31 January 2021

WISDOM ------

   संसार  में  अनेक  दुःख  हैं  ,  लेकिन  अकेली  मृत्यु  सबसे  बड़ा  दुःख  है   और  सारे   दुःख   तो  उसी  की  छाया  में  है   l   हर  व्यक्ति  भयभीत  है  अपने   मिटने  के  डर   से   l     रूस  के  अति  विलक्षण  संत  गुरजिएफ  का  कहना  था  --- अगर  इस  सारी   धरती  को  धार्मिक  बनाना  है    तो  केवल  एक  उपाय  है  --- वैज्ञानिकों  को  सारी   चिंता  छोड़कर   एक  मशीन  खोज  लेनी  चाहिए  ,  जो  बिलकुल  घड़ी   की  तरह  हो  l   जिसे  हर  आदमी  के  हाथ  पर  बाँध  दिया  जाये  l   जो   हमेशा  बाँधने  वाले  को  बताती  रहे  कि   अब  मौत  कितने  करीब  है  l   उसका  काँटा  निरंतर  घूमता  रहे  l   मृत्यु  का   डर   सबसे  बड़ा  डर   है  l   मनुष्य  स्वयं  को  अमर  समझ  कर    गलत  कार्य  करता   रहता  है   लेकिन  जब  हर  पल  उसे    मृत्यु    अपने  पास  आती  दिखाई  देगी   तब  संभव  है   वह  सन्मार्ग  पर  चले   l 

30 January 2021

WISDOM -----

   क्रोध  एक  ऐसा  मनोविकार  है   जो  बुद्धि , विवेक  और  भावना  सबको  नष्ट  कर  देता  है   l    क्रोध  का  पहला  प्रहार   विवेक   पर   व  दूसरा  प्रहार  होश  पर  होता  है   l   इसलिए  कठिन  कार्यों  , संकट  के  समय   और  अपमान  होने  पर  धैर्य  धारण  करने  की  सलाह  दी  जाती  है   l   क्रोध  करने  से  शारीरिक  व  मानसिक  ऊर्जा  का     क्षय  होता  है   l   जिस  तरह  जब  पानी  को  गरम   किया  जाता  है   तो  थोड़ी  देर  में  वह  गरम  होकर  उबलने  लगता  है   और  उबलने  पर  पानी  भाप  में  बदलता  जाता  है    , इसी  तरह  जब  व्यक्ति  क्रोध  में  गरम  होकर   उबलता  है   तो  उस  समय  उसकी  ऊर्जा  सर्वाधिक  मात्रा  में  व्यय  होती  है   l    इसलिए  मनुष्य  को  सर्वप्रथम  अपने  क्रोध  पर  नियंत्रण  रखना  चाहिए   ऐसा  होने  पर  दुर्भावनाएं   मन  को  घेर  नहीं  पाएंगी  और  व्यक्ति  पूर्ण  रूप  से  स्वस्थ  रहेगा   l 

29 January 2021

WISDOM -----

   कर्म फल  को  समझाने   वाली  एक  पौराणिक  कथा  है ----  एक  बार  महर्षि  वसिष्ठ   श्रीराम  को  उपदेश  दे  रहे  थे   l   इस  बीच  वे  लघुशंका    हेतु   गए  l  लघुशंका  के  दौरान  वे  जोर  से  हँसे  l   रामचंद्र जी  ने  सोचा  इतने  बड़े  महर्षि    लघुशंका  के  दौरान  हँस   रहे  हैं   !  क्या  इन्हे  इतना  ज्ञान  नहीं  है   कि   इस  समय  कोई  क्रिया  नहीं  करनी  चाहिए   l   जब  लौटकर  आए   तो  श्रीराम  ने  पूछा  --- " भगवन  !  क्या  बात  थी  आप  हँसे   क्यों  ?  ऐसे  समय  आपको  हँसी   आना    किसी विशेष  रहस्य  का  कारण  है   ? "  महर्षि  बोले  ---- "  मैं  एक  दृश्य  देखकर   हंस  पड़ा   l   एक  चींटा   नीचे   नदी  के  प्रवाह  में  बहा  जा  रहा  था   l   वह  चींटा   नौ  बार  इंद्र  पद  पर  रह  चुका  है  ,  पर  अपने  भोग  के  कारण   चींटे   की  योनि  को  प्राप्त  हुआ  है  l  "   जब  इंद्र  पद   प्राप्त  करने  वाले  की  यह  स्थिति  है  तो  मनुष्यों  को    होश  में  रहकर  कर्म  करना  चाहिए   l 

WISDOM ---- अपने लक्ष्य को पाने के लिए सर्वाधिक महत्व की बात है कमिटमेंट l

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " कमिटमेंट  अर्थात  जो  हम  कहते  हैं  ,  उसे  निभाना  आना  चाहिए  l  कमिटमेंट   लक्ष्य  प्राप्ति  का  उत्तम  साधन  है   l   जो  अपने  दिए  वचन  पर  अडिग  रहता  है  ,  वही   प्रामाणिक  होता  है   l   ऐसे  व्यक्ति  को  सहयोग  व  सहायता  भी  मिलती    है    और  उसके  लिए  सफलता  का  द्वार  खुल  जाता  है   l   वचन  दिया  है  तो  उसे  निभाना  चाहिए  l   सफलता  के  लिए  यह  एक  अपरिहार्य  शर्त  है   l  "  आचार्य श्री   लिखते  हैं  -  लक्ष्य  के  लिए  चल  पड़े  हो   तो  फिर  पीछे  मुड़कर  नहीं  देखना  चाहिए   l   आगे  की  ओर   आने  वाली  हर  कठिनाई   का  डटकर  सामना  करना  चाहिए   l   पीठ  दिखाने   वाले  कायर  कहलाते  हैं   और  उनका  उपहास  उड़ाया   जाता  है  ,  जबकि  चुनौती  का  सामना  करने  वाले  बहादुर  कहे  जाते  हैं   और  उन्ही  के  सिर   पर  सेहरा  सजता  है   l   हर  चुनौती  हमें  एक  नई  सीख  दे   जाती    है   कि   किस  प्रकार   हम  अपने  लक्ष्य  की  ओर   कदम  बढ़ाएं   l  अत:  हमें  कभी  डरना  नहीं  चाहिए  तथा  सूझ - बूझ   के  साथ  आगे  बढ़ते  रहना  चाहिए   l  "

28 January 2021

WISDOM ------

    सिकंदर  एक  ऐसा  व्यक्ति  था  ,  जिसके  पास  किसी  भी  चीज  की  कमी  नहीं  थी  ,  लेकिन  वह  हीनता  की  ग्रंथि  का  शिकार  था   और  इसी  मनोग्रंथि  के  कारण   पुरे  विश्व  को  जीतने  की   महत्वाकांक्षा  मन  में  संजोये  था  l   अपनी  विश्वविजय  यात्रा  पर  निकलने  से  पहले   वह  डायोजिनीस   नामक  फकीर   से  मिलने  गया  ,  जो  हमेशा  नग्न  और  परमानंद   की  अवस्था  में  रहते  थे   l   सिकंदर  को  देखते  ही  डायोजिनीस  ने  पूछा ---- " तुम  कहाँ  जा  रहे  हो   ? " सिकंदर  ने  कहा --- " मुझे  पूरा  एशिया  महाद्वीप  जीतना  है   l  "                                      डायोजिनीस ----- "उसके  बाद  क्या  करोगे  ? "    सिकंदर ---- " उसके  बाद  भारत  जीतना  है  l "              डायोजिनीस ----- " उसके  बाद  ? "         सिकंदर ----- " शेष  दुनिया  को  जीतूंगा  l "                            डायोजिनीस ----  " और  उसके  बाद  l  "    सिकंदर  ने  खिसियाते  हुए  उत्तर   दिया --- " उसके  बाद  मैं  आराम  करूँगा  l  "       डायोजिनीस  हँसने   लगे  और  बोले ----- " जो  आराम  तुम  इतने  दिनों  बाद  करोगे  ,  वह  तो  मैं  अभी  भी  कर  रहा  हूँ  l   यदि  तुम  आख़िरकार  आराम  ही  करना  चाहते  हो  तो   इतना  कष्ट  उठाने   की क्या  आवश्यकता   ?  तुम  भी  यहाँ  पर  आराम   कर सकते  हो  l  "  सिकंदर  सोचने  लगा   उसके  पास  सब  कुछ  है  ,  पर  शांति  नहीं   और  डायोजिनीस  के  पास  कुछ  नहीं  ,  पर  उसका  मन  शांति  और  आनंद  से  भरा  हुआ  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- '  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  मुक्त  होता  है  वे  कहीं  भागते  नहीं  ,  किसी  को  जीतते  नहीं   ,  वह  स्थिर  होते  हैं  ,  स्वयं  को  जीतते  हैं   और  धीरे - धीरे  उनका  मन  शांति  और  आनंद  से  भर  जाता  है   लेकिन  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  घिरा  होता  है  ,  वे  बेचैन , अशांत  व  परेशान     रहते  हैं   l   ऐसे  व्यक्ति  चाहे  पूरा  विश्व  भ्रमण  कर  लें  ,  ढेर  सारी   सम्पदा  एकत्र   कर  लें  ,  लेकिन  फिर  भी   वे अपने  मन  के  अँधेरे  को   दूर  नहीं  कर  पाते   l "

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " आकस्मिक  विपत्ति  का  सिर   पर  आ  पड़ना   मनुष्य  के  लिए  सचमुच  बड़ा  दुखदायी  है  l  इससे  उसकी  बड़ी  हानि  होती  है  ,  किन्तु  उस  विपत्ति  की  हानि  से  अनेकों  गुनी  हानि  करने  वाला  एक  और  कारण  है  ,  वह  है  विपत्ति  में  घबराहट  l   विपत्ति  कही  जाने  वाली  मूल  घटना   चाहे  वह  कैसी  ही  बड़ी  क्यों  न  हो  ,  किसी  का  अत्यधिक  अनिष्ट  नहीं  कर  सकती  ,  परन्तु  विपत्ति  की  घबराहट   ऐसी  दुष्ट  पिशाचिनी  है   कि   जिसके  पीछे  पड़ती  है   उसके   गले से   खून  की  प्यासी  जोंक  की  तरह  चिपक  जाती  है   और  जब  तक  उस   मनुष्य को  पूर्णतया  नि:सत्व  नहीं  कर  देती  ,  तब  तक  उसका  पीछा  नहीं  छोड़ती  l  l  "      इसलिए  विपत्ति  आने  पर  हमें  धैर्य  से  काम  लेना  चाहिए   l   स्वामी  रामतीर्थ  कहते  हैं  ---- "    धरती    को  हिलाने   के  लिए   धरती   से    बाहर  खड़े  होने  की  आवश्यकता  नहीं  है  ,  आवश्यकता  है  ---- आत्मा  की  शक्ति  को  जानने   और जगाने  की   l   आत्म  शक्ति  का  ही  दूसरा  नाम  है  आत्मविश्वास  है  l  "     आत्मविश्वास  ही  ईश्वरविश्वास  है  l 

