18 June 2023

WISDOM ----

   पुराणों  में  गोवर्धन  पर्वत  के  संबंध  में   कथा  आती  है  कि   वह  कभी  सुमेरु  पर्वत  का  शिखर  हुआ  करता  था  l  जब  श्री  हनुमान जी  सेतुबंधन  के  समय  उसे  ला  रहे  थे   तो  उनके  ब्रजभूमि  तक  पहुँचते -पहुँचते   घोषणा  हो  गई  कि   सेतुबंधन  का  कार्य  पूरा  हो  गया  है  l  अब  पर्वत  लाने  की  आवश्यकता  नहीं  है  l  यह  घोषणा  सुनकर  हनुमान जी  ने   गोवर्धन  को  वहीँ  रख  देना   चाहा  , जहाँ  से  वे  उसे  उठाकर  ला  रहे  थे  l  ऐसे  में  गोवर्धन  पर्वत  ने  श्री  हनुमान जी  से  कहा ----" तुम  मुझे  घर से , परिवार  से  , कुटुंब  से  अलग  कर  के  भगवान  की  सेवा  के  लिए  ले  जा  रहे  थे  ,  सो  तो  ठीक  था  ,  लेकिन  अब  मुझे  भगवान  की  सेवा  में  लगाए  बिना   मार्ग  में  यों  ही  छोड़  देना  ,  यह  किसी  भी  द्रष्टि  से  उचित  नहीं  है  l  हमारे  लिए  उचित  व्यवस्था  बनाए  बिना   छोड़कर  मत  जाओ  l  "  हनुमान जी  ने  फिर  भगवान  राम  से  पूछा  ---- ' क्या  किया  जाए  ? '  भगवान  ने  उत्तर  दिया  ---- " गोवर्धन  को  ब्रज   में  स्थापित  कर  दो  l  अभी  तो  मेरा  राम अवतार  है  , जब  मैं  कृष्ण  अवतार  में  आऊंगा   तब  गोवर्धन  को  अपना  लीला  केंद्र  बनाऊंगा  l  अभी  तो  इसे  यहाँ  सेतु  पर  रख  दिया  जाये   तो  मैं  सेतु  पार  करते  समय  उस  पर  पैर  रखकर  निकल  जाऊँगा  l  लौटते  समय  संभव  है  कि  सेतु  का  प्रयोग  न  करना  पड़े  l  इसलिए  ब्रज  में  गोवर्धन  स्थापित  हो  जाने  पर   मई  उस  पर  गाय  चराने  के  लिए  नंगे  पांव  विचरण  करूँगा  , उसके  झरनों  के  जल  में  स्नान  करूँगा  , उसकी  मिटटी  को  अपने  शरीर  पर  लगाऊंगा, उसके  फूलों  से  अपना  श्रंगार  करूँगा   और  अपना  सम्पूर्ण  किशोर  काल  वहीँ  गुजरूँगा  l  "  भगवान  की  इस  घोषणा  से  संतुष्ट  होकर  गोवर्धन  ब्रजभूमि  में  स्थापित  हो  गए   l 

WISDOM -----

  एक  बार  रानी  रासमणि  के  गोविन्द जी  की  मूर्ति  पुजारी  के  हाथ  से  गिरने  के  कारण  खंडित  हो  गई  l  रानी  रासमणि  ने  ब्राह्मणों  से  उपाय  पूछा  l  ब्राह्मणों  ने  खंडित  मूर्ति  को  गंगा  में   विसर्जित  कर  नई  मूर्ति  बनवाने  का  सुझाव  दिया  l  उनके  इस  सुझाव  से  रानी  बहुत  दुःखी  हुईं  कि  अब  तक  जिन  गोविन्द  जी  को   श्रद्धा -भक्ति  के  साथ  पूजा  जाता  रहा  , उन्हें  अब  गंगा  में  विसर्जित  करना  पड़ेगा  l  उन्होंने  रामकृष्ण  परमहंस  से   इस  संबंध  में  पूछा  तो  वे  बोले ---- " यदि  आपके  किसी  संबंधी  का  पैर  टूट  जाता   तो  आप  उसकी  चिकित्सा  करवातीं  या  उसे  नदी  में  प्रवाहित  करतीं  ? " रानी  रासमणि  उनका  आशय  समझ  गईं  l  उन्होंने म खंडित  मूर्ति  को  ठीक  करवाया  और  पहले  की  भांति  पूजा  आरम्भ  कर  दी  l  एक  दिन  किसी  ने  स्वामी  रामकृष्ण  परमहंस  से  पूछा --- " मैंने  सुना  है  कि  इस  मूर्ति  का  पैर  टूटा  है  l "  इस  पर  वे  हँसकर  बोले ---- "  जो  सबके  टूटे  को  जोड़ने  वाले  हैं , वे  स्वयं  टूटे  कैसे  हो  सकते  हैं  l  "