29 November 2020

WISDOM ---

   कोई  कितना   ही सद्गुण  संपन्न  और  सन्मार्ग  पर  चलने  वाला  क्यों   न हो  ,  यदि   वह अत्याचारी  और  अन्यायी  का  साथ  देता  है    तो  वह  उसके   द्वारा  किये  जाने  वाले  पापकर्म  का  साझेदार  हो  जाता  है  ,  फिर   वह ईश्वरीय  दंड   से बच  नहीं  सकता   l   महाभारत  में  कर्ण   का  चरित्र  कुछ  ऐसा  ही  था  --- कर्ण   महारथी  था  ,  महादानी  था   l   यह  जानते  हुए  कि   स्वयं  इंद्र  उसके  कवच - कुण्डल  मांगने  आये  हैं  ,  उसने  अपने  जन्मजात  कवच - कुण्डल  उन्हें  दान  में  दे  दिए  l   विपरीत  परिस्थितियों  में  दुर्योधन  ने  उसकी  मदद  की ,  उसे  सम्मान  दिया  ,  तो  कर्ण   ने  अंतिम  सांस  तक  अपने  मित्र  धर्म  को  निभाया  l   जब  अर्जुन  के  साथ  कर्ण   का  युद्ध  हुआ   तो  कर्ण   के  बाणों  से  अर्जुन  का  रथ  दो - ढाई  गज  पीछे  चला  जाता  था  ,  तब  भगवान   कृष्ण  कहते  वाह  !  कर्ण   वाह  !   वे  अर्जुन  से  कहते  कि   देखो  पार्थ  !   कर्ण   महारथी  है  ,  कितना  वीर  है  ,  उसके  प्रहार  से  तुम्हारा  रथ  कितना  पीछे  खिसक  जाता  है  l   बार - बार  कर्ण   की  प्रशंसा  सुनते  - सुनते  आखिर  अर्जुन  कृष्ण  से   कहने  लगे  ---- " भगवन  !  मेरे  बाणों  के  प्रहार  से  भी  तो  कर्ण   का  रथ  पीछे  चला  जाता  है  ,  पर  इतना  दिल  खोल  कर  आप  मेरी  तारीफ   नहीं  करते  l "  तब  भगवान  कृष्ण  अर्जुन  से  कहते  हैं  --- अर्जुन  !   तीनों  लोकों  का  भार  लेकर  मैं  स्वयं  तुम्हारे  रथ  पर  हूँ ,  रथ  की  ध्वजा  पर  अजेय  और  धर्म  के  प्रतीक  महावीर  हनुमान  हैं  ,  माँ  भगवती  दुर्गा  का  आशीर्वाद  है  तुम्हारे  साथ   l   तुम  स्वयं  सोचो  ,  इतना  बल  है  तुम्हारे  साथ  ,  फिर  भी  कर्ण  के  प्रहार  से  यह  रथ  पीछे   चला जाता  है   और  कर्ण  के  रथ   पर तो  केवल  सारथी  के  रूप  में  शल्य  हैं   और  वह  भी   निरंतर  निंदा  कर  के  उसके  आत्मबल  को   कमजोर कर  रहे  हैं  l   कर्ण  महारथी  है ,   वीर है,  महादानी  है     लेकिन उसने   अत्याचारी  और  अन्यायी  दुर्योधन  का  साथ  दिया  है   l   द्रोपदी  का  चीर -हरण ,  अभिमन्यु  वध  ,  भीम  को  विष  देना  ,  लाक्षागृह  को  जलाना   आदि  अनेक   ऐसे   पापकर्म  किए   जाने  पर  भी  वह  मूक दर्शक  बना  रहा ,  दुर्योधन  का  ही  साथ  दिया  ,  इसलिए  उसकी  पराजय,  उसका  अंत     निश्चित  है   l