27 January 2021

WISDOM ------

   कहते  हैं  --- जो  कुछ  महाभारत  में  है ,  वही  इस  धरती  पर  है   l   इसके  विभिन्न  प्रसंग  हमें  शिक्षा  देते  हैं ,  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  ------- महाभारत  का  एक  पात्र  है  ----'  अश्वत्थामा  '  l   जब  महाभारत  के  युद्ध   में दुर्योधन  भी  पराजित  हो  गया  ,  वह  घायल  अवस्था  में  पड़ा  था  ,  उसे  इस  बात  का  दुःख  था  कि   पांचों  पांडवों  में  से  वह  किसी  को  नहीं  मार  सका  l   तब  उसने  कूटनीतिक  चाल  चली   और    शिविर  में    सोते  हुए  पांचों   पांडवों  को मरने  चला  l   उस  समय  उस  स्थान  पर  द्रोपदी  के  पांच  अबोध  शिशु  सो  रहे  थे  l   क्रोध  में  उसकी  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  गई  ,  उसने   उन  पांचों  बच्चों  का  गला   काट  दिया  और  दुर्योधन  के  पास  पहुंचा  l   दुर्योधन  ने  उससे  भीम  का  सिर   माँगा  l   सिर   को  अपने  हाथ  में  लेते  ही   वह  चौंक  गया  ,  इतना  कोमल   और नाजुक  l   दुर्योधन  क्षत्रिय  था ,  वीर  था  ,  उसको  अपने  जीवन   के   आखिरी   पल   में  बहुत  दुःख  हुआ  , उसने  कहा --- अश्वत्थामा  तुमने  यह   घोर पाप  किया  ,  निर्दोष  बच्चों  की  हत्या  कर  दी  !     पांडवों  को   जब  इसकी  जानकारी  मिली   तो  उन्होंने  अश्वत्थामा  को   पकड़  कर  द्रोपदी  के  सामने  पेश  किया   कि    इस  घोर  पाप  के  लिए  इसे   जैसा  कहो  वह  दंड  थे  ,  लेकिन  द्रोपदी  को  दया  आ  गई  ,  और  कहा  जैसे  मैं  दुःखी   हूँ  ,  गुरु  माता  को  भी  दुःख  होगा  , इसे  छोड़  दो   l    सोते  हुए  निर्दोष  बालकों  की  हत्या  का  घृणित  कृत्य  कर  के  भी  उसे   क्षमा  मिल  गई  ,  इससे  वो  सुधरा  नहीं   बल्कि  और  पाप  करने   की उसकी  हिम्मत  खुल  गई   l        अब  उसने    अभिमन्यु  की  पत्नी  उत्तरा  के  गर्भ  को   निशाना  बनाया  ,  ताकि  पांडवों   का वंश  ही  समाप्त  हो  जाये  l   गर्भस्थ  शिशु  की  रक्षा  तो  भगवान  कृष्ण  ने  की  ,  लेकिन  फिर  उन्होंने  अश्वत्थामा  को  क्षमा   नहीं किया  l   मृत्यु  दंड  तो  कम  था  ,  भगवान  कृष्ण  ने  भीम  से  कहा  -- अश्वत्थामा  के  मस्तक  पर  जो  मणि  है  उसे  निकाल   दो  ,  इससे  वहां  घाव  हो  जायेगा   जो   हमेशा रिसता   रहेगा  ,  उससे  बुरी  बदबू  आएगी  ,  मणिहीन   होकर    हजारों  वर्षों  तक  ये  ऐसे  ही  भटकता  रहेगा  l   पूर्वज  कहा  करते  थे  -- यदि  कभी   अचानक  तेज  बदबू    आये  तो  समझो  वहां  से  अश्वत्थामा  निकला  है  l    ----- महाभारत  का  यह  प्रसंग  शिक्षा  देता  है  कि    कभी    किसी   निर्दोष  प्राणी  की  हत्या  नहीं  करनी  चाहिए  ,  संसार  की  अदालत  से  तो  व्यक्ति  बच  जाता  है   लेकिन  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता  l 

26 January 2021

WISDOM ------

   एक  पौराणिक  गाथा  है  ----- सीता  हरण   के  उपरांत  जब  रावण  को  परास्त  करने  का  प्रश्न  आया    तो    राम  के  द्वारा   भेजा  गया  निमंत्रण   उन  दिनों  के   राजाओं  और  संबंधियों   तक  ने  अस्वीकृत  कर   दिया था  l   उन्हें  लगा  कि   राम  तो  वनवासी  हैं , उनके  पास  कोई  सेना  नहीं  है   और  रावण  बहुत  शक्तिशाली  है  ,  इसलिए  झंझट  में  न  पढ़कर  कन्नी  काट  गए   l   लेकिन  जहाँ  अत्याचार  और  अन्याय  के  उन्मूलन  का  प्रश्न  होता  है   , वहां  दिव्य  शक्तियां   मदद  करती  हैं  l   रीछ  और  वानरों  की  विशाल  सेना  तैयार  हो  गई   जो  उत्साह , साहस  और  प्राणशक्ति  से  ओत - प्रोत  थी  l   इसी  तरह  इस  युग  में  जब  छत्रपति  महाराज  शिवाजी   अपने  सैन्यबल  को  देखते  हुए  असमंजस  में  थे  ,  तो  समर्थ  गुरु  रामदास  ने  उन्हें  भवानी  के  हाथों  अक्षय  तलवार  दिलाई   थी  और  कहा  था  ------ " तुम  छत्रपति  हो  गए  ,  पराजय  की  बात  ही  मत  सोचो   l  "          पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  कहते  हैं  ---- " युग सृजन  में  श्रेय  किन्ही  को  भी  मिले   ,  पर  उसके  पीछे  वास्तविक   शक्ति  उस  ईश्वरीय    सत्ता  की  ही  होगी   l   युग सृजन  महाकाल  की  योजना  है  l  "

WISDOM ----- ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है , जो अपनी सहायता आप करते हैं --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- '  ईश्वर  का  आक्रोश  तब  उभरता  है   जब  अनाचारी  अपनी   गतिविधियां  छोड़ते  नहीं   और  पीड़ित  व्यक्ति   कायरता , भीरुता  अपनाकर    उसे  रोकने  के  लिए  कटिबद्ध  नहीं  होते   l   संसार  में  अनाचार   का  अस्तित्व   तो    है  ,  पर  उसके  साथ  ही  यह  विधान  भी  है   कि   सताए  जाने  वाले   बिना  हार - जीत  का  विचार  किए   प्रतिकार   के  लिए  ,  प्रतिरोध  के  लिए    तैयार  तो    रहें   l   दया , क्षमा  आदि  के  नाम  पर  अनीति  को  बढ़ावा  देते  चलना   सदा  से   अवांछनीय      समझा  जाता  है   l   अनीति  के  प्रतिकार  को   मानवीय  गरिमा   के  साथ   जोड़ा  जाता  रहा  है   l 

25 January 2021

WISDOM ------

      ' आधी  छोड़  सारी   को  धावे  ,  आधी  मिले  न  सारी    पावे  '  l    मनुष्य  एक  बुद्धिमान  प्राणी  है   l  लेकिन  लोभ , मोह  , कामना , तृष्णा  ये  सब  मानसिक  कमजोरियां  उसे  दुर्बुद्धिग्रस्त  कर  देती  हैं  l   एक  कथा  है  ----- एक  बार    की  बात  है    लोगों  का  बहुत  बड़ा  समुदाय   व्याकुल  होकर  ईश्वर  से  प्रार्थना  करने  लगा   कि   हमारी  रक्षा  करो  l  सामूहिक  प्रार्थना  में  बड़ी  शक्ति  होती  है  l   विधाता  ने  पूछा  कि   -- अनंत   सुख  सुविधाओं  के  होते  हुए  भी     अब  क्या    दुःख  है  ?     लोगों ने  कहा  ---- दुःख  यही  है  कि   विभिन्न  बीमारियों  ने  घेर  रखा  है  ,  उन  सुखों  का  उपभोग  ही  नहीं  कर  पा  रहे  हैं  ,  तनाव  है  ,  आनंद  नहीं  है  l  मनुष्य  में  विकृतियां  बढ़ती  जा  रही  हैं  l  '  विधाता  ने  समझाया  ----' इस  विशाल  धरती  के  हर  भू भाग  की  अपनी  विशेषताएं  हैं  l   जिस  भूभाग  में  तुम  ने  जन्म  लिया  है  उसी प्रकृति     के  अनुरूप  भोजन , फल , चिकित्सा  आदि    लेने  से  ही  स्वस्थ  रहा  जा  सकता  है   l    अपने  विवेक  को  जाग्रत  करो  l  प्रकृति   में सब  कुछ  पवित्र  है  , मनुष्य  ने  अपने  विकारों  के  कारण  प्रकृति   में  असंतुलन  पैदा  कर  दिया  l '

24 January 2021

WISDOM ------

  जीवन  में  सफलता  के  लिए  लक्ष्य  पर  ध्यान  केन्द्रित   होना  जरुरी  है  l    महाभारत  और  रामचरितमानस   के  अनेक  प्रसंग   जो  हमें  शिक्षण  देते  हैं    कि   हमें  अपने  लक्ष्य  से  नहीं  भटकना  चाहिए  l  रामचरितमानस  में  प्रसंग  है  ---- जब  श्री हनुमानजी  सीता जी  की  खोज  में  लंका  जा  रहे  थे   तब  उनका  सामना  सुरसा  नाम  की  राक्षसी  से  हुआ   l   उन्हें  खाने  के  लिए   उस  राक्षसी  ने  अपना  मुंह  बहुत  बड़ा  कर  खोला   तो  हनुमान जी  ने  भी  अपने  रूप  को  बड़ा  कर  लिया    और  फिर   छोटे    बनकर     उसके  मुँह   में  प्रवेश  कर  बाहर  निकल  आए   l   इस   आचरण  से  उन्होंने  यह  बताया  कि   जीवन  में  किसी  से  बड़े  बनकर  जीता  नहीं  जा  सकता   l   लघुरूप  होने  का  अर्थ  है   नम्रता  ,  जो  सदैव  विजय  दिलाती  है   l   हनुमान जी  चाहते  तो  सुरसा  से  युद्ध  कर  सकते  थे  ,  उसे  पराजित  कर  सकते  थे  l   लेकिन  उन्होंने  विचार  किया  कि   मेरा  लक्ष्य  इससे  युद्ध  करना  नहीं  है      क्योंकि  ऐसा करने  से  समय  और  ऊर्जा  दोनों  नष्ट  होंगे   ,   इस समय  लक्ष्य  है  --सीता  माता  की  खोज    और  अभी  इस  पर  ध्यान  देने  की   अधिक  जरुरत  है   l   अधिकांश  लोग  अपनी  जिंदगी   में  अपने  लक्ष्य  को  भूल  जाते  हैं  और  लड़ने - भिड़ने  में  लग  जाते  हैं  l    पं.  श्री राम   शर्मा  आचार्य   जी  लिखते  हैं   ---- अपने  अहंकार  के  कारण   स्वयं  को  श्रेष्ठ  और  बड़ा  सिद्ध  करने    में  मनुष्य   अपने  लक्ष्य  से  तो  भटकता  ही  है  ,  साथ  ही  दूसरों  की  नजरों  में  भी   बड़ा  नहीं  बन  पाता  ,  क्योंकि  बड़े  वे  होते  हैं  ,  जो  लोगों  के  दिलों    जीतते  हैं  ,  लोगों  के  दिलों  पर  राज   करते हैं   l '

