25 June 2018

WISDOM ----- गुरु कृपा से अहंकार नष्ट हुआ

     सूखे  से  संकट ग्रस्त  जनता  की  सहायता  के  लिए  शिवाजी  एक  बाँध  बना  रहे  थे  l   मजदूरी  कर  के  सहस्त्रों  व्यक्तियों   का  जीवन- यापन    हो  रहा  था  l   शिवाजी  ने  एक   दिन  यह  देखा  तो  गर्व  से  फूले  न  समाये   कि    वे  ही  इतने  लोगों  को  आजीविका  दे  रहे  हैं  l   यदि  वे  ये  प्रयास  न  करते  तो  उतने  लोगों  को  भूखे  मरना  पड़ता  l 
  समर्थ  गुरु  रामदास  उधर  से  निकले   l  शिवाजी  ने  उनका  सम्मान - सत्कार  किया  और  अपने  उदार   अनुदान  की  गाथा  कह  सुनाई  l  समर्थ  उस  दिन  तो  चुप  हो  गए  ,  पर  जब  दूसरे  दिन  चलने  लगे  तो  शांत  भाव  से   एक  पत्थर  की  ओर  संकेत  कर  के   शिवाजी  से  कहा  ---- "  इस  पत्थर  को  तुड़वा  दो  l " 
 पत्थर  को  तोड़ा  गया  तो  उसके  बीच  एक  गड्ढा  निकला  l  उसमे  पानी  भरा  था   और  एक  मेंढकी  कल्लोल  कर  रही  थी  l
  समर्थ  ने  शिवाजी  से  पूछा ---- " इस  मेंढ़की  के  लिए  संभवतः  तुमने  ही  पत्थर  के  भीतर   यह  जीवन  रक्षा   की  व्यवस्था  की  होगी   ? "
  शिवाजी  का  अहंकार  चूर - चूर  हो  गया   और  वे  समर्थ  गुरु  के  चरणों  में  गिर  पड़े  l  समर्थ  गुरु  रामदास  ने  उन्हें  अपनी  भूमिका  का  बोध  कराया  और  आततायियों  से  संघर्ष  हेतु  नीति  बनाने  के  लिए  बाध्य  किया  l  समर्थ   गुरु  का  मार्गदर्शन   और  कृपा  ही  थी  जिसने  शिवाजी  को   समय - समय  पर   सही  सूत्र  देकर   आपति  से  बचाया  व  श्रेय  पथ  पर   अग्रसर  किया   l