27 November 2019

WISDOM ----- धर्म का सार है संवेदना

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- ' धर्म  एक  शाश्वत  नीति दर्शन  का  नाम  है   जो  मूलत:  संवेदना  की  धुरी  पर  जन्म  लेता  है  l   देव  संस्कृति  ने  धर्म  को  इसी  अर्थ  में  लिया  है  l  यही  कारण   है  कि   इसके  गर्भ  में    सभी  मत - सम्प्रदाय  पनपते - विकसित  होते  चले  गए  l   '
 आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ---   मानव की  संवेदना शीलता  का  विकास  ही  धर्म  है  l  वस्तुत:  धर्म  हमें  कर्तव्य  की  प्रेरणा  देता  है  ,  साथ  ही  फल  की  ओर   से  तटस्थ  रहने  का   आदेश  भी  देता  है   l   धर्म  का  एकमेव  लक्ष्य   है --- त्याग ,  संवेदना  का  जागरण   तथा  पारस्परिक  सद्भाव  का  विकास   l   इस  भावना  का  जितना   विस्तार   होगा   ,  धर्म  की  उतनी  ही  रक्षा  होगी   और  आस्था  संकट  की   विभीषिका  भी  तभी  मिटेगी   l  ' 
  संवेदना  क्यों  जरुरी  है   ?  इस  सम्बन्ध  में  यह   प्रसंग  है ---    काशिराज  युवराज  संदीप  के  विकास  से  संतुष्ट  थे   l   वे  प्रात:  ब्रह्म मुहूर्त  में  उठ  जाते   l     व्यायाम , घुड़सवारी  करते ,  समय  पर  अध्ययन   और  राजदरबार  के  कार्यों  में  रूचि  लेना  आदि    प्रवृतियां  ठीक  थीं  l   एक  क्षण  भी  न  गंवाते   और  न  किसी  दुर्व्यसन  में  उलझते  ,  किन्तु  राज पुरोहित  बार - बार  आग्रह  करते  कि   उन्हें  कुछ  वर्षों  के  लिए   किसी  संत  के  सान्निध्य  में  ,  आश्रम  में  रखने  की  व्यवस्था  बनाई  जाये  l   काशीराज   सोचते  थे  कि   राजकुमार  को   इसी  क्रम  में  राजकार्य  का  अनुभव  बढ़ाने  का  अवसर  दिया  जाये  l
     तभी  एक  घटना  घटी   l   राजकुमार  नगर  भ्रमण  के  लिए  घोड़े  पर  निकले  l  जहाँ  वे  रुकते  स्नेह  भाव  से  नागरिक   उन्हें  घेर  लेते  l   एक  बालक  कुतूहलवश  घोड़े  के  पास  जाकर  उसकी  पूंछ   सहलाने  लगा   l   घोड़े  ने  लात  फटकारी  तो  बालक  दूर  जा  गिरा  l   उसके  पैर   की  हड्डी  टूट  गई  l    राजकुमार  ने  देखा ,  हंसकर  बोले  ,  असावधानी  बरतने  वालों  का  यही  हाल  होता  है  ,  और  आगे  बढ़  गए  l   सिद्धान्तः   बात  सही  थी  लेकिन  लोगों  को  व्यवहार  खटक  गया  l
  काशिराज   को  सारा  विवरण  मिला  ,  तो  वे  भी  दुःखी   हुए   l  राजपुरोहित  ने  कहा ---- महाराज  !  स्पष्ट  हुआ  है  कि   युवराज  में  संवेदनाओं  का  अभाव   है   l   मात्र  सतर्कता  और  सक्रियता  के  बल  पर  वे   जनश्रद्धा  का  अर्जन  और  पोषण  नहीं  कर  पाएंगे   l   हो  सकता  है  कभी  क्रूर  कर्मी  भी  बन  जाएँ  l   इसलिए  समय  रहते  युवराज  की  इस  कमी  को    पूरा कर  लिया  जाना  चाहिए   l    राजा  का  समाधान  हो  गया  और  उन्होंने  राजपुरोहित  के  मतानुसार  व्यवस्था    कर  दी   l