WISDOM -----

       धार्मिक  कर्मकांडों     और  अपने   ईश्वर  की  पूजा  की   सार्थकता     तभी  है  जब  हम  उनके  बताए   मार्ग  पर  चलें   अन्यथा  ' मुँह   में  राम  बगल  में  छुरी  '  की  उक्ति    की  सत्यता  स्पष्ट  होती  है   l    मनुष्य   जैसा  आचरण   करता  है  वैसा  ही  संदेश   प्रकृति  में  जाता  है   l   इसका  परिणाम  यह  होता  है  कि   जो  बात   परदे  के  पीछे  होती  है  ,  प्रकृति  उसे   प्रकट  कर  देती  है  l   जैसे    संसार  का  एक  विशाल  जन    समुदाय   अपने - अपने     भगवान  की  पूजा  अपने  तरीके  से  करता  है   लेकिन   सभी   धर्मग्रंथों  में    मनुष्य  के  लिए  जिन  मानवीय  मूल्यों   को  अपनाने  और  सन्मार्ग   पर चलने  की  बात  कही  गई  है  उसे  कोई  नहीं  मानता  l   लड़ाई - झगड़ा , अपराध , पापकर्म ,  संवेदनहीनता  , भ्रष्टाचार  , शोषण , अत्याचार , अन्याय   का  ही  बोलबाला  है  l   यह  सब   मनुष्य  के  नास्तिक  होने  के  लक्षण  है  ,    इस  कारण  प्रकृति  को   यह  संदेश   जाता  है   मनुष्य  को  ऐसी  नास्तिकता  ही  पसंद  है   l   प्रकृति  मनुष्य  को  उसकी  पसंद   अपने  तरीके  से  देती  है  l   संभवत:  विज्ञान   का  इतना  शक्तिशाली  हो  जाना   मनुष्य  की  संवेदनहीनता   और   आस्तिकता  के  ढोंग  का  प्रकट  रूप  है  l  विज्ञान  ने  मनुष्य  के  बनावटी  व्यवहार  को   वास्तविक  रूप  दे  दिया  l   वैज्ञानिक  अनुसंधानों  की  वजह  से  हमें  हर  प्रकार  की  भोजन  सामग्री  ,  चिकित्सा सामग्री ,  मांस  आदि  सब  कुछ  सिंथेटिक,     प्रयोगशाला   निर्मित   उपलब्ध  है   l   विज्ञानं  ने  काम  करने  के  लिए  नौकर  भी  कृत्रिम  दिए  हैं   l   यदि  असुरता  को  मिटाना  है   तो  मनुष्य  को  अपने  आचरण  से   अपने  आस्तिक  होने  का  संदेश   प्रकृति  को  देना  होगा   l 

23 January 2021

WISDOM ----- राम काजु करिबे को आतुर

  श्री  हनुमान जी  विद्वान् ,  गुणी   व  बहुत  चतुर  थे   l    आज  के  कठिन  समय  में  श्री  हनुमान जी   का  चरित्र  हमें  जीवन   जीने  की  कला  सिखाता  है   l    जब  हनुमान जी  माँ  सीता  की  खोज  में  लंका  जा  रहे  थे  l   समुद्र  पार  कर  रहे  थे  l   मैनाक  पर्वत  ने  उनसे  कुछ  देर  विश्राम  करने  को  कहा  l   हनुमान जी  ने  उसको  अस्वीकार  नहीं  किया  ,  केवल  स्पर्श  किया  l   स्वर्ण  पर्वत  मैनाक  सुख - समृद्धि  का  प्रतीक   है  l  हनुमान जी  ने  सुख - समृद्धि  को  ठुकराया  नहीं  ,  लेकिन  उनका  ध्यान  अपने  लक्ष्य पर , अपने  उद्देश्य  पर  था  इसलिए  वे  उसका  स्पर्श  कर  आगे  बढ़  गए  l   इसका  अर्थ  यही  है  कि   कितना  भी  सुख - वैभव  हमारे  पास  आ  जाये   , हमें  उसका  विवेकपूर्ण  ढंग   से उपयोग  करना  चाहिए  ,  उसमे  लिप्त  होकर  अपने  उद्देश्य  से  भटकना  नहीं  चाहिए    l   श्री हनुमान जी  ने  अपने  आचरण  से  यह  बताया   कि   हमें  अपना  ध्यान  लक्ष्य  पर  केंद्रित   रखना  चाहिए  l   अनेक  लोग  ईर्ष्या - द्वेष   के  कारण   अपनी  पूरी  ऊर्जा   दूसरों  की  निंदा   करने   और  उनसे  लड़ने   , उनके  विरुद्ध  षड्यंत्र  करने   में  बर्बाद  कर  देते  हैं  l   हनुमान जी  को   अपने  मार्ग  में  सिंहिका  नाम  की  राक्षसी  मिलती  है  ,  जिसे  उन्होने  मार  डाला   क्योंकि  वह  ईर्ष्या   का  प्रतीक   थी   ,  वह  उड़ते  हुए    लोगों की   परछाई  पकड़  कर  खा  जाती  थी   l 

WISDOM -------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " शक्ति  और  सामर्थ्य  का  प्रयोग   अहंकार  और  दंभ   प्रदर्शन  के  लिए  नहीं  होना  चाहिए  ,  बल्कि  इसका  नियोजन  मानवता  के  कल्याण   और  विकास  के  लिए  करना  चाहिए   l   सामर्थ्य  के  संग  जब  अहंकार   जुड़ता  है  ,  तो  विनाश  होता  है     और  जब  सामर्थ्य  के  संग  संवेदना  जुड़ती  है  ,  तो  विकास  होता  है   l "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ---- "      सामर्थ्य  और  शक्ति  का  प्रयोग    तो  समान   व्यक्ति  के  विरुद्ध    होना  चाहिए  ,  और  वह  भी  मूल्यों  की  रक्षा  के  लिए   l  "     महाभारत    में  जब  अर्जुन  ने  देखा  कि   उसे  अपने  ही  भाइयों , पितामह ,  गुरु  आदि  से  युद्ध  करना  होगा   तो  वह  विषादग्रस्त  हो  गया  ,  उसने  अपना  गांडीव  नीचे  रख  दिया   तब  भगवान  कृष्ण  ने  उसे  गीता  का  उपदेश  दिया   ,  भगवान  ने  कहा  ---- वे  लोग  अधर्म  और  अन्याय  के  पक्ष  में  हैं  , अत्याचारी  हैं   l   यदि  अत्याचार  और  अन्याय   को हम  नहीं   मिटायेंगे   तो  वे  हमें  मिटा  देंगे  l   इस  संसार  में  सुख - शांति  के  लिए   असुरता  को  मिटाना   अनिवार्य  है  ,  इसलिए  तुम  शस्त्र  उठाओ  और  युद्ध  करो  l 

21 January 2021

WISDOM ----- अहंकार विष है, जीवन का

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ----  सम्मान ,  प्रसिद्धि  , यश , बड़ा  आदमी  होने  का  स्वांग ,  ये  सब  अहंकार  के  ही  रूप  हैं   l   सारी   दुनिया  इस  ' मैं  '  के  कारण  ही  तो  पागल  है  l   यह  ' मैं  '  एक  काला  नाग  है  ,  महाविषधर  सर्प  है   l   इस  महविषैले  सर्प  ने  जिसे  डस   लिया  ,  समझो  उसकी  खैर  नहीं   l   अहं   का  विष  ही  सारी   पीड़ा  का  कारण  है  l ------ जितना  बड़ा  अहंकार  ,  उतनी  बड़ी  पीड़ा   l   अहंकार  घाव  है  ,  जरा  सा  हवा  का  झोंका  भी    दरद   दे  जाता  है   l  "     स्वामी  रामकृष्ण  परमहंस  कहते  हैं  ---- " जब  तक  अहंकार  रहता  है  ,  तब  तक  ज्ञान  नहीं  होता   और  न  मुक्ति  होती  है   l   इस  संसार  में  बार - बार  आना  पड़ता  है  l   बछड़ा  ' हम्बा - हम्बा  ' ( मैं , मैं )  करता  है ,  इसलिए  उसे  इतना  कष्ट  भोगना   पड़ता है   l  कसाई  काटते  हैं   l  चमड़े  से  जूते   बनते  हैं   और  जंगी  ढोल  मढ़े   जाते  हैं   l  वह  ढोल  भी  न  जाने  कितना  पीटा  जाता  है  l   तकलीफ  की  भी  हद  हो  जाती  है   l   अंत  में  आँतों  से  तांत    बनाई   जाती  है  l   उस  तांत  से  जब   धुनिए   का  धुनहा   बनता  है   और  उसके  हाथ  में   धुनकते   समय  जब  तांत   तूँ  - तूँ   करती  है  ,  तब  कहीं  निस्तार  होता  है   l   तब  वह  ' हम्बा - हम्बा  ' ( हम - हम )  नहीं  बोलती  ,  तूँ  - तूँ   बोलती  है  ,  अर्थात   हे  ईश्वर  ,  तुम  ही  कर्ता   हो  ,  मैं  अकर्ता   l   तुम  यंत्री  हो  ,  मैं  यंत्र   l    तुम्ही  सब  कुछ  हो   l 

WISDOM ------

   ग्रीक   का राजा  प्रसिद्ध   दार्शनिक  सुकरात  से  मिलने  पहुंचा  l   उसने  उनसे  प्रश्न  किया  --- " कृपया  ये  बताएं  कि   संसार  में  इतनी  असमानता  है , हर  जगह   विसंगतियाँ   हैं  ,  इनका  निस्तारण  कैसे  हो  सकता  है  ? "   सुकरात  ने  उत्तर  दिया ---- " राजन  !   दुनिया  भर  की  असमानता   हटाने  की  आवश्यकता  ही  क्या  है  ?  यदि  हम   संसार  के  सारे  पर्वत  समतल  कर  दें   तो  पर्वतों  पर  रहने  वाले  प्राणी  कहाँ   रहेंगे   और  यदि  संसार  के  सारे  समुद्र   और  खाइयां  पाट   दी  जाएँ   तो  मछलियाँ   कहाँ  रहेंगी  ?  समुद्र  और  जल  में  रहने  वाले   अन्य  प्राणी  कहाँ  रहेंगे   ? इसलिए  यह  सोचने  के   बजाय  कि   संसार  की  सारी   असमानता  हटा  दी  जाए ,   तुम  अपने  मन  से   इस  भेदभाव  को  हटाने  का  प्रयत्न  करो  ,  तो  तुम्हे  सारी   विसंगतियों  में  भी   समरसता  दिखाई  पड़ने  लगेगी   l  "  सुखी  जीवन  का  यही  मार्ग  है  l 

