12 May 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ----- " विचारशील  और  सत्तारूढ़  का  पाप    सारे  समाज  को  पापी  बना  देता  है  l   जिनके  ऊपर  समाज  को  दिशा  और  प्रेरणा  देने  का  उत्तरदायित्व  है  ,  उनके  छोटे  से  छोटे  आचरण  भी  शुद्धतम  होने  चाहिए  l "     ' प्रेरणाप्रद  दृष्टांत '  में  एक   दृष्टांत  है  ------   ' राजनर्तकी  मृदाल  के  सौंदर्य   की ख्याति    सारे  उरु   प्रदेश  में  थी  l  उसे  पाने  के  लिए  राजधानी  के  बड़े - बड़े  विद्वानों , सामंतों , राजघरानों  तक  के  लोगों  में  कुचक्र  चल  रहा  था  l   मृदाल  सोच  रही  थी   कि   देश  के  कर्णधार ,  मार्गदर्शक   और  प्रभावशाली  लोग  ही   चरित्र  भ्रष्ट    हो  गए   तो  फिर  सामान्य  प्रजा  का  क्या  होगा   ?  वह  चिंता  में  डूबी  थी , उसी  समय  किसी  ने  दरवाजे  पर   दस्तक  दी   l   मृदाल  ने  दरवाजा  खोला   तो  सामने  खड़े  महाराज  करूष  को  देखते  ही   चौंक  गई    और  असमय  आने  का  कारण  पूछा   l   महाराज  ने  कहा  ---- ' तुम्हारे  रूप  और  सौंदर्य  पर  सारा  उरु   प्रदेश  मुग्ध  है   ,  फिर  मेरे  आने  का  कारण  क्यों  पूछती  हो  ? '    मृदाल  ने  कहा  ---- " महाराज  !   सामान्य  प्रजा  की  बात  छोड़िये  l   आप  इस  देश  के  कर्णधार  हैं  ,  प्रजा  मार्ग -भ्रष्ट  हो  जाये   तो  उसे  सुधारा  जा  सकता  है  ,  पर  यदि  समाज  के  शीर्षस्थ   लोग  ही  चरित्र  भ्रष्ट   हो जाएँ   तो  वह  देश  खोखला  हो  जाता  है  ,  ऐसे  देश , ऐसी  जातियाँ   अपने  अस्तित्व  की  रक्षा  भी  नहीं  कर  पातीं  l   महाराज  !  इसलिए   आपका  इस  समय  यहाँ  आना    अशोभनीय  ही  नहीं  ,  सामाजिक  अपराध  भी  है   l  "                    आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- 'अधिकार  और  अहंकार  मनुष्य  के  दो  प्रबल  शत्रु  हैं  l   वह  जिस  अंत:करण   में  प्रवेश  कर  जाते  हैं  ,  उसमे  उचित   और  अनुचित  के  विचार  की  शक्ति  भी  नहीं  रह  जाती  l  "      मृदाल    के शब्द  महाराज  को  बाण  की  तरह  चुभे   ,  उन्होंने  कहा  --- ' हम  तुम्हारा  उपदेश  सुनने  यहाँ  नहीं  आए   l   तुम   राजनर्तकी  हो   ,  कीमत  मांग  सकती  हो   l "    मृदाल  ने  गंभीरता  से  कहा  ---- " किन्तु  हम  मनुष्य  भी  हैं   और  मनुष्य  होने  के  नाते   समाज  के  हित ,  अहित   की बात  सोचना  भी  हमारा  धर्म  है   l   हम  सत्ता  को  दलित  करके   अपने  देशवासियों  को   मार्ग - भ्रष्ट  करने  का  पाप   अपने  सिर   कदापि    नहीं ले  सकते   l  "     महाराज  के  रौद्र  रूप  को  देखकर   मृदाल  ने  बात  सँभालते  हुए  कहा  ---- ' महाराज  !  आज  से  चौथे  दिन   आप  मुझे  ' चैत्य  सरोवर '   के  निकट  मिलें  l "  निश्चित  दिन  जब  महाराज    चैत्य - विहार '  पहुंचे  ,  तो  वहां  जाकर  उन्होंने  जो  देखा   उससे  उनकी  तृष्णा  और  कामुकता  स्तब्ध  रह  गई  l   मृदाल   का शरीर  तो  वहां  पर  उपस्थित  था  किन्तु  उसमें  जीवन  नहीं  था  ,  उसने  विषपान  कर  लिया  l   एक पत्र  पास  ही  पड़ा  हुआ  था   जिसमे  लिखा  था  --- सौंदर्य  राष्ट्र  के  चरित्र  से  बढ़कर  नहीं  ,  चरित्र  की  रक्षा  के  लिए  सौंदर्य  का  बलिदान  किया  जा  सकता  है  ,  चरित्र  को  वैभव  के  सामने  झुकाया  नहीं  जा  सकता   l '