कहते हैं यदि भावनाएं परिष्कृत हों , हृदय में ईश्वर से मिलने की उत्कट अभिलाषा हो तभी श्रीमद भागवत कथा सुनने का लाभ मिल पता है l यदि कथावाचक का मन अपने नाम का प्रचार करने और धन कमाने में है और सुनने वाले का मन कथा स्थल पर बैठकर भी सांसारिक प्रपंच में उलझा हुआ है तो उस कथा से कोई लाभ नहीं मिल पाता l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' आज किसी के हृदय में भागवत कथा के प्रति अनुराग नहीं है l ईर्ष्या , निंदा , चुगली , कलंक , लांछन की कथाएं कहने - सुनने के लिए सभी आतुर हैं , इसके लिए बिना बुलाये पूरा गाँव सिमट कर आ जाता है लेकिन यदि कथा भगवान की हो तो लोग बुलाने पर भी नहीं जाते l यदि किसी भी तरह चले भी गए तो भागवत कथा की अनदेखी कर अपनी कुटिल चर्चाएं करते रहते हैं l ' भावनाएं केवल भगवान के प्रति ही शुष्क नहीं हुई हैं , अब मनुष्य परिवार , समाज , राष्ट्र सबके प्रति भावनाशून्य हो गया है l इसी कारण संसार में इतना दुःख और तनाव है l वैज्ञानिकों के एक दल ने जिसमे मनोवैज्ञानिक , , समाजशास्त्री , डॉक्टर आदि अनेक विधाओं के विशेषज्ञ थे और उनके मुखिया थे कार्ल कोलब्रुक , इन सबने मिलकर यह जानने की कोशिश की कि पृथ्वी पर जो गहन दुःख व्याप्त है , उसका कारण क्या है ? दुनिया के प्राय: सभी देशों में भ्रमण कर उन्होंने पाया कि गरीबी , अशिक्षा , बीमारी पहले भी थी , आज भी है बल्कि आज पहले से कुछ कम है , लेकिन इनसान का दुःख पहले से बढ़ा है l इसकी वजह उन्होंने यह खोजी कि आज इनसान में भावनात्मक तृप्ति का अभाव है , उसके जीवन की लय बिखर गई है l यदि इनसान को अपना दुःख मिटाना है तो उसे अपनी भावनाओं में भक्ति जगानी होगी l ' जब मनुष्य स्वार्थ , लालच और भौतिक सुख - सुविधाओं के पीछे न भागकर अपने हृदय में भावनाओं और संवेदना को प्रमुख स्थान देगा तभी संसार का दुःख दूर होगा l