20 January 2021

WISDOM ----- अपने को मूल्यवान समझो

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  ---- ' जिसने  अपने  को  जितना  मूल्यवान  समझा   संसार  से  उसका  उतना  ही  मूल्य  प्राप्त  हुआ   l  '   टिटियन  नामक  एक  प्रसिद्ध   चित्रकार  था  l   अनेक  व्यक्ति  उसके  चित्रों  को  देखने  और  खरीदने  आते  थे    l   एक  दिन  एक  धनिक   कलाप्रेमी  आया  l  उसने  देर  तक  एक  चित्र  को  देखकर  पूछा  ---- " मैं  इस  चित्र  को  अपने  लिए  चुनता  हूँ  l   इसका  मूल्य  क्या  है   ?  '  चित्रकार  ने  शांत  स्वर  में  उत्तर  दिया ---- " पचास  गिन्नियां  l "  वह  धनी   व्यक्ति  बोला ---- " एक  छोटे  से  चित्र  का  इतना  अधिक  मूल्य  !  आपको  इस  चित्र  को  बनाने  में   कठिनता l   से  एक  सप्ताह  लगा  होगा  l   कागज , रंग  आदि  का खर्चा  तो  नहीं  के  बराबर  है  l   फिर  इसका  दाम  पचास  गिन्नियां  कैसे  ?  आप  शायद  भूल  करते  हैं   l "  टिटियन  ने  उत्तर  दिया  --- " महाशय ,  आप  भूलते  हैं  l  पूरे   तीन  साल   निरंतर  परिश्रम  करने  के  बाद   मैं  इस  योग्य  बना  हूँ   कि   ऐसे  चित्र  को  चार  दिन  में  ही  बना  सकता  हूँ   l   इसके  पीछे  मेरा  वर्षों  का  अनुभव ,  साधना  और  योग्यता  छिपी  है  l "  धनी   व्यक्ति  उसके   उत्तर से  संतुष्ट  हुआ   और  उसने   इतने बड़े  मूल्य  पर  चित्र   को  खरीद  लिया  l   यदि  चित्रकार   अपनी  कला  का  मूल्य   कम   लगाता  ,  तो  निश्चित  ही  अपनी  कला  का  मूल्य  कम  मिलता  l   अपने  को  मूल्यवान   समझें 

WISDOM ------ अहंकार और क्रोध से किसी का भला नहीं होता

     पुराण  में  एक  प्रसंग  है ---- प्रचेता  एक  ऋषि  के  पुत्र  थे  l   किन्तु  उनका  स्वभाव   बड़ा  क्रोधी  था  l  उन्होंने  क्रोध  को  एक  व्यसन  बना  लिया  था   और  जब - तब  उससे  हानि  उठाते  रहते  थे   l   ज्ञानी  और  साधक  होते  हुए  भी  वे  अपनी  इस  दुर्बलता  को  दूर  नहीं  कर  पा  रहे  थे  l  एक  बार  वे  एक  वीथिका  से  गुजर  रहे  थे   l   उसी  समय  दूसरी  ओर   से  कल्याणपाद   नाम  का  एक  व्यक्ति  आ  गया   l   दोनों  एक - दूसरे  के  सामने  आ  गए  l   पथ  बहुत  सँकरा   था  l    एक  के  राह  छोड़े  बिना  ,  दूसरा  जा  नहीं  सकता  था  ,  लेकिन  कोई  भी  रास्ता  छोड़ने   को  तैयार  नहीं   हुआ   और  हठपूर्वक  आमने - सामने  खड़े  रहे  l   थोड़ी  देर   खड़े   रहने पर   दोनों  ने  हटना ,  न  हटना    प्रतिष्ठा - अप्रतिष्ठा   का  प्रश्न  बना  लिया  l  अजीब  स्थिति  पैदा  हो  गई  l   ऋषि  कहते   हैं --- यहाँ  पर  समस्या  का  हल  यही  था  कि   जो  व्यक्ति  अपने  को  दूसरे  से  श्रेष्ठ  और  सभ्य  समझता  है    वह  हटकर  रास्ता  दे  देता    और  यही  उसकी  श्रेष्ठता  का  प्रमाण  होता   l   निश्चित  था  कि   प्रचेता  ,  कल्याणपाद   से  श्रेष्ठ  थे   l    कल्याणपाद   उनकी  तुलना   में  कम   था  l   इसलिए  प्रचेता  को  उसे  रास्ता  दे  देना  चाहिए  ,  किन्तु   क्रोधी  स्वभाव  के  कारण  उन्होंने  वैसा  नहीं  किया  ,  बल्कि  उसी   की  तरह  अड़   गए  l   कुछ  देर  दोनों  खड़े  रहे , परस्पर  विवाद  हुआ  ,  फिर  प्रचेता  को  क्रोध  हो  आया  l   उन्होंने  उसे  श्राप  दे  दिया  कि   राक्षस   हो जाये  l  उनके  तप  के  प्रभाव  से  कल्याणपाद   राक्षस   बन    गया    और  प्रचेता   को  ही  खा  गया   l    क्रोध   व  अहंकार     के  कारण  प्रचेता  के  तप    का प्रभाव  कम    हो  गया  था   इस  कारण  वे  अपनी  रक्षा  न   कर सके   l 

19 January 2021

WISDOM ------

  '  जो  जागरूक  नहीं  हैं  ,   अज्ञानी  हैं  ,  वे  स्वयं  का  ही  अहित  कराते   हैं  l '    स्वामी  विवेकानंद  ने  अपने  शिष्य   को   एक  कथा  सुनाई  ------- एक  तत्व  ज्ञानी   अपनी  पत्नी  से  कह  रहे  थे  --- ' संध्या  आने  वाली  है  ,  काम  समेट   लो  l   एक  सिंह   कुटी  के  पीछे  यह  सुन  रहा  था  ,  उसने  समझा  संध्या  कोई  बड़ी  शक्ति  है  ,  जिससे  डरकर   यह  निर्भय  रहने  वाले  ज्ञानी  भी  अपना  सामान  समेटने  को  विवश  हुए   l   सिंह  चिंता  में  डूब    गया  और  उसे  संध्या  का  डर   सताने  लगा  l   पास  के  घाट   का  धोबी   दिन  छिपने  पर    अपने   कपड़े   समेट    कर   गधे  पर  लाने  की  तैयारी   करने  लगा   l   देखा  तो  गधा  गायब  l   उसे  ढूंढ़ने   में  देर  हो  गई   l   रात  घिर  आई  और  पानी  बरसने  लगा   l   धोबी  को  एक  झाड़ी   में  खड़खड़ाहट  सुनाई  दी ,  उसने  समझा  गधा  है   l    तो लाठी  से  पीटने  लगा --- धूर्त  यहाँ  छिपकर  बैठा  है  l    सिंह  की  पीठ  पर  लाठियां  पड़ीं   तो  उसने  समझा  यही  संध्या  है  ,  सो  डर   से  थर - थर   काँपने   लगा  l   धोबी  उसे  घसीट  लाया   और  कपड़े   लाद   कर  चल  दिया   l   रास्ते  में  एक  दूसरा  सिंह  मिला  ,  उसने   अपने  साथी  की  दुर्गति  देखी   तो  पूछा   --- यह  क्या  हुआ   ?  तुम  इस  तरह  लदे   क्यों  फिर  रहे  हो   ?    सिंह  ने  कहा  ---- संध्या  के  चंगुल   में फँस   गए  हैं  l   वह  बुरी  तरह  पीटती  है  और   इतना वजन  लादती  है    l   वास्तव  में  सिंह  को  कष्ट  देने  वाली  संध्या  नहीं  ,  उसकी  भ्रान्ति  थी  l   वह  भयभीत  हो  गया  ,  उसने  धोबी  को  कोई  बड़ा  देव - दानव  समझ  लिया     और  उसके  प्रहार  का   विरोध  नहीं  किया  ,  भय  के  कारण  सामना   ही नहीं  किया    ,  तो  दुर्गति    हुई   l     मनुष्य जागरूक  हो  ,  निर्भय  हो  ,  अपने  वास्तविक     स्वरुप  को  समझे  ,  स्वाभिमान  से  रहे   l 

WISDOM -----

   प्रसिद्ध   साहित्यकार   हरिवंश  राय  बच्चन  ने  अपनी  आत्मकथा  ' दशद्वार  से  सोपान  तक  '  में   अपनी  एक  अनुभूति  को  लिखा  है   कि   जब  वे  विदेश  मंत्रालय  में   अवर  सचिव   के  पद  पर  कार्यरत  थे  ,  तब  उनका  निवास   २ १ ९ , डी.  १ , डिप्लोमैटिक  इन्क्लेव , सफदरजंग   था  l  यहीं  रहकर   उन्होंने     गीता  का   अनुवाद         ' जनगीता '  के  नाम  से  किया  था   l   जब  वे  यह  अनुवाद  कार्य  कर  रहे  थे   ,  तो  अनेक  बार   उन्हें  यह  स्पष्ट  अनुभव  हुआ   कि   जहाँ  वे  बैठे  हैं  ,  वहां  कभी  द्वारिका  से    हस्तिनापुर   जाते  हुए    भगवान  कृष्ण  का  रथ  खड़ा  हुआ  था  l   इस  क्रम  में  यदा -कदा   रथ  की  ,  रथ  में   जुते   थके  घोड़ों  की  . सवार   और  सारथी   दोनों  रूपों  में   रथ  पर  बैठे     श्रीकृष्ण  की   स्फुट   झलकी  मिलती  थी  ,  मानो  वह  साक्षात्    द्वापर  में   उपर्युक्त   तथ्य   के  साक्षी  के  रूप  में  विराजमान  हों   l 

18 January 2021

WISDOM ------

   महर्षि   अरविन्द  ( मई  , 1920 )  लिखते  हैं ----- "युवाओं  को  ही  नूतन  विश्व  का  निर्माता  बनना  है  ,  न  कि   उन्हें  , जो  पश्चिम  के   प्रतियोगिता  पूर्ण   व्यक्तिवाद ,  पूंजीवाद  अथवा  भौतिकवादी   साम्यवाद  को   भारत  का  आदर्श  मानते  हैं   ,  और  न  उन्हें   जो  प्राचीन  धार्मिक  नुस्खों  के  दास   हैं   l ----- मैं  उन  सभी  को   आमंत्रित  करता  हूँ   जो  एक  महानतम  आदर्श  के  लिए   सत्य  को  स्वीकारते  हुए  ,  श्रम  करते  हुए   ,  मस्तिष्क   और  हृदय  को    स्वतंत्र   रखते  हुए    संघर्ष   कर  सकते  हैं  l   ये  ही  नवयुग   लाएंगे   l  "                                 द्वितीय   विश्वयुद्ध  चल  रहा  था  l   श्री  अरविन्द  को   एहसास  हुआ  कि  अंग्रेजों  से  घृणा  करने  के  कारण     आश्रम  के  कुछ  अंतेवासी   मन - ही -मन    हिटलर  की  विजय  की  दुआ  करने  लगे  हैं  l   श्री  अरविन्द  ने    तत्कालीन  शीर्ष   कार्यकर्ताओं  की   शाम  की   एक  बैठक  में  कहा  ----- " जो  लोग  ऐसा  कर  रहे  हैं    वे  असुरता  की  विजय  चाहते  हैं   l   भारतीय  मूल्य  हमें  ऐसा  नहीं  करने  देंगे  l   ऐसे  व्यक्ति  जो  हिटलर  की  विजय  की  इच्छा  रखते  हैं  ,  आश्रम  से  चले  जाएँ   l    प्रश्न   मूल्यों   का    है   l   हम  परमात्मा  की ,   आदर्शों की  विजय  चाहते  हैं   l  "      श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  से  यही  कहा  था   कि   तू  मोहग्रस्त  होकर   भीष्म  और  द्रोण   को  देख  तो  रहा  है  ,  उन्हें  न  मारने  की    दलीलें  भी  दे  रहा  है  ,  पर  तुझे  यह  नहीं  दिखाई   देता  कि   वे  दुर्योधन  के ----- अनीति  के  संरक्षक  भी  हैं   l   

