1 September 2023

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मानवीय  संबंधों  का  आधार  भावनाएं  हैं l भावनात्मक  तृप्ति  मानव  जीवन  की  सबसे  बड़ी  आवश्यकता  है  l  लेकिन   आज  का  सबसे  बड़ा  दुर्भिक्ष  भावनाओं  के  क्षेत्र  का  है  l  सब  कुछ  पाकर  भी  मनुष्य  अतृप्त  ही  बना  रहता  है  l  इसी  के  कारण  जीवन  के  प्रत्येक  स्तर  पर  समस्याएं  उत्पन्न  हुई  हैं  l  रिश्तों  में  अपनापन  होने  का  मतलब  है  --- भावनाओं  के  तल  पर  जीना  , जिसमें  गहरी  तृप्ति  और  शांति  मिलती  है  l  लेकिन  आज  के  युग  में  भावनाओं  का  अकाल  है  इस  कारण  जीवन  में  तनाव  और  आंतरिक  खालीपन  है  l "  एक  प्रसंग  है ---- दो  संन्यासी  एक  आलीशान  कोठी  के  पास  से   गुजर  रहे  थे  कि  उन्हें  बहुत  जोर -जोर  से  पति -पत्नी  के  झगड़ने  की  आवाज  सुनाई  दी  l  उस  ओर   ध्यान  दिया  तो  देखा  कि  वे  दोनों  पास -पास  ही  खड़े  हैं  लेकिन   बहुत  ही  ऊँची  आवाज  में  , चीख -चिल्लाकर   विवाद  कर  रहे  हैं  l  आवाज  कोठी  के  बाहर  तक  आ  रही  है  l  नौकर -चाकर  आदि  लोगों  के  लिए  यह  सामान्य  , आए  दिन  की  बात  थी  l  l  एक  संन्यासी  ने  अपने  से  बुजुर्ग  संन्यासी  से  पूछा --- "  ये  दोनों  इतने  पास -पास  हैं  फिर  इतनी  ऊँची  आवाज  में  क्यों  बात  कर  रहे  हैं  ? "  बुजुर्ग  संन्यासी  बोले ---- " भावनात्मक  अलगाव  , एक  साथ  रहने  वालों  के  बीच  भारी  अंतर  व  दूरी  बना  देता  है  , सबके  बीच  एक  दीवार  खड़ी  कर  देता  है  l  पास  होकर  भी  जब  भावनाएं  जुड़ती -मिलती  नहीं  हैं   तो  दूरी  का  एहसास  होता  है   और  इस  दूरी  के  कारण  ये  दोनों  इतनी  जोर -जोर  से  बोल  रहे  हैं  l "  संन्यासी  ने   अपनी  बात  आगे  बढ़ाते  हुए  कहा --- " यदि  एक =दूसरे  की  भावनाओं  की  समझ  पैदा  हो  जाए  ,  भाव  गहरे  हों   तो  फुसफुसाहट  भी   अच्छे  से  समझ  में  आ  जाती  है   और  भाव  न  हों  तो   ऊँची  आवाज  भी  सुनाई  नहीं  देती  है  l "    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- "  मनोरोग  और  कुछ  नहीं , मनुष्य  की  दबी , कुचली , रौंदी  गई  भावनाएं  ही  हैं  l सकारात्मक  भावनाओं  की  प्राप्ति  से  ही   इन  रोगों  का  निराकरण  हो  सकता  है  l  जीवन  की  आंतरिक   नीरसता  और  खोखलेपन  को  दूर  करना  है   तो  परमार्थ  को , निष्काम  कर्म  को   अपनी  दिनचर्या  में  सम्मिलित  करना  होगा  , इससे  ही  हमारे  अंदर  के  विकार  दूर  होंगे   जो  संबंधों  में  कडुआहट  पैदा  करते  हैं  ,  जीवन  का  खालीपन  दूर  होगा   और  जीवन  में  आंतरिक  ख़ुशी  व  संतुष्टि  महसूस  होगी  l  "