25 November 2020

WISDOM -----

   महाराज  ययाति  को  भोगों  को  भोगते  हुए  जीवन  के  सौ   वर्ष  कब   पूरे   हो  गए  ,  पता  भी  नहीं  चला   l   यमदेव  उन्हें  लेने  आ  गए  l   उन्होंने  यमदेव  से  प्रार्थना  की  ---- " मेरी  सभी  इच्छाएं  अधूरी  हैं  ,  कृपया  मुझे   जीवनदान  देने  की  कृपा  करें  "  यमदेव  बोले --- "  यदि  आपके  सौ   पुत्रों  में  से  कोई  एक  भी  पुत्र  अपना  यौवन  आपको  दे  दे  औ  आपकी  इच्छा  पूर्ण  हो  सकती  है  l "  कामग्रस्त  ययाति  ने   अपने  पुत्रों  को  बुलाकर  उनसे  यौवन  की  भीख  मांगी  l   सभी  ने  मन  कर  दिया  ,  केवल  एक  पुत्र  तैयार  हो  गया  l   यमदेव  को  इस  पर  आश्चर्य  हुआ   और  उन्होंने  उससे   ऐसा  करने  के  पीछे    का कारण  पूछा  l  वह  बोला ----- " जब  सौ   वर्षों  के  भोग  से   भी  पिताजी  की  तृप्ति  नहीं  हो  सकी   तो  मेरी  कैसे  होगी  ?  भोगों  में  समय  गंवाना  व्यर्थ  है  l "  यमदेव  ने  प्रसन्न  होकर   उसे  जीवनमुक्ति  का  आशीर्वाद  दिया  l   सौ   वर्ष  पूर्ण  हो  जाने  पर   फिर  ययाति  के  सामने   यम   प्रकट  हुए   तो  ययाति  ने  पुन:  वही  याचना  की  l   इन  सौ   वर्षों  में  उनके  द्वारा  पैदा  हुए  पुत्रों   में  से  एक  ने  अपनी  आयु  उन्हें  दे  दी  l   इस  तरह  ययाति  को  दस  बार  जीवनदान  मिला  ,  वे  एक  हजार  वर्ष  तक  जिए   और  विलास  में  रत  रहे  l   अंतत:  उन्हें  पश्चाताप  हुआ   और  वे  समझ  पाए   कि   भोगों  की  तृप्ति  कभी  नहीं  होती  l   उन्हें  नरक  में  घोर  कष्ट  भोगना  पड़ा  l   ययाति  की  ये  कथा  ढलती  उम्र    के  लोगों  के  लिए  एक  प्रेरणा  है   l 

WISDOM ----

    एक  बार  की  बात  है    यमराज  और  उनके  दूत    धरती  से  आत्माओं  को  ले  जाते , ढोते    बहुत  थक  गए  l   युगों  से  यह  कार्य  कर  रहे  थे ,  किसी  भी  दिन  कोई  छुट्टी  नहीं  l    उन्होंने   महाराज  से   कुछ  दिनों  की  छुट्टी  माँगी  l   महाराज  ने  पहले  तो  मना  किया  ,  लेकिन  पहली  बार  छुट्टी  मांगी  , तो  देनी  पड़ी  l   अब  महाराज  ने  सोचा  कि   थोड़े  दिनों  की  ही  तो  बात  है   क्यों  न  मृत्यु  का  ठेका  कुछ  मनुष्यों  को  सौंप  दिया  जाये   l   बहुत  सोच - विचार  के   यह  ठेका    उन  लोगों  को  सौंप  दिया  जो  संपन्न  थे , उम्मीद  थी  कि   किसी  लालच  में  नहीं  आएंगे  l   लेकिन  मनुष्य  के  लालच  और  तृष्णा  का  कोई  अंत  नहीं  l   ठेका  मिलते  ही  उन्होंने  मृत्यु  को  भी  व्यापार   बना  दिया   और  उनकी  तथा  उनके  आधीन  काम  करने  वालों  की  सम्पति  दिन  दूनी   रात  चौगुनी  बढ़  गई  l    इतने  लोग  मरने  लगे  कि   संसार  में  हाहाकार  मच  गया  l   न  केवल  संसार  में   बल्कि  ऊपर  ब्रह्माण्ड  में  भी  हाहाकार  मच  गया  l  यमराज   जब   आत्माओं  को  ले  जाते  थे   तो  न्याय  होता  था  ,  कर्म  के  अनुसार  स्वर्ग , नरक  मिलता  था   लेकिन  यमराज  के  छुट्टी  लेने  से  आसुरी  शक्तियां  क्रियाशील  हो  गईं  l   अनेक  अच्छी   और  बुद्धिमान  आत्माओं  को    असुरों  ने    अपने  कब्जे  में  कर  लिया   और  उन्हें  पीड़ित कर , जबरन  दबाव  बनाकर  उनकी  बुद्धि  का  उपयोग  कर  के   संसार  में  असुरता  का  तांडव  मचा  दिया  l   गेहूं  के  साथ  घुन  भी  पिसता   है  ,  संसार  में  अच्छे - बुरे   सब   अनेक  परेशानियों  में  घिर  गए  ,  बहुत  परेशान   हुए  l   सबकी  प्रार्थनाओं  से    शेषनाग  पर  शयन  कर  रहे  भगवान  भी  जाग  गए  l   उन्होंने  अपने  सुदर्शन  चक्र  को  भेजकर   श्रेष्ठ  आत्माओं  को  असुरता  के  चंगुल  से  मुक्त  कराया  l   जब  भी  संसार  में  असुरता  , अन्याय  और  अत्याचार   बढ़   जाता है    तब  ईश्वर   युग  के  अनुरूप  अपने  प्रयास  से  असुरता  का  अंत  करते  हैं  l 