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " सामान्यतया  आदमी  निष्ठुर  जोंक  की  तरह   दूसरों  का  खून  चूस - चूस  कर   साधन  सम्पति  बटोरते   और  क्रुद्ध  नाग  की  तरह   उनकी  रक्षा  करने  में   जिंदगी  खपा  देता   है  l  -----  एक  जमींदार  ने  विधवा  बुढ़िया  का  खेत  बलपूर्वक  छीन  लिया  l  बुढ़िया  ने  गाँव  के  सभी  लोगों  के  पास   इस  अत्याचार  से  बचाने   की  पुकार  की  ,  पर  जमींदार  का  ऐसा  ' दबदबा '  था    कि   हर  कोई  स्वयं  को  बचाने   में  तत्पर  था  ,  जमींदार   के  सामने  मुंह  खोलने  की  हिम्मत  ही  किसी  में  नहीं  थी  l    दुःखी   बुढ़िया  ने  स्वयं  ही  साहस  बटोरा   और  जमींदार  के  पास  यह  कहने  पहुंची   कि   खेत  नहीं  लौटाते   तो  उसमें  से   एक  टोकरी  मिट्टी   खोद  लेने  दे ,  ताकि  कुछ  तो  मिलने  का  संतोष  हो  जाए  l   जमींदार   राजी  हो  गया    और  बुढ़िया  को  साथ  लेकर  खेत  पहुंचा   l   बुढ़िया  रोती   जाए   और  मिट्टी   से  टोकरी   भरती    जाए   l   टोकरी  पूरी  भर  गई  तो  बहुत  भारी  हो  गई  , तो  बुढ़िया  ने  कहा --- ' इसे  उठवाकर  मेरे  सिर   पर  रखवा  दे  l '  जमींदार   ने  अकड़  कर   कहा ---- " बुढ़िया  !  इतनी  सारी   मिट्टी   सिर   पर  रखेगी  तो  दबकर  मर  जाएगी  l  "   बुढ़िया  ने  पलटकर  पूछा  ---- ' यदि  इतनी  सी  मिट्टी   से  मैं  दबकर  मर  जाऊँगी   तो  तू  पूरे   खेत  की  मिट्टी   लेकर  जीवित  कैसे  रहेगा   ? "  जमींदार  से  उत्तर  देते  न  बना  ,  अहंकार  और  लालच   ने   उसके  हृदय  की  संवेदना  को  सुखा   दिया  था   l 

17 January 2021

WISDOM ----- शक्ति का सदुपयोग जरुरी है

    शक्ति   का  सदुपयोग  वही  कर  सकता  है   जिसके  हृदय  में  संवेदना  होगी  l  शरीर  बल  हो  , धन - बल  अथवा  सत्ता  का  बल  हो  --- यदि  मन  में  स्वार्थ , लालच  व  अहंकार  है   तो  शक्ति  के  सदुपयोग  की  कोई  संभावना  ही  नहीं  है  l   रावण  बहुत  शक्तिशाली  था   लेकिन  ज्ञानी  होते  हुए  भी  वह  बहुत  अहंकारी  था  ,  उसने  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  किया  ,  बहुत  अत्याचारी   था  l  इसी  तरह  दुर्योधन   बहुत  अहंकारी  था  l   उसके  पास  इतना  बड़ा  साम्राज्य  था  ,  यदि  श्रीकृष्ण  की  बात  मानकर  पांच  गांव  दे  देता   तो  उसे  कोई  नुकसान  नहीं  होता   लेकिन  अहंकारी  किसी  को  सुख - चैन  से  देख  नहीं  सकता   l   परिणाम  --महाभारत  हुआ  l  आज  हम  वैज्ञानिक  युग  में  जी  रहे  हैं  l   विज्ञान   में  असीमित  शक्ति  है  l   इस  शक्ति  के  साथ  यदि  संवेदना  नहीं  है    तो  यह  मनुष्य   जाति   का  विध्वंस  भी  कर  सकती  है l 

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता  में   भगवान  कहते  हैं  --- दुराचारी  के  लिए  भी  उनकी  दृष्टि  बड़ी  सहानुभूतिपूर्ण  है  l  भगवान  दुराचारी  के  तो  हो  सकते  हैं  ,  पर  कपटी  के  कभी  नहीं  हो  सकते  l  ' मोहि  कपट  छल  छिद्र  न  भावा l   निर्मल  मन  जन   सो  मोहि  पावा  ll   श्रीकृष्ण  ने  कुब्जा  का  कूबड़  ठीक  कर  दिया  ,  अनन्य  भाव  से  श्रीकृष्ण  उसके  हृदय  में  बसते   थे    l   पर  कपट  लेकर  आई   रावण  की  बहन   सूर्पणखा   जो  कहती  थी  --- '"  तुम  सम   पुरुष  न  मो  सम  नारी  "  उसे  अपनी  नाक  कटवा  कर  जाना  पड़ा  l  भगवान  कभी  छल -कपट  पसंद  नहीं  करते  हैं  l 

16 January 2021

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " दु:संग   भले  ही   कितना  मधुर   एवं  सम्मोहक   लगे  ,  किन्तु  उसका  यथार्थ  महाविष   की  भाँति   संघातक   होता  है  l  "      आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- "  यदि  किसी  दुराचारी  को   सत्संग  और   सत्पुरुषों   का  साथ  मिल  जाए   तो  उसका  भी  कल्याण  हो  जाता  है   l "               लेकिन  सत्संग   चाहे  वह  सत्पुरुषों  का  हो   या  सद्विचारों  का   ,  ईश्वर  की  कृपा  से  ही  मिलता  है  l  ----------------------    एक   डाकू  फकीरों  के ---दरवेशों   के   वेश  में   डाके  डालता  था  l   अपना  हिस्सा  वह  गरीबों  में  बाँट  देता  था  l  हाथ  में  माला  लिए  जपता   रहता   l  एक  बार  उसके  दल  ने  काफिला  लूटा   l   एक  व्यापारी  के  हाथ  में  ढेर  सारा  पैसा  था  l   लूट  चल  रही  थी   l   उसने  फकीर   को  देखा  l   उसके  पास  सारा  धन  लाकर  रख  दिया  l   काफिला  लुट   जाने  के  बाद   जब  वह  धन  लेने  पहुंचा    तो  देखा  कि   वहां  तो  लूट  का  माल  बांटा   जा  रहा  है   l    सरदार  वही  था  जो  फकीर ---दरवेश  बना  हुआ  था  ,  उसी  के  पास  व्यापारी  का  धन  था   l   व्यापारी  बोला  ---- "  हमने  तो  आपको  दरवेश  समझा  था  l   आप  तो  कुछ  और  ही  निकले  l   हमने  डाकुओं  के  सरदार  पर  नहीं  ,  फकीर   पर  ,  खुदा  के  बन्दे  पर  विश्वास  किया  था   l   आदमी  का  भरोसा  साधु , फकीर   पर  से  उठना  नहीं  चाहिए  l   यह  धन  आप  रखिए ,  पर  आपसे  एक  निवेदन  है   कि   आप  दरवेश  के   वेश  में  मत  लूटिए   l   नहीं  तो  लोगों  का  विश्वास  ही   इस  वेश  पर  से  उठ  जायेगा   l   वह  डाकू  तत्काल  ही  वास्तव  में   फ़क़ीर  बन  गया   l   उसके  बाद  उसने  कभी  डाका  नहीं  डाला   l   दुराचारी   भी  सन्मार्ग  मिलने  पर  कल्याण  पा  जाता  है  l 

15 January 2021

WISDOM ------

  विश्व विजय   का  स्वप्न  देखने  वाले  सिकंदर  को   मृत्यु  के  समय  जीवन  की   एक - एक  स्मृति   मस्तकपटल   पर  आने  लगी  l   उसे  उन  दो  लड़कियों  की   स्मृति  आ  गई  ,  जिनने  उसे  नैतिक  दृष्टि  से  पराजित  कर  दिया  था   l   भारत  के  उत्तर - पश्चिम  प्रान्त  के   एक  गाँव  के  पास   उसकी  सेनाओं  ने  डेरा  डाला  था  l   गाँव  में  उत्सव  था  l   ग्रामीण  युवक - युवतियों  के  मोहक  नृत्य   को  देखकर  सिकंदर  अपनी  सुध -बुध   खो  बैठा  l   उसने  वहीँ  भोजन  मँगा   लिया  l   दो  सुन्दर  ग्रामीण  युवतियां    एक  थाली  को   कीमती  चादर  से  ढक   कर  लाईं  l   चादर  हटाते   ही  सिकंदर   क्रुद्ध  हो  उठा  l  उस  थाली  में  सोने - चांदी   के  आभूषण  थे   l    युवतियों  ने  कहा --- " नाराज  न  हों  सम्राट  !   हमने  सुना  है  आप  इसी  के  लिए  भूखें   हैं l   इसी  के  लिए  आप  हजारों - लाखों  को  मारकर  इतनी  दूर  से    हमारे  बीच  आए   हैं   l   हमें  हमारी  जान  की  चिंता  नहीं  है  l   आप  यह  भोजन  स्वीकार  करें   एवं   हमारा  सिर   काट  लें   l  "  कहते  हैं  इसके  बाद  सिकंदर  विक्षिप्त  हो  उठा   और  वापस  लौट  गया  l 

WISDOM ----

  संकल्पवान  व्यक्ति  एक  दीपक  की   तरह छोटा  ही  क्यों  न   हो ,  देर - सवेर   भगवान  किसी  न  किसी  रूप  में   उसे  सहारा  देने  पहुँच  ही  जाते  हैं  l ------- यज्ञ  होना  था   l   उसके  लिए  समिधाओं  का  ढेर  लगा  था   l   ऋषि  ने  डीप  प्रज्वलन  का  क्रम  किया   l   दीपक  को  टिमटिमाता  देख    समिधाओं  का  ढेर  हँसा  और  बोला ---- " ये  छोटा  सा  दीपक  भला  हमारा  क्या  बिगाड़ेगा  ? "    अग्नि  स्थापना  का  क्रम  आया   तो  दीपक  से  निकली   छोटी  सी  लौ   ने   यज्ञ-अग्नि   की स्थापना  कर  दी  l   आहुतियों  के  साथ  एक - एक  कर   सभी  समिधाएं   होम   हो गईं   l   सारी   घटना  को   अंतर्दृष्टि    से देखते  हुए   ऋषि  अपने  शिष्यों  से  बोले  ---- " प्रखरता  चाहे  एक  लौ   के  बराबर   ही  क्यों  न  हो  ,  वो  अकेले  तमस   के  साम्राज्य  से  टकराने  में   सक्षम  है  l   हमें  भी  अपनी  तपस्या  का  प्रकाश  इतना  प्रबल   और  उज्ज्वल   करना  चाहिए   कि   हम  गहन  अंधकार  के  बीच  भी    अपना  मार्ग  बना  सकें   l 

14 January 2021

WISDOM -----

   सबसे  समर्थ  कालपुरुष  है  l   समर्थ  होते  हुए  भी  भगवान  राम  ने  वनवास  का  कष्ट  सहा  l   श्रीकृष्ण  के  यादव  कुल  का  नाश  हुआ  ,  नल  को  राज्य  से  हटना  पड़ा  ,  काल  ने  किसी  को  नहीं  छोड़ा  ,  भगवान  कृष्ण  स्वयं  दुर्योधन  को  समझाने   गए  ,  वो   कुछ  समझने  को  तैयार  ही  नहीं  था  ,  आखिर  महाभारत  हुआ  l        '  काल  बड़ा  बलवान  है  '  ---- यदि  कोई   इस  सत्य  को  समझ  जाये   तो  उसमें    क्रांतिकारी  परिवर्तन   आ  जाता  है   l --------- बेताल  अवंतिका ( उज्जैन )  के  महामात्य  थे  ,  बहुत  बड़े  तांत्रिक  थे  l   उनका  जीवन  कभी  तांत्रिक  साधनाओं  में  बीता ,  कभी  रणभूमि  में   l   सम्राट  विक्रमादित्य  उनके  बिना  स्वयं  को  असहाय  महसूस  करते  थे  l   लेकिन  आज  वे  स्वयं  में  लीन   थे  ,  अपने  आप  को  विवश  महसूस  करते  हुए  सोच  रहे  थे   कि   इतने  षड्यंत्र  - कुचक्र   आखिर  किसके  लिए  ?  दूसरों  को  पराजित  करने  वाला   आज  महसूस  कर  रहा  था   कि   सबसे  सशक्त  कालपुरुष  है  l   मृत्यु  से  आज  तक  कोई  नहीं  बच  पाया  है  l   उनके  विवेक - चक्षु  खुल  गए  l   सांसारिक  मोह  टूट  गया  ,  दंभ   मर  गया ,  जीवन  भर  के  पाप  आँखों  के  समक्ष  आ  रहे  थे  ,  मस्तिष्क  में  मानों  हथौड़ों   की  चोट  लग  रही  थी   l   उन्होंने  राजसी  परिधान  उतारे ,  साधारण  वेशभूषा  पहनी  l   हाथ  में  लाठी  और    उत्तरीय  कंधे  पर  डालकर  निकल  गए  l  क्षिप्रा  नदी  के  तट   पर  खड़े  होकर   उन्होंने  अवंतिका  नगरी ,  भगवान  महाकाल  को  प्रणाम  किया  और  चल  पड़े  l   अभी  बीस  कदम  ही  चले  थे   कि   एक  ओर   से  महाकवि  कालिदास  आ  रहे  थे   l   वे  पूछ  बैठे ---- " बेताल  भट्ट  !  आज  किस  कूटनीति  के   तहत   वेश  बदलकर  जा  रहे  हैं  ? "    बेताल  बोले ---- "   अब मैं  अंतिम  और  निर्णायक  युद्ध   अपने  आप  से  करने  जा  रहा  हूँ  l  "  कालिदास ने  फिर  प्रश्न  किया  --- "  किन्तु  इस  अवंतिका  का  क्या  होगा   ? "  बेताल  बोले  ----- "  सब  व्यर्थ  का  मोह  है  l   मनुष्य  अहंकारवश  सोचता  है   और  भावी  पीढ़ी  के  मार्ग  में  बाधक  बनता  है   l "  बेताल   आगे बढ़  गए   और  देश  में  खबर  फ़ैल  गई  कि   महातांत्रिक ,  राज्य  के  महामात्य  ने  वानप्रस्थ  लेकर   स्वयं  को  समाजसेवा  हेतु  समर्पित  कर  दिया  है   l 

13 January 2021

WISDOM -----

    विवेक  शक्ति  मूर्च्छित  हो  जाने  के  कारण   ही    लोग   धर्म  के  नाम  पर   आपस  में  झगड़ते  हैं  l   सच्चे  भक्त   हों  तो  भगवान  स्वयं  उन्हें  समझाने   आते  हैं  l   एक  कथा  है  -----  एक  बार  हनुमान जी  की  भेंट    अर्जुन  से  हुई   l   हनुमान जी  भगवान  राम  के  भक्त  थे    और  अर्जुन  श्रीकृष्ण  के   l   हनुमान जी  कहने  लगे  -- मेरे  भगवान  राम  बली   हैं  ,  अर्जुन  कहते  श्रीकृष्ण  बली   है  l   दोनों  भक्तों  में  बहस  छिड़  गई  ,  बहस  का  अंत  न  होते  देख   परीक्षा  करने  का  निश्चय  हुआ    और  शर्त  तय  हुई  कि   जो  हारे ,  वह  आत्महत्या  कर  ले  l     अर्जुन ने  श्रीकृष्ण  का  ध्यान  किया   और  तुरंत  समुद्र  में   एक   विशाल  पुल   बाँध  दिया   और  हनुमान जी  से  बोले  --- " अब  यदि  तुम्हारे  राम  बली   हैं  तो  इस  पुल   को  तोड़  दो  l   यदि  न  तोड़  सके    तो  श्रीकृष्ण  की  तुलना  में  श्रीराम  का  पराक्रम  कमजोर  माना  जायेगा   l   हनुमान जी  जोश  में  भर  गए  l   उन्होंने  शरीर  का  शतयोजन  विस्तार  किया   और  पुल   पर  कूद  पड़े   l   भक्तों  के  इस  झगड़े   का   पता  भगवान  को  हुआ   तो  वे  बहुत  चिंतित  हुए   l   यदि  हनुमान जी  की  रक्षा  करते  हैं   तो  अर्जुन  का  अंत  होता  है  l   यदि  अर्जुन  जीतते  हैं  तो  हनुमान जी  का  अंत  निश्चित  है  l   सोच -विचारकर  भगवान  ने  स्वयं  ही   अपना  शरीर   पुल   के  नीचे   लगा  दिया   l   हनुमान जी  जैसे  ही  पुल   पर  कूदे ,  उनके  भार  से  भगवान  का  शरीर  फट  गया   और  खून  बहने  लगा  l  हनुमान जी  ने  भगवान  राम  को  पहचाना   और  कूद  कर  उनके  पास  पहुंचे   और  दुःख  करने  लगे   l   अर्जुन  ने  कृष्ण रूपी   भगवान  को  पहचाना  ,  वे  भी   विलाप  करने  लगे  l   भगवान   ने समझाया  ---- "  अच्छा  होता  , आप  लोग  विवेक  से  काम  लेते   l   मैं  एक  हूँ   ,  मेरे  ही  अनेक  रूप  संसार  में  फैले  हैं   l   इसलिए  किसी  से  झगड़ा  नहीं  करना  चाहिए   l   कोई  विवाद   आए   तो  उसे  विवेक  से  हल  कर  लेना  चाहिए   l   "    हम  सच्चे  भक्त  बने  l   यदि  हृदय  में  सच्चाई  है  ,  विवेक  है   तो  कभी  झगड़ा  होगा  ही  नहीं   l  

12 January 2021

WISDOM ----- विद्वानों की ईर्ष्या अन्यों की अपेक्षा अधिक घातक और व्यापक परिणाम उत्पन्न करती है

   पुराणों  में  एक  कथा  है ----  एक  बार  वैशाली  क्षेत्र  में  दुष्ट - दुराचारियों  का  उत्पात - आतंक   इतना बढ़ा  कि    उस प्रदेश  में  भले  आदमियों  का  रहना  कठिन  हो  गया  l   लोग  घर  छोड़कर   अन्यत्र  सुरक्षित  स्थानों  के  लिए  पलायन  करने  लगे  l   इन  भागने  वालों  में  ब्राह्मण  समुदाय  का  भी  बड़ा  वर्ग   था  l   वैशाली  के  ब्राह्मणों  ने  महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  चलकर  रहना  उचित  समझा  l   महर्षि  गौतम  के  तप  का  प्रभाव  था  कि   वहां  गाय  और  सिंह  एक  ही  घाट   पर  पानी  पीते  थे  l  ब्राह्मणों  को  वहां  आश्रय  मिल  गया  , वे  सुखपूर्वक   रहने  लगे  l  एक  दिन  देवर्षि  नारद  वहां  से  निकले  ,  कुछ  समय  महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  रुके  l   इस  समुदाय  के  संरक्षण  की  नई  व्यवस्था  देखकर   वे  बहुत  प्रसन्न  हुए    और उदारता  की  भूरि -भूरि   प्रशंसा  करने  लगे  l   ब्राह्मण  समुदाय   से  महर्षि  गौतम  की  यह  प्रशंसा  बर्दाश्त   नहीं हुई  ,  ईर्ष्या  उन्हें  बेतरह  सताने  लगी  l  वे  सोचने  लगे  कि   हमने  ही  उन्हें  यश  दिलाया  ,  हमारे  ही  आगमन  से   उन्होंने  इतना  श्रेय  कमाया  l   अब  हम  अपना  पुरुषार्थ  दिखाकर  उन्हें  नीचा   भी  दिखाएंगे  l   षड्यंत्र   रचा  गया  l   रातों - रात  मृत  गाय   आश्रम  के  आंगन  में  डाली  गई   l   कुहराम  मच  गया  l   यह  गौतम  ने   मारी है , हत्यारा  है ,  पापी  है  ,  इसक्का  भंडाफोड़  सर्वत्र  करेंगे  l   महर्षि  गौतम  योग  साधना  से  उठे   और  यह  कुतूहल   देखकर अवाक  रह  गए  l   आगंतुकों  को  विदा  करने  का  निश्चय   हुआ  l   ऋषि  बोले  ---- ' मूर्द्धन्य  जनों  की  ईर्ष्या  अन्यों  की  अपेक्षा  अधिक  घातक  और   व्यापक परिणाम  उत्पन्न  करती  है  l   आप  लोग  जहाँ  रहते  थे  ,  वहां  चले  जाएँ  l   अपनी  ईर्ष्या  से  जिस  क्षेत्र  को  कलुषित  किया  था   , उसे  स्नेह - सौजन्य  के  सहारे  सुधारने    का नए  सिरे  से  प्रयत्न  करें   l 

