हैं l सुनने वाले हंसकर रह जाते l उसकी आगे की पीढ़ियाँ ही उस सत्य को प्रमाणित करती हैं कि ज्ञान का भंडार उनके मस्तिष्क में भरा है , पर वे उस पर आचरण नहीं करते l