8 February 2023

WISDOM ------

   महर्षि  शाल्विन  की  प्रथम  पत्नी  श्लेषा   और  दूसरी  पत्नी   इतरा , भिन्न -भिन्न  जातियों  की  थीं  l  दोनों  में  परस्पर  अत्यंत  प्रेम  था  l  संयोगवश  दोनों  ने  साथ -साथ  पुत्र  को  जन्म  दिया  l  महर्षि  दोनों  पुत्रों  में  कोई  भेद  नहीं  करते  थे  ,  लेकिन  एक  दिन  महर्षि  ने   इतरा  के  पुत्र  ऐतरेय  को  यज्ञशाला  में  आने  से  रोक  दिया  ,  जबकि  श्लेषा  के  पुत्र  को  आने  दिया  l  उसको  ऐसा  लगा  कि  जाति  भिन्नता  के  कारण  मुझसे  भेद   रखा  गया  l  उसने  अपनी  माँ  से  पूछा  --- " अब  मैं  यज्ञ  कहाँ  करूँ  ? " माँ  बोली --- "पुत्र  !  तू  अपनी  आत्मा  को  गुरु  मान और  धरती  को  यज्ञ  स्थल  मानकर  अपनी  उपासना साधना  आरम्भ  कर  l  " बालक  ने  माँ  के  बताए  मार्ग  का  अनुसरण  किया   और    साधना  कर  योगी  बन  गया  l   जब  वह  घर  लौटा  तो  दोनों  ही  माताओं  ने  उसका  स्वागत  किया  l  उसके  पिता  ने  उसके  द्वारा  रचित  पांडुलिपियों  को  देखा  तो  उसे  ह्रदय  से  लगा  लिया   l  वे  पांडुलिपियाँ  वेदों  की  विशुद्धतम  व्याख्या  थीं  ,  जो  ऐतरेय  ब्राह्मण  के  नाम  से   प्रसिद्ध   हुईं   l  ऐतरेय  की  इस  उपलब्धि  ने   सिद्ध  कर  दिया  कि   व्यक्ति  जन्म  से  नहीं  कर्म  से   ब्राह्मण  बनता  है  l