आइंस्टीन से किसी ने पूछा ---- ' संसार में इतना दुःख और कलह क्यों है , जबकि विज्ञान ने एक - से - बढ़कर - एक सुख- साधन उत्पन्न कर दिए हैं ? ' उत्तर देते हुए उन्होंने कहा ---- " कमी बस एक ही रह गई कि अच्छे मनुष्य बनाने की कोई योजना नहीं बनी l देश , संप्रदाय के पक्षधर सभी दीखते हैं , पर ऐसे लोग नहीं दीख पड़ते , जो अच्छे इनसान बनाने की योजनाएं बनायें l
28 March 2022
WISDOM -------
यदि मनुष्य को संसार में सुख शांति और तनाव रहित , जीवन चाहिए , तो संसार में जो समस्याएं हैं उनके समाधान पर विचार करना चाहिए l आज संसार में युद्ध , उन्माद , दंगा - फसाद , छल - कपट , षड्यंत्र , माइंड गेम , भय आदि असंख्य समस्याएं हैं जिसने मनुष्य का सुख - चैन छीन लिया है l ये समस्याएं ऐसी हैं जिनसे पीड़ित व्यक्ति तो परेशान है ही l इन समस्यायों के सूत्रधार भी चैन से सो नहीं पाते , धन - वैभव , सुरक्षा , सारे सुख - सुविधा सब के होते हुए भी हर पल भयभीत रहते हैं l यदि आयु के आधार पर वर्गीकरण किया जाये तो दस- बारह वर्ष की उम्र तक के तो बच्चे ही होते हैं , जो मन के सच्चे हैं , जिनमे छल - कपट नहीं होता l इसके बाद किशोरावस्था के हैं जो सुनहरे सपनों में खोये रहने के साथ अपना कैरियर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं l यह वर्ग सही मार्गदर्शन न मिलने पर भटक सकता है लेकिन युद्ध , दंगे जैसे बड़े - बड़े कार्यों का सूत्रधार नहीं होता l इसके बाद युवा वर्ग है - यह अपने अस्तित्व के लिए परेशान है , इसमें ऊर्जा बहुत है जो चालाक हैं वे अपने स्वार्थ के लिए विभिन्न क्षेत्रों में इनकी ऊर्जा का फायदा उठाकर इनका इस्तेमाल करते हैं l वैश्वीकरण का युग है , यह स्थिति पूरे संसार की है l अब शेष बचे 35 से 80 वर्ष की आयु के लोग l अधिकांशत: संसार में जितने भी मानवता के हित के नेक कार्य हैं और मानवता का अहित करने वाले कार्य , छल - कपट , षड्यंत्र , दंगा आदि इसी आयु वर्ग के लोग करते हैं l कलियुग में सबसे बड़े दुःख की बात यही है कि सत्कर्म करने वालों की संख्या बहुत कम है और संसार में अशांति , शोषण , अन्याय , अत्याचार , अनैतिक , आपराधिक कार्य करने वाले 35 से 80 वर्ष की आयु वर्ग के व्यक्तियों की संख्या सर्वाधिक है l इसमें महिलाएं भी होती हैं लेकिन प्रमुख सूत्रधार पुरुष ही होते हैं , महिलाएं तो उनके इशारों पर चलती हैं l कामना , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा ये व्यक्ति की मानसिक कमजोरियाँ हैं जो कभी संतुष्ट नहीं होतीं l जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती जाती है , उसे लगता है जिंदगी कब हाथ से फिसल जाये , इसलिए जितना सुख भोग लो , अपनी इच्छाओं को पूरा कर लो l बस ! इसी सोच - विचार के कारण संसार में असंख्य समस्याएं हैं l अब यदि हम संसार में शांति चाहतें हैं , अपने तनाव से मुक्त होना और पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को सुख - शांति से जीना चाहते हैं केवल बच्चों को नैतिक शिक्षा देने से काम नहीं चलेगा l बच्चे अपने परिवार के बड़ों के आचरण से सीखते हैं , उन्ही से संस्कार ग्रहण करते हैं l और एक सच यह भी है बुराई में लिप्त व्यक्ति अपने जूनियर को चाहे वह परिवार का हो या संस्था अपने गुर सीखा के जाता है ताकि बुराई साम्राज्य बना रहे l इसलिए परिपक्व आयु के व्यक्तियों के लिए नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान अनिवार्य है l