WISDOM ----

  श्रीमद् भगवद्गीता   में  भगवान  अर्जुन  को  अपनी  विशिष्ट  विभूतियों  के  बारे  में  बताते  हैं  l----   मर्यादा  पुरुषोत्तम  श्रीराम  को    भगवान   शस्त्र  धारण  करने  वालों  में   अपना  स्वरुप  बताते  हैं   l   भगवान  कहते  हैं -----  श्रीराम  अति  विनम्र , शिष्ट , मर्यादापूर्ण  हैं  l   वे  क्रोधित  भी  नहीं  होते  l   उनके  मन  में  न  तो किसी  के  लिए  हिंसा  है  ,  न  ईर्ष्या  ,  न  किसी  से  शत्रुता  ,  न  प्रतिस्पर्धा  l   वे  न  तो  किसी  को  दुःख  देना  चाहते  हैं   और  न  पीड़ा  पहुँचाना  चाहते  हैं  l   विध्वंसकारी  शस्त्र  भी  यदि   श्रीराम  के  हाथ  में  होंगे  ,  तो  वे  सृजन  का  ही  माध्यम  बनेंगे  l   इसलिए  श्रीराम  शस्त्रधारी  होने  पर  भी    मर्यादा  पुरुषोत्तम  हैं  ,  भगवान  हैं  l   वे  अतुलनीय  हैं  ,  मर्यादा  व  लोकहित  के  शिखर  हैं  l                                                                                          शस्त्र  यदि  रावण  के  हाथ  में  होंगे   तो  विनाश  तय  है    क्योंकि  उसके  भी  तर सिवाय  दुर्गुणों  के  ,  लोभ , लालच , कामुकता  ,  हिंसा  के  सिवाय   और  कुछ  नहीं  है  l   वह  अपने  शस्त्रों  का  जब  भी  प्रयोग  करेगा  ,  गलत  ही  करेगा  l   उसके  द्वारा  विनाश  के   सिवाय   अन्य  कुछ  भी  संभव  नहीं  है   l   गीता  का  शिक्षण  हर  युग  के  लिए  है  l   आज  संसार  में  आसुरी  शक्तियां  इतनी  प्रबल  होती  जा  रही  हैं  l   हमें  विवेकवान  होने  की  जरुरत  हैं  ,  हम  देखें  कि   हमारी  योग्यता  का  लाभ  कौन  उठा  रहा  है , हम  किसे  शक्तिशाली  बना  रहे  हैं -- राम  को  या  रावण  को  ?    यदि  हमें  तत्काल  लाभ  चाहिए   तो  निश्चित  है  कि  हम  असुरता  का  चयन  करेंगे  , फिर  उसका  परिणाम   चाहे जो  हो  l   ईश्वर  ने  हमें  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  l   सही  मार्ग  का  चयन  करने  के  लिए  हम  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें  l