महाराज ययाति को भोगों को भोगते हुए जीवन के सौ वर्ष कब पूरे हो गए , पता भी नहीं चला l यमदेव उन्हें लेने आ गए l उन्होंने यमदेव से प्रार्थना की ---- " मेरी सभी इच्छाएं अधूरी हैं , कृपया मुझे जीवनदान देने की कृपा करें " यमदेव बोले --- " यदि आपके सौ पुत्रों में से कोई एक भी पुत्र अपना यौवन आपको दे दे औ आपकी इच्छा पूर्ण हो सकती है l " कामग्रस्त ययाति ने अपने पुत्रों को बुलाकर उनसे यौवन की भीख मांगी l सभी ने मन कर दिया , केवल एक पुत्र तैयार हो गया l यमदेव को इस पर आश्चर्य हुआ और उन्होंने उससे ऐसा करने के पीछे का कारण पूछा l वह बोला ----- " जब सौ वर्षों के भोग से भी पिताजी की तृप्ति नहीं हो सकी तो मेरी कैसे होगी ? भोगों में समय गंवाना व्यर्थ है l " यमदेव ने प्रसन्न होकर उसे जीवनमुक्ति का आशीर्वाद दिया l सौ वर्ष पूर्ण हो जाने पर फिर ययाति के सामने यम प्रकट हुए तो ययाति ने पुन: वही याचना की l इन सौ वर्षों में उनके द्वारा पैदा हुए पुत्रों में से एक ने अपनी आयु उन्हें दे दी l इस तरह ययाति को दस बार जीवनदान मिला , वे एक हजार वर्ष तक जिए और विलास में रत रहे l अंतत: उन्हें पश्चाताप हुआ और वे समझ पाए कि भोगों की तृप्ति कभी नहीं होती l उन्हें नरक में घोर कष्ट भोगना पड़ा l ययाति की ये कथा ढलती उम्र के लोगों के लिए एक प्रेरणा है l
25 November 2020
WISDOM ----
एक बार की बात है यमराज और उनके दूत धरती से आत्माओं को ले जाते , ढोते बहुत थक गए l युगों से यह कार्य कर रहे थे , किसी भी दिन कोई छुट्टी नहीं l उन्होंने महाराज से कुछ दिनों की छुट्टी माँगी l महाराज ने पहले तो मना किया , लेकिन पहली बार छुट्टी मांगी , तो देनी पड़ी l अब महाराज ने सोचा कि थोड़े दिनों की ही तो बात है क्यों न मृत्यु का ठेका कुछ मनुष्यों को सौंप दिया जाये l बहुत सोच - विचार के यह ठेका उन लोगों को सौंप दिया जो संपन्न थे , उम्मीद थी कि किसी लालच में नहीं आएंगे l लेकिन मनुष्य के लालच और तृष्णा का कोई अंत नहीं l ठेका मिलते ही उन्होंने मृत्यु को भी व्यापार बना दिया और उनकी तथा उनके आधीन काम करने वालों की सम्पति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ गई l इतने लोग मरने लगे कि संसार में हाहाकार मच गया l न केवल संसार में बल्कि ऊपर ब्रह्माण्ड में भी हाहाकार मच गया l यमराज जब आत्माओं को ले जाते थे तो न्याय होता था , कर्म के अनुसार स्वर्ग , नरक मिलता था लेकिन यमराज के छुट्टी लेने से आसुरी शक्तियां क्रियाशील हो गईं l अनेक अच्छी और बुद्धिमान आत्माओं को असुरों ने अपने कब्जे में कर लिया और उन्हें पीड़ित कर , जबरन दबाव बनाकर उनकी बुद्धि का उपयोग कर के संसार में असुरता का तांडव मचा दिया l गेहूं के साथ घुन भी पिसता है , संसार में अच्छे - बुरे सब अनेक परेशानियों में घिर गए , बहुत परेशान हुए l सबकी प्रार्थनाओं से शेषनाग पर शयन कर रहे भगवान भी जाग गए l उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र को भेजकर श्रेष्ठ आत्माओं को असुरता के चंगुल से मुक्त कराया l जब भी संसार में असुरता , अन्याय और अत्याचार बढ़ जाता है तब ईश्वर युग के अनुरूप अपने प्रयास से असुरता का अंत करते हैं l
WISDOM ----
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान अर्जुन को अपनी विशिष्ट विभूतियों के बारे में बताते हैं l---- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भगवान शस्त्र धारण करने वालों में अपना स्वरुप बताते हैं l भगवान कहते हैं ----- श्रीराम अति विनम्र , शिष्ट , मर्यादापूर्ण हैं l वे क्रोधित भी नहीं होते l उनके मन में न तो किसी के लिए हिंसा है , न ईर्ष्या , न किसी से शत्रुता , न प्रतिस्पर्धा l वे न तो किसी को दुःख देना चाहते हैं और न पीड़ा पहुँचाना चाहते हैं l विध्वंसकारी शस्त्र भी यदि श्रीराम के हाथ में होंगे , तो वे सृजन का ही माध्यम बनेंगे l इसलिए श्रीराम शस्त्रधारी होने पर भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं , भगवान हैं l वे अतुलनीय हैं , मर्यादा व लोकहित के शिखर हैं l शस्त्र यदि रावण के हाथ में होंगे तो विनाश तय है क्योंकि उसके भी तर सिवाय दुर्गुणों के , लोभ , लालच , कामुकता , हिंसा के सिवाय और कुछ नहीं है l वह अपने शस्त्रों का जब भी प्रयोग करेगा , गलत ही करेगा l उसके द्वारा विनाश के सिवाय अन्य कुछ भी संभव नहीं है l गीता का शिक्षण हर युग के लिए है l आज संसार में आसुरी शक्तियां इतनी प्रबल होती जा रही हैं l हमें विवेकवान होने की जरुरत हैं , हम देखें कि हमारी योग्यता का लाभ कौन उठा रहा है , हम किसे शक्तिशाली बना रहे हैं -- राम को या रावण को ? यदि हमें तत्काल लाभ चाहिए तो निश्चित है कि हम असुरता का चयन करेंगे , फिर उसका परिणाम चाहे जो हो l ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है l सही मार्ग का चयन करने के लिए हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें l