भरत 11 वर्ष के सुकुमार बालक थे l उन्हें शिक्षा - दीक्षा उनकी माँ शकुंतला ने ही दी थी l माँ ने भरत को निरंतर साहसी बनने , प्राणवान - यशस्वी बनने की प्रेरणा दी l बालक भरत को माँ से शिक्षा मिली थी कि किसी निरपराध प्राणी को कभी पीड़ा नहीं पहुँचाना l बालक भरत जंगल में विचरण कर रहे थे उन्हें सिंहशावकों का क्रंदन सुनाई पड़ा l वे उस दिशा में पहुंचे तो देखा कि पांच भालुओं ने दो सिंहशावकों को घेर रखा है , जो अपने माता - पिता से बिछड़ गए थे l जैसे ही एक भालू झपटा , एक तीर सनसनाता हुआ आया और उनके पास के शिलाखंड को तोड़ गया l यह एक चेतावनी थी l सभी की निगाहें भारत पर पड़ीं l बिना विलम्ब वे सभी भरत पर टूट पड़े l भारत ने खड्ग के प्रहार से दो भालुओं के शीश धड़ से अलग कर दिए l शेष तीन डर कर भाग गए l दोनों सिंहशावक भरत के चरणों में लोट गए l भरत ने दोनों बच्चों को गोद में उठाया , अपने हृदय से लगाया और कहा --- " चलो आज तुम्हे हमारी माँ , हमारी गुरु के दर्शन कराएं l " जैसे ही पीछे मुड़े शावकों के माता - पिता सिंह और सिंहनी खड़े थे , उनकी आँखों में कृतज्ञता के भाव थे l वे भरत को अपने नन्हे बालकों सहित आश्रम तक छोड़ने आये l भरत को खेलने के लिए दो मित्र मिल गए l सिंह के दांत गिनने वाले इसी भरत के नाम पर हमारा राष्ट्र भारतवर्ष कहलाता है l
31 December 2020
WISDOM -----
' गुलामी ' एक मानसिकता है l एक निर्धन व्यक्ति जिसके पास कुछ भी खोने को नहीं है , वह किसी का गुलाम नहीं होता l उसे तो केवल अपने और अपने परिवार के भरण - पोषण की चिंता होती है l इसके लिए वह मेहनत , मजदूरी सब कुछ करने को तैयार होता है l फिर पेट की आग और परिवार की जरुरत उससे जो कुछ भी करा लें ! जिसके पास पद - प्रतिष्ठा , धन - वैभव सब कुछ है और उन सबसे बढ़कर तृष्णा है , ऐसा व्यक्ति सबसे ज्यादा भयभीत होता है l वह हमेशा एक अनजाने भय से घिरा रहता है कि यदि यह सब नहीं रहा तो उसका क्या होगा ? उसका अहंकार , उसकी प्रतिष्ठा सब कुछ धराशायी हो जायेगा l इसी भय के कारण वह अपने से शक्तिशाली की गुलामी करता है , और वह शक्तिशाली अपने से भी ज्यादा शक्तिशाली की गुलामी करता है ------ यह क्रम चलता रहता है l वैश्वीकरण ने इस श्रंखला को बहुत बढ़ा दिया है l अब सब एक नाव पर सवार हैं l मनुष्य की इस तृष्णा की वजह से ही संसार में अशांति है l