20 June 2018

WISDOM ------ पुत्र या पुत्री नहीं , मनुष्य के कर्म ही उसके सहायक होते हैं l

    हमारा  समाज  पुरुष  प्रधान  है  l  नारी  की  अपेक्षा  पुरुष  का  महत्व  अधिक  है  l  अधिकांश  परिवारों  में  आज  भी  पुत्र  होने  पर  खुशियाँ  मनाई  जाती  हैं   और  पुत्री  होने  पर  मायूसी  छा  जाती  है  l   हमारे  देश  की  अवरुद्ध  प्रगति  का  एक  कारण  यह  भी  है   कि  महिलाओं  के  कल्याण  की  अनेक  योजनाएँ  बनने  के  बावजूद  पुरुषों  की  मानसिकता ,  उनकी  संकीर्ण  सोच   नारी  की  प्रगति  में  अनेक  बाधाएं  उपस्थित  करती  है  l    आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  है  कि  लड़के  और  लड़की  में  भेद  न  कर  के  उन्हें  अच्छे  संस्कार  दें   l  यदि  दोनों  में  से  कोई  भी  संस्कारवान  नहीं  है   तो  वह  अपने  परिवार  व  समाज  के  लिए  अभिशाप  की  तरह  है   l  
  इस  संदर्भ  में   एक  पौराणिक  कथा  है ------  मंकनक  नामक  एक  साधक   शिव  भक्त  था  l   लेकिन  उसकी  अनेक  सांसारिक  इच्छाएं  थीं  l अत:  उसने  शुभ  दिन   और  शुभ  मुहूर्त  पर  भगवान  शिव  की  आराधना  शुरू  की  l  आखिर  भगवान  भोलेनाथ  प्रसन्न  हुए , उसके  सामने  प्रकट  हुए  और  कहा --- " वर  मांगो  वत्स ! "   मंकनक   ने  उनके  सामने  पुत्र  की  कामना  प्रकट  की  l
 इस  पर  भगवान  शिव  ने  कहा  --- "  तुमने  तपस्या  पूर्ण  की  है  ,  इसलिए  वर  माँगना   तुम्हारा  नैसर्गिक  अधिकार  है ,  लेकिन  पुत्र  किसलिए ,  पुत्री  क्यों  नहीं  ?
इस  पर  मंकनक   ने  कहा  ---- " पुत्र  आगे  चलकर  सहायक  बनता  है  , जबकि  पुत्री  तो  विदा  होकर  ससुराल  चली  जाती  है  l  "
 यह  उत्तर  सुनकर  भगवान  शिव  बोले ---- " वत्स  मंकनक  !  तुम  तपस्वी   हो ,  तुम्हे  यह  बोध  होना  चाहिए  कि  सहायक  तो  मनुष्य  के  कर्म  होते  हैं  ,  कोई  व्यक्ति  विशेष  किसी  की  सहायता  नहीं  करता  l  घर  में  पुत्र  हो  या  पुत्री ,  उसे  संस्कार  देकर  , शिक्षा  प्रदान  कर  के  ,  उसके  व्यक्तित्व  को  समुन्नत  बनाकर  समाज  को  अर्पित  करना   माता - पिता  का  दायित्व  है  l  अपने  बच्चों  से  प्रतिदान  की  आशा  तो   पशु - पक्षी  भी  नहीं  करते ,  फिर  तुम  तो  मनुष्य  हो   l  "  
     भगवान   भोलेनाथ  की  बातों  से  मंकनक    को    जीवन    की    दिशा  मिली   l    यह  कथा  मनुष्य  समाज  को  यह  प्रेरणा  देती  है  कि  व्यक्ति  को  किसी  के  सहारे  न  चलकर   अपने  कर्मों  के  सहारे  चलना  चाहिए   l    पुत्र  व  पुत्री  में  भेदभाव  न  कर के    उन्हें  अच्छे  संस्कार  देना  चाहिए   l