22 October 2020

भक्ति का मर्म

  व्रज  की  गोपिकाओं  की  भक्ति    को  शब्दों  में   उच्चारित  नहीं  किया  जा  सकता  l   एक  कथा  है ----  भगवान  द्वारकाधीश  ने  एक  दिन  बीमार  होने  की  लीला  रची  l   उनकी  बीमारी  का  समाचार  सब  ओर   फ़ैल गया   l   राजवैद्य   आए ,  नाड़ी   देखी ,  पर  कोई  भी  किसी  तरह  रोग  का  निदान  नहीं  कर  पा  रहा  था  l  सब  बड़े  चिंतित  थे  l  तब  भगवान  ने  नारद जी  का  स्मरण  किया  l   नारद जी  आए ,  उन्होंने  देखा  कि   भगवान  के  पलंग  के  पास  रुक्मणी , सत्यभामा  आदि  रानियाँ   खड़ी  हैं ,  उन्होंने   नारद जी  से  कहा   ---देवर्षि  !   आप  तो  परम  ज्ञानी  हैं  l   आप  ही  भगवान  की  इस  बीमारी  का  कोई  इलाज  बताएं  l '  नारद जी  प्रभु  की  लीला  समझ  गए , उन्होंने  कहा  --- " इस  बीमारी  का  इलाज  बहुत  सुगम  है  ,  आप  में  से  कोई  भी  इसे  कर  सकता  है   l "    सभी  ने  कहा  -- उपाय  सहज  हो  या  कठिन  हम  अवश्य  करेंगे  l   तब  नारद जी  बोले ---- " यदि  भगवान  श्रीकृष्ण  का  कोई   भक्त  अपने  चरणों  की  धूल  इनके  माथे  पर  लगा  दे  तो  ये  अभी  तुरंत  ठीक   हो जायेंगे   l  "  यह  विचित्र  उपाय  सुनकर  सब  सोच  में  पड़   गए  l  रानियों  ने  कहा  --- " भला  यह  कैसे  संभव  है  l  पहले  तो  ये  हमारे  पति  हैं  ,  फिर  ये  स्वयं   ब्रह्म  हैं  l   अपने  चरणों  की  धूल  इनके  माथे  पर  लगाकर  हम  सब  नरकगामिनी  हो   जाएँगी  l  "  नरक  के  भय  से  द्वारका  में  कोई  भी  यह  उपाय  करने  को  तैयार  नहीं  हुआ  l   भगवान  श्रीकृष्ण  के  संकेत  से  नारद जी  हस्तिनापुर  पहुंचे  ,  अपना  संदेसा   भीष्म , विदुर  , द्रोपदी कुंती   एवं   सभी  पांडवों  आदि  को  सुनाया   l   नरक  के  भय  से    अपने  चरणों  की  धूल  देने  को  कोई  भी  तैयार  नहीं  हुआ  ,  ऐसे  पापकर्म  से  सब  भयभीत  थे  l   अंत  में  प्रभु  की  प्रेरणा  से  नारद जी  व्रजभूमि  पहुंचे  l   नारद जी  को  देखते  ही  सब  गोपियाँ  व्याकुल  होकर  भगवान  श्रीकृष्ण  का  हाल   पूछने  लगीं  l   नारद जी  से  उनकी  बीमारी   का समाचार  सुनकर   सब  गोपियाँ  पोटली  में  भरकर  अपने  चरणों  की  धूल  ले  आईं  l  उनके  ऐसा  करने  पर  नारद जी  ने  उन्हें  समझाया --- " अभी  समय  है , तुम  सब  सोच  लो   ,  श्रीकृष्ण  भगवान  हैं  ,  उन्हें  अपने  चरणों   की धूल  देकर  तुम  सब  नरक  में  जाओगी  l  "  गोपियों  ने  कहा  --- "श्रीकृष्ण  के  लिए  वे  सब  कुछ  त्याग  सकती  हैं  ,  उनके  लिए  वे  हर  कलंक - अपमान  सहने  को  तैयार  हैं  l  अपने  कृष्ण  के  लिए  हम  सदा - सदा  के  लिए  नरक  भोगने   को तैयार  हैं  l  "  यह    सुनकर   नारद  जी निरुत्तर  हो  गए   और   द्वारका  पहुंचकर  अपनी  अनुभव  कथा  कह  सुनाई  l  यह  सब  सुनकर  श्रीकृष्ण  हँसे  और  बोले --- " नारद  !  यही  है  वह  भक्ति  ,  यही  हैं  वे  भक्त  , जिनके  वश  में  मैं  हमेशा  रहता  हूँ