17 October 2019

WISDOM ----- आपत्तियों का कारण अधर्म है l

  ' मन  की   वृत्तियों   का  स्वार्थ  प्रधान  हो  जाना  ही  पाप  है  '----- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  
  आचार्य श्री ने लिखा  है --- '  चेतना    परिष्कार  किए  बिना ,  अपनी  सोच   बदले   बिना  --  बाहर  के  सारे  परिवर्तन  निरर्थक  कहे  जा सकते  हैं   l  उपासना  तभी  सार्थक   है    ,  जब  उसके  साथ  श्रेष्ठ  कर्म  जुड़ें  l  मात्र  पूजा - उपचार  तो  बहिरंग   का  कर्मकांड  भर  है   l   यदि  लोगों  के  ह्रदय  छल - कपट , पाखंड ,  द्वेष  आदि  दुर्भावों  से   भरे  रहें  , तो    उससे   अद्रश्य  लोक   एक  प्रकार  से   आध्यात्मिक  दुर्गन्ध  से   भर     जाते  हैं   l  पाप  वृत्तियों  के  कारण  सूक्ष्म  लोकों  का  वातावरण   गन्दा  हो   जाने  से    युद्ध ,   महामारी  ,  दरिद्रता ,  अर्थ  संकट  ,  दैवी   प्रकोप     आदि  उपद्रवों  का   आविर्भाव  होता  है   l
लेकिन  जब  मनुष्य  के  मन  में  सद्वृत्तियाँ  रहती  हैं  ,  तो  उनकी  सुगंध  से   दिव्यलोक  भरा - पूरा   रहता  है   और  जनता  की  सद्भावनाओं  के  फलस्वरूप  ईश्वरीय  कृपा  की  ,  सुख  शांति  की वर्षा  होती  है   l
 उनका  कहना  था ---- ' हम  सब  एक  पिता  के  पुत्र  हैं  ,  इसलिए  दूसरों  को  दुखी  देखकर  प्रसन्न  होना  एक  जघन्य  कर्म  है  l '