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---- ' मनोबल  ही  जीवन  है  l   वही  सफलता  और  प्रसन्नता   का उद्गम  है  l   मन  की  दुर्बलता  ही   रोग , दुःख  और  मौत  बनकर   आगे  आती  है  l  '                                                      एक  समय  था  जब  संसार  के  अधिकांश  देश  पराधीन  थे  l   अपनी  आजादी   के लिए  दृढ़   संकल्प  लिया  और  संगठित  प्रयास  किया  , अपने  मनोबल  को  जगाया   तो  सब  को  पराधीनता  से  मुक्ति  मिली  ,  गुलामी  की  जंजीरें  टूटी   और  आजादी  मिली  l      आत्मबल  से  गुलामी  से  मुक्ति  तो  संभव  है  लेकिन  यदि   मन: स्थिति  कमजोर  है  ,  आत्मबल  नहीं  है  , परावलंबी   हैं   तो   शक्तिशाली  तत्व  और  असुरता  उन्हें  ' कठपुतली ' बना  देती  है  l   ऐसे  में  स्वयं  निर्णय  लेने  की  शक्ति  नहीं  होती  l    यदि  आत्मबल  नहीं  है  ,  अपनी  कोई  सोच  ही  नहीं  है   तो    डोरी  जिसके  हाथ  में  होगी   ,  वैसा  ही  दृश्य  दिखाई  देगा  l   

11 January 2021

WISDOM ----

     जिसके   पास  जितना  अधिक  है  वह  उतना  ही  भयभीत  है   l   पुराणों  में  ऐसी  कई   कहानियां  हैं  ,  जिनमें   इंद्र  को  सबसे  ज्यादा  भयभीत  बताया  गया  है  l   किसी  ने  थोड़ी  भी  तपस्या  की  ,  उनका  सिंहासन  डोलने  लगता  है   l   विश्वामित्र  की  तपस्या  को  भंग   करने  के  लिए  उन्होंने   अप्सरा  मेनका  को  भेज  दिया  l   कोई  तनिक - सा  भी  ऊपर  उठे  , उसे  गिराने  की  हर  संभव  कोशिश   l   यही  स्थिति   आज  संसार  में  देखने  को  मिलती  है  l   प्रसिद्ध   विचारक  लाओत्से  ने  कहा  है  --- अगर  मजे  से  रहना  हो   तो  आखिरी  में  रहना  l   जो  अंतिम  में  खड़ा  है  ,  उसे  धक्का  देने   कोई  नहीं  आएगा  l  यदि  प्रथम  होने  की  कोशिश   होगी  तो   फिर  अनेकों  आ  जायेंगे  ,  पीछे  खींचने  के  लिए  l 

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  ---- "  खुशियाँ   यदि  तलाशनी  है   तो  दूसरों  को  खुशी   देने  में  तलाशिए ,  अपनेपन  में  तलाशिए  l   जो  खुशियों  को   दौलत  कमाने   या  अपने  अहं   की  संतुष्टि   में  तलाशते  हैं  ,  उनकी  तलाश  हमेशा  अधूरी  व  अपूर्ण  होती  है   l  वे  बहुत  कुछ  पाकर  भी    खाली   हाथ  रह  जाते  हैं  l  "                  इस    समय     में    यदि  कोई  काम  सबसे  कठिन  है  तो  वह  है  ---- किसी  को  ख़ुशी  देना  l   आज  दुर्बुद्धि  का  ऐसा  तांडव  है  कि   लोग  दूसरों  की  खुशियाँ   छीनने  को  उतारू  हैं  l   कहते  हैं   जब  जागो  तब  सवेरा  l     प्रसिद्ध   वैज्ञानिक  एल्फ्रेड   नोबेल  के  जीवन  का  वह  किस्सा   सुप्रसिद्ध  है  ,  जब  उनकी  मृत्यु  का  झूठा  समाचार  फैलने  पर   फ़्रांस  के  एक   समाचार पत्र   ने  उनका  शोक  संदेश   '  मौत  के  सौदागर  की  मृत्यु '  के  नाम  से  प्रकाशित  किया   था    क्योंकि   उन्होंने  डायनामाइट   की  खोज  की  थी  l   जब  एल्फ्रेड   नोबेल  को   यह  पता  चला   तो  उन्होंने   अपने  शेष   जीवन   और  अपनी  सारी   संपदा   को  जनहित  में   लगाने  का  निर्णय  लिया  ,  ताकि  मृत्यु  के  बाद  उन्हें  श्रेष्ठ  कर्मों  के  लिए   याद  किया  जाए  l   आज    सारे  विश्व  में  उनका  सम्मान  है   और  सारा  संसार  उन्हें    प्रसिद्ध   नोबेल  पुरस्कार  के  लिए   जानता  है  ,  मात्र  डायनामाइट  की  खोज  के  लिए  नहीं  l    श्री  लिखते  हैं  ---- ' मनुष्य  के  जीवन   की  श्रेष्ठता  इसी  में  है   कि   उससे  जितना  भी  बन  पड़े  ,  वह  अपनी  शक्ति , सामर्थ्य ,  संपदा    को   समाज    कल्याण  में  , जनहित  में   और  उच्च  उद्देश्यों  के  लिए  लगाए  ,  जिससे   अपने  जीवन  का  पथ  प्रशस्त   करने के  साथ,    वह   औरों  के  जीवन   लिए  भी   प्रेरणा  बन  सके  l 

10 January 2021

WISDOM ------

  एक  राज्य  में  एक  दानी  राजा  रहा  करते  थे   l   उनके  महल  में  हर  समय  याचकों  की  भीड़  लगी  रहती  थी  l   एक  बार  एक  संत   उस  राज्य  में  पधारे  l   उन्हें  राजा  की   दानी  प्रवृति  के  विषय  में  पता  चला   तो  वे  राजा  से  मिलने  पहुंचे  l   राजा  ने  उनका  यथोचित  स्वागत - सत्कार  किया   और  पूछा  ---- " महात्मन  !  मैं  आपकी  क्या  सेवा    कर  सकता  हूँ   ? "  संत  बोले  ----- " राजन  !  आप  दानवीर  हैं  ,  यह  स्वयं  एक  धार्मिक  गुण   है  ,  परन्तु   उसके  साथ  आप  एक  राजा   भी  हैं  ,  इसलिए  आपको  राजधर्म  भी  याद  दिलाने  आया  हूँ   l   आपसे  बिना  परिश्रम   दान  का  धन  पाकर   आपकी  प्रजा  श्रम  से  विमुख  होकर   आलसी  बन  गई  है   और  यों   ही   दान  पा  लेने  से  उनके  जीवन  में   कोई  सार्थक  परिवर्तन   भी  नहीं   आ   पा  रहा  है   l   इससे  अच्छा  है  आप  उन्हें  रोजगार  के  साधन  उपलब्ध  कराएं  l  "  राजा  को  संत  की  बात  समझ  में  आ  गई  और  उन्होंने  वही  पथ  अपना  लिया   l 

WISDOM -----

   संत  कबीरदास जी  कहते  हैं ---- ' बुरा  जो  देखन  मैं  चला ,  बुरा  न   मिलिया  कोय  l   जो  दिल  खोजा   आपना ,  मुझ - सा    बुरा  न   होय  l   हम  व्यर्थ  ही  दूसरों  के  दोष   ढूंढ़ने   में  लगे  रहते  हैं  l   सबसे  पहले  हमें  स्वयं   के  दोषों   को  देखना  चाहिए   l   महाभारत  में  एक  कथा  है  ---  ' एक  बार  शास्त्र   शिक्षा  देते  समय   आचार्य  द्रोण   के  मन  में    दुर्योधन  व  युधिष्ठिर   की  परीक्षा  लेने   का मन  हुआ  l   उन्होंने  सोचा  क्यों  न  इनकी  व्यावहारिक  बुद्धि  की  परीक्षा  ली  जाये   ?  "  दूसरे  दिन  आचार्य  ने   दुर्योधन  को  अपने  पास  बुलाकर  कहा  --- " वत्स  !  तुम  समाज  में  अच्छे  आदमी  की  परख  करो    और  वैसा  एक   व्यक्ति  खोजकर    मेरे  सामने  उपस्थित  करो  l  "   दुर्योधन  ने  कहा --- " जैसी  आज्ञा  l "  और  वह  अच्छे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़ा  l   कुछ  दिनों  बाद   दुर्योधन   आचार्य द्रोण    के पास  आकर  बोला  ---- "  गुरुदेव  मैंने  कई  नगरों  और  गाँवों   का  भ्रमण  किया   परन्तु  कहीं  भी   कोई   अच्छा   आदमी नहीं  मिला  l    इस  कारण  मैं  किसी  को   आपके  पास  नहीं  ला  सका  l "  इसके  बाद  आचार्य  ने   युधिष्ठिर   को  अपने  पास  बुलाया  और  कहा --- "  बेटा  !   तुम  कहीं  से    कोई  बुरा  आदमी    खोज  कर     ला    दो  l "  युधिष्ठिर  ने  कहा --- "  ठीक  है  गुरुदेव   !  मैं  प्रयत्न  करता  हूँ   l "  इतना  कहकर  वे   बुरे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़े  l   काफी  दिनों  बाद    युधिष्ठिर   आचार्य  द्रोण   के  पास  लौटे  l  आचार्य  ने  युधिष्ठिर  से  पूछा  --- " किसी  बुरे  आदमी  को  अपने  साथ  लाए  ? '  युधिष्ठिर  ने  कहा  ---- " गुरुदेव  !  मैंने  सब  जगह  बुरे  आदमी  की  खोज  की  ,  पर  मुझे  कोई  भी  बुरा  आदमी  नहीं  मिला  l   इस  कारण  मैं  खाली   हाथ  लौट  आया   l  "  शिष्यों  ने  पूछा  ---- " गुरुवर  !  ऐसा  क्यों  हुआ  कि   दुर्योधन  को  कोई  अच्छा  आदमी   नहीं मिला    और  युधिष्ठिर  किसी  बुरे  व्यक्ति  को   नहीं   खोज   सके   ? "    आचार्य  द्रोण   बोले  ---- " जो  व्यक्ति  जैसा  होता  है  ,  उसे  सारे  लोग   वैसे  ही   दिखाई  पड़ते  हैं  l   इसलिए  दुर्योधन  को  कोई   अच्छा  व्यक्ति  नहीं  दिखा   और  युधिष्ठिर    को  कोई    बुरा   आदमी नहीं  मिल  सका  l "  वास्तव  में  हमें   संसार वैसा  ही   दिखाई   देता  है  ,  जैसा  हमारा  देखने  का  नजरिया  होता  है   l 

