17 May 2021

WISDOM -------

   कायरता   मनुष्य   का  सबसे  बड़ा  कलंक  है   l   कायर  व्यक्ति  ही  संसार  में   अन्याय , अत्याचार  तथा  अनीति  को  आमंत्रित  किया  करते  हैं   l   संसार  के  समस्त  उत्पीड़न  का  उत्तरदायित्व  कायरों  पर  है  l '   शक्ति  और  वैभव  के  अहंकार  के  कारण  संसार   को  अनगिनत  बार  युद्ध  की  त्रासदी  झेलनी  पड़ी  l   पहले  युद्ध  होते  थे  तो   राजा स्वयं   हाथी   पर  बैठकर   युद्ध  का  संचालन   करते  थे   l   राणा  सांगा   के  शरीर  पर  अस्सी  घाव  हो  गए  ,  लेकिन  वे  युद्ध  के  मैदान  से  पीछे  नहीं   हटे  l   महाराणा  प्रताप ,  पृथ्वीराज  चौहान  आदि   अनेक वीर  राजाओं  की  वीरगाथा  से  इतिहास  भरा  पड़ा  है  l   लेकिन  अब  विज्ञानं  ने  युद्ध  का  स्तर  बदल  दिया  l   आचार्य श्री  कहते  हैं ---- ' अहंकारी  एक  प्रकार  का  उन्मादी  होता  है  l "                                            जिनके  उन्माद  की  वजह  से  युद्ध  होते  हैं  ,  अनेक  मुसीबतें  आती  हैं  वे   सुरक्षा   गार्ड  से  घिरे  अपने  महलों  में  सुरक्षित  रहते  हैं   और  निर्दोष  प्रजा ,  मासूम  बच्चे     जिनका  कोई  अपराध  नहीं  है  बेमौत  मारे   जाते  है  l   वीरता  की  नई   परिभाषा   विज्ञान   की  देन   है  l 

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  वाक् चातुरी   और  छल -बल  से   व्यक्ति  को  भले  ही  अपने  वश  में   कर  लिया  जाये  ,  पर  हृदय   अवश   ही  रहता  है  ,  किसी  के  मन  को  अपने  वश  में    नहीं किया  जा  सकता  है  ,  जो  और  ज्यादा  अनर्थ  उत्पन्न  करता  है  l  "  महाभारत  का  प्रसंग  है  ----   महाबली  शल्य   महाराज  पाण्डु  की  दूसरी  पत्नी  माद्री   के भाई  थे  और  युद्ध  में  पांडवों  का  सहयोग  करना  चाहते  थे   किन्तु  दुर्योधन  के  छल - बल  और  वाक् चातुर्य  से  वे  वचनबद्ध  हो  गए   और  उन्हें  कौरवों  के  साथ  सहयोग  करने      को    विवश  होना  पड़ा   l   वे  कर्ण   के  सारथि  बने  ,  शल्य  सोच  रहे  थे  कि   पूरी  तरह  से   अन्याय  को   सहयोग  देने   की  अपेक्षा   यह  विवशता  है   l   किस   तरह मैं   धर्म  और  न्याय  का  समर्थन  करूँ   ?   उन्हें  अपने  वचनबद्ध  होने  का  बड़ा  पश्चाताप  था   l   उन्हें  कोई  उपाय  समझ  में  नहीं  आ  रहा  था  कि   उनके  वचन  की  भी  रक्षा  हो  जाए   और  हृदय  भी  इस  अपराध- बोध  से  मुक्त  हो  जाए  l    इसी   मानसिक  द्वन्द  में  वह  भगवान  श्रीकृष्ण  के  पास  गए  l  '     कृष्ण जी   ने  कहा  ---- ' कर्ण    बड़ा  शूरवीर  है  ,  तुम  उसके  सारथि  हो  l   इसलिए  युद्ध  में  तुम    कर्ण  को  निरुत्साहित    करते  रहना   l   निरुत्साहित  व्यक्ति  की  आधी  सामर्थ्य   समाप्त  हो  जाती  है   l   इस  तरह    तुम  कौरवों  के  पक्ष  में  रहते  हुए  भी   हमारे  सहयोगी  बन  सकते  हो   l   '      युद्ध  में  शल्य  ने  ऐसा  ही  किया  l   अर्जुन  को  सामने  देखकर  जब  कर्ण   ने हुंकार  भरी   और  कहा --- " मैं  अर्जुन  को  आज  ही  समाप्त  कर  दम   लूंगा  l  "  तो  शल्य  ने  कहा  --- "  अर्जुन  को  मारना  टेढ़ी  खीर  है  l   अर्जुन  ने  इंद्र  से  युद्ध  करना  सीखा  है   और  भगवान  शंकर  से  धर्नुविद्दा  सीखी  है  l   वनवास  के  तपस्वी  जीवन  ने  उसे  बहुत  मजबूत  बना  दिया  है  l   तुम  उसे  क्या  हराओगे  ?   शल्य  इसी  तरह  की  बात  कर  कर्ण   को हतोत्साहित  करते  रहे   l   दूसरी   ओर    महावीर , महादानी    कर्ण  को  अपने  सामने  देख   अर्जुन   ने  कहा  --- " भगवन  !  मैं  कर्ण  के  सामने  किस  प्रकार    टिक  सकूंगा  ? "  तब  कृष्ण  ने  अर्जुन  को  प्रोत्साहित  करते  हुए  कहा  -- " अर्जुन  !  तुम  जानते  हो  कि   कर्ण  को  शंकर जी  का  शाप  है   कि   वह  अन्य  वीरों  के  लिए  भले   ही  अजेय  हो  ,  पर  अर्जुन   के सामने   उसकी  धर्नुविद्दा  कोई  काम  नहीं  करेगी   l   कर्ण  चाहे  शूरवीर  है   किन्तु  वह  अधर्म , अन्याय  के  साथ  है   इसलिए  उसकी  पराजय  निश्चित  है   l  "  भगवान  कृष्ण  के  वचन  सुनकर   अर्जुन  के  हौसले  बढ़  गए  , बड़े  उत्साह  से  उसने  युद्ध  किया   और  कर्ण   को  अर्जुन  के  हाथों  परास्त  होना  पड़ा   l