' साधना किन्ही क्रियाओं को करना भर नहीं है | इसका यथार्थ तो विचार व भावनाओं की शुद्धि में है साधक वह है , जिसके अंत:करण में सभी समय परमेश्वर प्रकाशित रहे | जो कभी किसी अन्य भावनाओं अथवा विचारों से आक्रांत न हो | '
अपने गुरु के विचारों से प्रभावित होकर राजा प्रसून ने राज्य का त्याग कर दिया , गेरुए वस्त्र धारण कर लिये और कमंडल लेकर भिक्षा मांगने निकल पड़े | शाम होने पर कीर्तन करते , जप-हवन में भी भाग लेते , पर मन को शांति नहीं मिली | आखिरकार एक दिन , वे गुरु के समीप पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनाने लगे |
गुरु हँसे और बोले -- " जब तुम राजा थे और अपने बगीचे का निरीक्षण करते थे , तब माली से पौधे के किस हिस्से का ध्यान रखने को कहते थे ? "
राजा बोले -- " गुरुदेव ! वैसे तो हर हिस्सा महत्वपूर्ण है , पर यदि जड़ की ढंग से देख-भाल न की जाये तो सारा पौधा सूख जायेगा | "
गुरु बोले -- " वत्स ! जप , कर्मकांड और भगवा वस्त्र भी फूल-पत्तियाँ ही हैं , जड़ तो आत्मा है | यदि उसका परिष्कार न हुआ तो बाहर के सारे आवरण तो बस आडंबर हैं |
यदि मनुष्य के प्रयास आत्मा के उद्धार में लगे , चिंतन , चरित्र और व्यवहार को परिष्कृत किया जाये तो सभी के जीवन की बगिया समृद्ध और भव्य बन जाये |
अपने गुरु के विचारों से प्रभावित होकर राजा प्रसून ने राज्य का त्याग कर दिया , गेरुए वस्त्र धारण कर लिये और कमंडल लेकर भिक्षा मांगने निकल पड़े | शाम होने पर कीर्तन करते , जप-हवन में भी भाग लेते , पर मन को शांति नहीं मिली | आखिरकार एक दिन , वे गुरु के समीप पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनाने लगे |
गुरु हँसे और बोले -- " जब तुम राजा थे और अपने बगीचे का निरीक्षण करते थे , तब माली से पौधे के किस हिस्से का ध्यान रखने को कहते थे ? "
राजा बोले -- " गुरुदेव ! वैसे तो हर हिस्सा महत्वपूर्ण है , पर यदि जड़ की ढंग से देख-भाल न की जाये तो सारा पौधा सूख जायेगा | "
गुरु बोले -- " वत्स ! जप , कर्मकांड और भगवा वस्त्र भी फूल-पत्तियाँ ही हैं , जड़ तो आत्मा है | यदि उसका परिष्कार न हुआ तो बाहर के सारे आवरण तो बस आडंबर हैं |
यदि मनुष्य के प्रयास आत्मा के उद्धार में लगे , चिंतन , चरित्र और व्यवहार को परिष्कृत किया जाये तो सभी के जीवन की बगिया समृद्ध और भव्य बन जाये |