10 April 2021

WISDOM --------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' दीन  - दुर्बल  वे  नहीं  जो   गरीब  अथवा  कमजोर  हैं   वरन  वे  हैं  जो  कौड़ियों  के  मोल   अपने  अनमोल  ईमान  को   बेचते  हैं  ,  प्रलोभनों  में  फँसकर   अपने  व्यक्तित्व  का  वजन  गिराते   हैं  l  तात्कालिक  लाभ  देखने  वाले  व्यक्ति   उस  अदूरदर्शी  मक्खी   की  तरह  हैं  ,  जो  चासनी  के  लोभ  को  संवरण  न  कर  पाने  के  कारण   उसके  भीतर  जा  गिरती  है    तथा  बेमौत  मरती   है   l   मृत्यु  शरीर  की  ही  नहीं  व्यक्तित्व  की  भी  होती  है   l   गिरावट  भी  मृत्यु  है   l '   लोभ , लालच ,  तृष्णा   आदि     दुर्गुणों  से  ग्रस्त  व्यक्ति   कितना  ही  धन , वैभव  और  शक्ति संपन्न   हो  , वह  मन  का  दरिद्र  होता  है  और   अपनी  असीमित  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए   वह    अपना  स्वाभिमान ,  आत्मविश्वास  ,  अपना  चरित्र  सब  कुछ  खो   देता  है  l 

WISDOM -----

   प्राचीन   समय  की  बात  है  ,  जब  धरती  विभिन्न  सीमाओं  में  नहीं  बँटी   थी  और  सुविधानुसार   योग्य  व्यक्ति   अपने साधनों  और   समझ  के  अनुसार  एक  भूभाग  की  देखभाल  किया  करते  थे   l  प्रजा  सुखी व  संपन्न  थी  ,  कोई  अपराध  नहीं  थे  l    वक्त   बीतता  गया  ,  उस  योग्य  व्यक्ति  को  . राजा ' नाम  दे  दिया  गया  ,  खुशियां  तब  भी  थीं  l   प्रत्येक  भूभाग  के  धन - संपन्न  व्यक्ति    विभिन्न  प्रशासकीय  कार्यों  के  लिए  मदद  करते   थे   और  प्रजा  के  हित    के  लिए  शिक्षण  संस्थाएं , अस्पताल ,  कुएं   व  पशुओं  के  लिए  चारागाह   आदि  विभिन्न  लोक कल्याण  के  कार्य  करते   थे  l   सब  दिन  एक  से  नहीं  होते  l   विभिन्न  भूभागों  में  से  एक  में  एक  व्यक्ति  बहुत   संपन्न  था  ,  उसका   व्यापार    दूर - दूर  तक  था  , वह   विभिन्न  क्षेत्रों  में  लोगों  की  , और  राजा  की  मदद   भी   करता  था  l  इस  बात  का  उसे  बड़ा  अहंकार  था  ,  वह  सोचने  लगा  कि   जब  हम  इतना  धन   सब की  मदद  में  देते  हैं   तो  हुकूमत  भी  हमारी  चलनी  चाहिए  l   उसने  विभिन्न  भूभाग  के   धनिकों  से  संपर्क  किया    और  संगठन   बनाकर   यह  निश्चय  किया   कि   प्रत्येक  भूभाग  में   सभी  नियम - कानून   उनकी  सहमति  और  स्वीकृति  से  ही  लागू   होंगे  l   ऐसा  करने  के  लिए   उन्होंने   अपने  भूभाग  के  राजा  को  आश्वासन  दिया  कि   यदि  वे  उनकी  कठपुतली  बन  कर  रहेंगे  तो   हमेशा     गद्दी  पर  बने  रहेंगे   l   एक  कहावत  है ---- ' तेली   का काम  तमोली  नहीं  कर  सकता  ' l  जब  व्यापार  करने  वाले   प्रशासनिक  कार्य  में   दखल  करने  लगे    तब   सभी  नियम - कानून  में  उनका  स्वार्थ  प्रमुख  हो  गया  l   ऐसे  नियम बने  कि    उनकी अमीरी  में कमी   न आए   और  जनता   गरीब    और  मजबूर  हो  जाये   ताकि   उसमे  विद्रोह  की  हिम्मत  ही  न  रहे  l   अपने  अस्तित्व  को  बचाने   के  लिए  बड़ी  मछली  ने  छोटी  मछली  को  निगल  लिया  l   जो  श्रम  का  महत्त्व  समझते  थे  उन्हें  भी  आलसी  बना  दिया  l   विभिन्न  भूभागों  के  राजा  जिन्होंने   सत्ता  और  धन  के  लालच  में  अपना  स्वाभिमान  गिरवी  रख  दिया  था  ,  धरती  से  उनके  भी  जाने  के  दिन  आ  गए   लेकिन  तब  तक  बहुत  देर  हो  गई  थी   l   श्रम   से   दूरी   के  कारण   लोग आलसी   और  भिखारी  हो  गए    और  पेट  की  आग  के  कारण   आपस   में  ही लड़  मरे  l   अराजकता  और  अव्यवस्था  ने  सब  को  निगल  लिया   और  अनेक  गुणों  की  खान    वह  सभ्यता  और  संस्कृति     विभिन्न  आपदाओं  को  सह  न  सकी  और   धूल  में  मिल  गई  l