30 December 2019

WISDOM ----- ' जियो और जीने दो '

  ईश्वर  चाहते  हैं  कि   हम  ' जियो  और  जीने  दो '  के  सिद्धांत  के  अनुसार  स्वयं  भी  सुख पूर्वक  जीवन  यापन  करें   और  दूसरों  को  भी  जीने  दें   l  किन्तु  जब  हम  मोह - वश  इस  व्यवस्था  को   भंग    कर   अपने  और  दूसरों  के  लिए  पतन  और  पीड़ा  का  सृजन  करते  हैं  तब  अपनी  सृष्टि  व्यवस्था  में  संतुलन  स्थापित  करने  के  लिए   प्रभु  अवतरित  होते  हैं  l
  महाभारत  में  प्रसंग  है  ---  जब  भगवान   कृष्ण  कौरव - पांडवों  में  सन्धि   के  लिए  हस्तिनापुर  पहुंचे  तो  उन्होंने  धृतराष्ट्र   से  कहा  कि  आप  पांडवों  को  उनका  न्यायोचित  अधिकार  प्रदान  कर  इस  भयंकर  युद्ध  को  टालिए   l   तब  धृतराष्ट्र  ने  कहा ---  मैंने  और  गांधारी , भीष्म , द्रोणाचार्य , विदुर  सभी  ने  उसे  बहुत  समझाया  ,  वह  बहुत  हठी व  दुष्ट  है , आप  ही  उसे  समझाने   का  प्रयास  करें  l '
   श्रीकृष्ण  ने  दुर्योधन  को  समझाया  कि   ज्यादा  लोभ  अच्छा  नहीं  है  ,  तुम्हे श्रेष्ठ  पुरुषों   जैसा आचरण  करना  चाहिए  l   दुर्योधन  ने  किसी  की  बात  नहीं  मानी  और  कहा  कि   मैं  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  पांडवों  को  नहीं  दे  सकता।  फिर  सभा  से  उठकर  चला  गया  l   तब  श्रीकृष्ण   ने    भीष्म   आदि  को  संबोधित   करते  हुए  कहा ----  दुर्योधन  किसी की  बात  मानता  ही  नहीं ,  अब  कुरुवंश  का   हित    इसी में  है  कि    इस  पर बलपूर्वक    नियंत्रण  कर   इसे  कैद  कर  लिया  जाये   तभी   यह    भयंकर  युद्ध  रुक  सकता  है  l    जिस तरह  शरीर  में  पनपने  वाले   विषैले  फोड़े  को  माँ  बेरहमी  से  निकलवा  देती  है   ,  ताकि  उसके   बच्चे  का  भविष्य  सुखमय  हो  सके    उसी प्रकार  दुष्ट  को  कुल , समाज  व  राष्ट्र  की  भलाई  के  लिए  रास्ते  से  हटा  देना  चाहिए   l   दुष्टता  का  प्रतिरोध  भी  ईश्वरीय  कार्य  का  ही  एक  अंग  है  l 
 धृतराष्ट्र   तो  मोह  में  अंधे  थे , भीष्म  प्रतिज्ञा  से  विवश  थे  ,  कुछ  न  कर  सके  l  उलटे  दुर्योधन  ही  अपने  मंत्रियों  की  सलाह  से  कृष्ण  को  बंदी  बनाने  चला  l   तब  भगवान   ने  अपना  विश्वरूप  दिखाया   l
         दुर्योधन  के  अहंकार  में  पूरा  कुरुवंश  का  अंत  हो  गया  l