9 January 2021

WISDOM ----- अहंकार एक भ्रम है

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---' अहंकार  व्यक्ति  के  जीवन   को    एक  ऐसे  नशे  में  डुबोता  है   जिसके  कारण  वह  इससे  उबरना  नहीं  चाहता  ,  बल्कि  और  डूबना  चाहता  है   व  डूबता  रहता  है  ,  लेकिन  पाता   कुछ  नहीं   l   व्यक्ति  अपने  अहंकार  को  ही  सर्वोपरि  समझता  है  ,  इस  कारण  वह  दूसरों  के  साथ   अच्छा  व्यवहार  नहीं  कर  पाता ,  वह  उन  पर  अधिकार  जमाना  चाहता  है    और  यह    चाहता  है   कि   सारी   दुनिया  केवल  उसका  ही  गुणगान  करे   और  उसी  के  इशारों  पर  चले   l  '      एक  सत्य  घटना  है  -----   दक्षिण  में   मोरोजी  पंत   नामक एक  बहुत  बड़े  विद्वान्  थे  l   उनको  अपनी  विद्या  का  बहुत  अभिमान  था  l   वे  अपने  समान  किसी  को  भी  विद्वान्   नहीं  मानते  थे    और  सबको  नीचा   दिखाते   रहते  थे   l   एक  दिन  की  बात  है   कि   दोपहर  के  समय    वे  अपने  घर  से   स्नान  करने  के  लिए  नदी  पर  जा  रहे  थे   l   मार्ग  में  एक  पेड़  पर   दो  ब्रह्मराक्षस   बैठे  हुए  थे   l   वे  आपस  में  बातचीत  कर  रहे  थे  l   एक  ब्रह्मराक्षस  बोला ----- "  हम  दोनों  तो    इस  पेड़  की  दो  डालियों   पर  बैठे  हैं  ,  पर  यह  तीसरी  डाली  खाली   है  ,  इस  पर  बैठने  के  लिए  कौन  आएगा   ? "    तो  दूसरा  ब्रह्मराक्षस  बोला  ----- " यह  जो  नीचे   से  जा  रहा  है  न  ,   यह  यहाँ  आकर  बैठेगा   क्योंकि  इसको   अपनी  विद्व्ता  का  बहुत  अभिमान  है   l  "  उन  दोनों  के  संवाद  को  मोरोजी  पंत  ने  सुना  तो  वहीँ  रुक  गए   और  विचार  करने  लगे  कि   हे  भगवान  !   विद्या  के  अभिमान  के  कारण   मुझे  ब्रह्मराक्षस  बनना  पड़ेगा  ,  प्रेतयोनि  में  भटकना  पड़ेगा   l   अपनी  होने  वाली  इस  दुर्गति  से  वे  घबरा  गए   और  मन  ही  मन    संत  ज्ञानेश्वर  के  प्रति  शरणागत   होकर  बोले  ---- "  मैं  आपकी  शरण  में  हूँ  ,  आपके  सिवाय  मुझे  बचाने   वाला  कोई  नहीं  है   l  "  ऐसा  सोचते  हुए  वे  आलंदी  की  ओर   चल  पड़े   और  जीवन  पर्यन्त  वहीँ  रहे  l   आलंदी  वह  स्थान  है  जहाँ  संत  ज्ञानेश्वर  ने  जीवित   समाधि   ली  थी    l   संत  की  शरण  में  जाने  से   उनका  अभिमान  चला  गया   और  वे  भी  संत  बन  गए   l 

WISDOM ------

   गुरुकुल  कांगड़ी  विश्वविद्यालय  की  स्थापना  प्रसिद्ध   संत  स्वामी  श्रद्धानंद   ने  की  थी  l   विश्वविद्यालय  की  स्थापना  से  पूर्व   एक  बार  वे   दिल्ली    के  एक   राय    साहब  के  घर   चंदा  मांगने  पहुंचे   l  उनका  उद्देश्य  था  कि   यदि  एकमुश्त  रकम  मिल  जाती   तो  विश्वविद्यालय   की  इमारतों   को  खड़ा  करने  में   सहयोग  मिलता  ,  पर  राय  साहब  ने   आर्थिक  सहयोग   देने  के  बजाय   उनका  अपमान  कर  के   उन्हें  घर  से  बाहर  निकलवा  दिया  l   स्वामी  श्रद्धानंद   ने  उसी   दिन  प्रण   किया  कि   वह  विश्वविद्यालय    केवल  निजी  प्रयासों  से  खड़ा  करेंगे  l   उन्होंने  हरिद्वार  वापस  लौटकर   अपना  पुश्तैनी  मकान   बेच  दिया   और  उससे  प्राप्त  सम्पति   गुरुकुल  बनाने   के  लिए  दान  कर  दी   l   गुरुकुल  की  स्थापना  होते  ही   उन्होंने  सबसे  पहले   अपने  पुत्र   को  उसमें   दाखिला  दिया  l   स्वामी जी  का  कहना  था   कि ---- " दान  लेने  का   सच्चा  अधिकारी   वही  है  ,  जिसने  पहले  सर्वस्व  दान   दिया  हो   l "  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी   स्वामी  श्रद्धानंद   का  उदाहरण  देते  हुए  कहते  थे  कि ---- "  जनता  का  सहयोग    और  देवताओं  का  अनुग्रह    उन्ही   को  मिलता  है  ,  जिनकी  कथनी   और    करनी  में   भिन्नता   नहीं  होती   l 

8 January 2021

WISDOM -----

   सूफी  संत  अहमद  बहुत  नेक  दिल  इनसान   थे  l   एक  दिन  उनका  पड़ोसी   बहराम  रोता     हुआ   उनके  पास  आया  l   पूछने  पर  पता  चला  कि   जब  वह   सौदे  का   माल   ऊंटों  पर   लादकर    ला  रहा  था  तो  लुटेरों  ने  उसे  रास्ते  में  लूट  लिया  l   वह  इतना  दुःखी   था  कि   आत्महत्या  करने  को  तत्पर  था  l   संत  अहमद  ने  उससे  पूछा  ---- " बहराम  !  जब  तुम  पैदा  हुए  थे  तो  क्या   ये  सारा  धन  तुम  अपने  साथ  लाये  थे  ? "  बहराम  ने  जवाब  दिया  --- "  नहीं ,  धन  तो  परिश्रम  कर  के  बाद  में  कमाया  था  l  "   संत  अहमद  ने  पुन:  पूछा  ---- " क्या  मेहनत  करने  वाले   तुम्हारे  हाथ - पैरों  को  भी  डाकुओं  ने  लूट  लिया   है   ? "  बहराम  ने  उत्तर  दिया  --- " नहीं  मेरे  हाथ - पैर  तो  सही - सलामत  हैं  l "  संत  अहमद  बोले --- "जब  तुम्हारा  मेहनत  करने  वाला   शरीर  सही  - सलामत  है   तो  चिंतित  क्यों  हो  ? "  उनकी  बात  सुनकर  बहराम  के  अंदर  नई  ऊर्जा  का  संचार  हो  गया   और  वह  पुन:  परिश्रम  करने  को  उद्दत  हो  गया  l 

WISDOM ----- चिंतन की उत्कृष्टता जरुरी है

   पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' चिंतन  को  उत्कृष्टता  की  दिशा  न  मिली   तो  बढ़ी  हुई   सम्पति  का   परिणाम ,   विपत्ति  के  अतिरिक्त   और  कुछ  न  होगा  l   बढ़ा  हुआ  शरीरबल   गुंडागर्दी  की ,   बढ़ा  हुआ  धन    व्यसन - व्यभिचार  की  ,  बढ़ा  हुआ  बुद्धिबल    उपद्रव - उत्पातों  की  अभिवृद्धि  करेगा  l   इसका  प्रत्यक्ष   प्रमाण   हम  आज  के  शरीरबल  संपन्न,  धनी - मानी  ,  सत्ताधारी   और  सुशिक्षितों   की  गतिविधियों  को  देखकर  ,  सहज  ही  प्राप्त  कर  सकते  हैं   l  ' आचार्य  श्री    आगे  लिखते  हैं  कि ----- ' वैभव  और  वर्चस्व  का   दुरूपयोग  देखकर    कई   बार  खीज  में  यह  कहना  पड़ता  है   कि   इन  बलवानों ,  धनवानों    और  विद्यावानों  की  अपेक्षा    रुग्ण , निर्धन   एवं   अनपढ़   समाज  के  लिए  कम  हानिकारक  हैं   l  '     पुराण  की   एक कथा  है  -------  असुर   ऋषियों   के  आश्रम  में  तोड़फोड़  करते  ,  उनकी  गायों  को  ले  जाते  ,  कुटिया  में  आग  लगा  देते   ,  अपनी  आसुरी  विद्या  से  तरह - तरह   के  उत्पात   मचाते  l   आचार्य  मुद्गल   ने  असुरों  के  संहार  के  लिए  अपने  एक  शिष्य   जिसका  नाम  था  ' पुष्ठिपर्व  '  को  उपयुक्त  पाया   और  एक  दिन  उसे  एकांत  में   बुलाकर   असुरसंहारकारी  अनेक  विद्याओं  से  विभूषित  किया  l   विद्याएं  प्रदान  करते  हुए  आचार्य  ने  कहा --- ' वत्स  !  मैं  तुम्हें  विशिष्ट  विद्याओं  से  युक्त  करता  हूँ   l  किन्तु  इस  संहारकारी  विद्या  से   केवल  असुरों   और  अवांछित   तत्वों  को  ही  नष्ट  करना  l   निरीह  और  निर्दोष  प्राणी  पर  इनका  प्रयोग  नहीं  करना  l   अन्यथा  ये  प्रयोग  करने  वाले  को  ही  नष्ट  कर  देती  हैं  l "    पुष्ठिपर्व  ने  इन  विद्याओं  से  असुरों  का  नाश  तो  कर  दिया  ,  जो  बचे  थे   वे सब  वहां  से  पलायन  कर  गए  l   इन  शक्तियों  के  प्रयोग  से  उसके  अंदर  अहंकार   आ  गया  l   अहंकार  विवेक  का  नाश   कर देता  है  ,  उचित , अनुचित  का  भेद  समाप्त  हो  जाता  है  l   उसका  अहंकार  इतना  बढ़  गया  कि   कोई  उसके  विरुद्ध  एक  शब्द  भी  बोल  देता   तो  असुरों  के  साथ  वह  उनका  भी  संहार  कर  देता  l  असुरों  के  साथ  अनेक  सामान्य  जन ,  महिलाएं  और  बच्चे  भी  उसके  हाथों  मारे  गए   l   यह  सब  देखकर  आचार्य  मुद्गल  बहुत  क्रोधित  और  चिंतित  हो  गए   हुए  सोचने  लगे   कि    इससे  तो  अच्छा  होता  कि   असुरों  की  विनाशलीला  को  धैर्य पूर्वक  सहन  करते  रहते   l   लेकिन   ऐसा  करने  से  तो   असुरता को    फलने   - फूलने   का अवसर  मिल  जाता  l   उन्होंने  पुष्ठिपर्व   को  पुन:  समझाया  कि   इन  शक्तियों  का  प्रयोग  बहुत  सावधानीपूर्वक  करना  चाहिए  l    अत्याचार और  अन्याय  को   मिटाने    के  लिए    और  उसके  स्थान  पर   सुख  शांति  और  सृजन    करने  के  लिए    ही  ध्वंस   उचित  है  l  इसमें  जरा  सी  चूक  स्वयं  को  ध्वंस  कर  देती  है   l  '