अब से लगभग पांच - सौ वर्ष पूर्व चैतन्य महाप्रभु ने हिन्दू - जाति को जाग्रत करने के लिए कीर्तन का अविष्कार किया था । जब भारत में अंग्रेजी शासन था और हिन्दू धर्म पर ईसाइयत के आक्रमण हो रहे थे उस समय प्रभु जगद्बंधु ने कीर्तन के माध्यम से सबको संगठित करने व सांप्रदायिक भेद - भाव को दूर करने का प्रयास किया ।
जब कलकत्ता में भयंकर प्लेग फैला था , समस्त नगर में प्रलयकाल का सा द्रश्य दिखाई पड़ने लगा था । महामारी का प्रकोप अधिक बढ़ते देख ' अमृत बाजार पत्रिका ' के संपादक शिशिर कुमार घोष ने लार्ड कर्जन से इस संबंध में परामर्श किया और फिर अनेक गणमान्य नागरिकों के सहयोग से जिनमे हाईकोर्ट के प्रधान जज द्वारिका नाथ मिश्र और प्रमुख जमींदार यतीन्द्र मोहन ठाकुर भी थे , एक बहुत बड़ी सार्वजानिक सभा का आयोजन किया गया जिसमे इस महा विपत्ति से परित्राण पाने के लिए सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि कलकत्ते के मैदान में सब धर्मों की सम्मिलित ईश्वर प्रार्थना और विशाल कीर्तन का आयोजन किया गया |
उस समय बड़े लोग कीर्तन करना जानते ही न थे ।
कलकत्ता की डोम जाति के लोगों में प्रभु जगद्बंधु ने कीर्तन का प्रचार कर दिया था जिससे वे लोग अच्छे कीर्तनकार बन गये थे । अत: डोम जाति के लोगों को ही यहाँ कीर्तन करने के लिए अगुआ बनना पड़ा । इस अवसर पर प्रभु जगद्बंधु भी आ गये , उनका शारीरिक सौन्दर्य और देह माधुरी ऐसी अपूर्व थी कि भक्त गण उन्हें ' गौरांग महाप्रभु ' का अवतार मानने लगे थे |
प्राणों के भय से उस आपत्ति काल में ब्राह्मण - शुद्र , हिन्दू , मुसलमान, ईसाई आदि का भेदभाव जाता रहा , काले , गोरे, ऊँच - नीच सब मिलकर परम पिता की प्रार्थना करने लगे । धर्मतल्ला की बड़ी मस्जिद के कट्टर मुल्लाओं ने भगवान की आरती में भाग लिया । स्वयं लार्ड कर्जन भी इस अवसर पर आये और उन्होंने जूता तथा टोपी उतारकर ईश- प्रार्थना तथा भगवन्नाम - कीर्तन के प्रति सम्मान प्रकट किया । प्रभु जगद्बंधु की उपस्थिति में उस विशाल जुलूस में असंख्य कंठों से
' हरिध्वनि ' होने लगी , जिससे आकाश गूंज उठा | इस महा संकीर्तन के पश्चात् प्लेग का बढ़ना रुक गया और धीरे -धीरे नगर में शान्ति हो गई ।
जब कलकत्ता में भयंकर प्लेग फैला था , समस्त नगर में प्रलयकाल का सा द्रश्य दिखाई पड़ने लगा था । महामारी का प्रकोप अधिक बढ़ते देख ' अमृत बाजार पत्रिका ' के संपादक शिशिर कुमार घोष ने लार्ड कर्जन से इस संबंध में परामर्श किया और फिर अनेक गणमान्य नागरिकों के सहयोग से जिनमे हाईकोर्ट के प्रधान जज द्वारिका नाथ मिश्र और प्रमुख जमींदार यतीन्द्र मोहन ठाकुर भी थे , एक बहुत बड़ी सार्वजानिक सभा का आयोजन किया गया जिसमे इस महा विपत्ति से परित्राण पाने के लिए सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि कलकत्ते के मैदान में सब धर्मों की सम्मिलित ईश्वर प्रार्थना और विशाल कीर्तन का आयोजन किया गया |
उस समय बड़े लोग कीर्तन करना जानते ही न थे ।
कलकत्ता की डोम जाति के लोगों में प्रभु जगद्बंधु ने कीर्तन का प्रचार कर दिया था जिससे वे लोग अच्छे कीर्तनकार बन गये थे । अत: डोम जाति के लोगों को ही यहाँ कीर्तन करने के लिए अगुआ बनना पड़ा । इस अवसर पर प्रभु जगद्बंधु भी आ गये , उनका शारीरिक सौन्दर्य और देह माधुरी ऐसी अपूर्व थी कि भक्त गण उन्हें ' गौरांग महाप्रभु ' का अवतार मानने लगे थे |
प्राणों के भय से उस आपत्ति काल में ब्राह्मण - शुद्र , हिन्दू , मुसलमान, ईसाई आदि का भेदभाव जाता रहा , काले , गोरे, ऊँच - नीच सब मिलकर परम पिता की प्रार्थना करने लगे । धर्मतल्ला की बड़ी मस्जिद के कट्टर मुल्लाओं ने भगवान की आरती में भाग लिया । स्वयं लार्ड कर्जन भी इस अवसर पर आये और उन्होंने जूता तथा टोपी उतारकर ईश- प्रार्थना तथा भगवन्नाम - कीर्तन के प्रति सम्मान प्रकट किया । प्रभु जगद्बंधु की उपस्थिति में उस विशाल जुलूस में असंख्य कंठों से
' हरिध्वनि ' होने लगी , जिससे आकाश गूंज उठा | इस महा संकीर्तन के पश्चात् प्लेग का बढ़ना रुक गया और धीरे -धीरे नगर में शान्ति हो गई ।