कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर है l महाभारत का कोई भी प्रसंग देख लें , वैसा ही सब कुछ इस धरती पर , इस युग में , और अधिक विस्तृत रूप में देखने को मिल जायेगा l इस महाकाव्य में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि सत्ता का सुख भोगने वालों में अन्याय और दुष्कृत्य के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस नहीं होता l ऐसे लोग न्याय का पक्ष नहीं ले पाते और न ही अपने आचरण से नई पीढ़ी को कोई दिशा दे पाते हैं l ------- द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को धर्नुविद्या , शस्त्र विद्या का ज्ञान कराया l द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में गरीबी के दिन देखे थे , उनका पुत्र अश्वत्थामा जब दूध के लिए रोता था तो उसकी माँ उसे आटा पानी में घोलकर पिलाती थीं l वे उस समय दुर्योधन की कृपा से राजसत्ता का सुख भोग रहे थे , और जानते थे कि दुर्योधन के विरोध से उन्हें महात्मा विदुर की भांति शाक -पात पर आना पड़ेगा l ये सुख उनसे छीन जायेंगे , पांडव बेचारे खुद दर -बदर भटक रहे थे , वे उन्हें क्या देते l दुर्योधन के एहसान तले रहने के कारण ही वे उसके द्वारा पांडवों के विरुद्ध रचे जाने वाले षड्यंत्रों का विरोध नहीं करते थे l यहाँ तक कि द्रोपदी के चीर -हरण के समय भी उनके मुँह पर ताला लगा हुआ था l यही स्थिति कुलगुरु कृपाचार्य की थी l वे भी अपनी स्वार्थ सिद्धि , धन के लोभ और सत्ता सुख भोगने में लगे थे l भीष्म पितामह अपनी प्रतिज्ञा से बंधे थे और दुर्योधन का ही अन्न खाते थे इसलिए दुर्योधन की गलतियों पर मौन रहे l महारथी कर्ण , न्याय -अन्याय को समझता था लेकिन जब सूत -पुत्र होने के कारण संसार ने उसे अपमानित किया तब दुर्योधन ने उसे गले लगाकर , उसका तिलक कर उसे अंग देश का राजा बनाया था , अत: कर्ण मित्र धर्म निभा रहा था l कारण चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन यह सत्य है कि जिसने भी अत्याचारी , अन्यायी का समर्थन किया उन सबका अंत हुआ l दुर्योधन ने जीवन भर षड्यंत्र रचे , वह अधर्म और अन्याय पर था इसलिए पूरे कौरव वंश को ले डूबा l एक से बढ़कर एक वीर राजा महाराजा जो भी दुर्योधन के पक्ष में थे , सभी का युद्ध में अंत हुआ l ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है l स्वार्थ और लोभ से ऊपर उठकर सत्य और न्याय की राह पर चलें l