पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ----- " विचारशील और सत्तारूढ़ का पाप सारे समाज को पापी बना देता है l जिनके ऊपर समाज को दिशा और प्रेरणा देने का उत्तरदायित्व है , उनके छोटे से छोटे आचरण भी शुद्धतम होने चाहिए l " ' प्रेरणाप्रद दृष्टांत ' में एक दृष्टांत है ------ ' राजनर्तकी मृदाल के सौंदर्य की ख्याति सारे उरु प्रदेश में थी l उसे पाने के लिए राजधानी के बड़े - बड़े विद्वानों , सामंतों , राजघरानों तक के लोगों में कुचक्र चल रहा था l मृदाल सोच रही थी कि देश के कर्णधार , मार्गदर्शक और प्रभावशाली लोग ही चरित्र भ्रष्ट हो गए तो फिर सामान्य प्रजा का क्या होगा ? वह चिंता में डूबी थी , उसी समय किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी l मृदाल ने दरवाजा खोला तो सामने खड़े महाराज करूष को देखते ही चौंक गई और असमय आने का कारण पूछा l महाराज ने कहा ---- ' तुम्हारे रूप और सौंदर्य पर सारा उरु प्रदेश मुग्ध है , फिर मेरे आने का कारण क्यों पूछती हो ? ' मृदाल ने कहा ---- " महाराज ! सामान्य प्रजा की बात छोड़िये l आप इस देश के कर्णधार हैं , प्रजा मार्ग -भ्रष्ट हो जाये तो उसे सुधारा जा सकता है , पर यदि समाज के शीर्षस्थ लोग ही चरित्र भ्रष्ट हो जाएँ तो वह देश खोखला हो जाता है , ऐसे देश , ऐसी जातियाँ अपने अस्तित्व की रक्षा भी नहीं कर पातीं l महाराज ! इसलिए आपका इस समय यहाँ आना अशोभनीय ही नहीं , सामाजिक अपराध भी है l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- 'अधिकार और अहंकार मनुष्य के दो प्रबल शत्रु हैं l वह जिस अंत:करण में प्रवेश कर जाते हैं , उसमे उचित और अनुचित के विचार की शक्ति भी नहीं रह जाती l " मृदाल के शब्द महाराज को बाण की तरह चुभे , उन्होंने कहा --- ' हम तुम्हारा उपदेश सुनने यहाँ नहीं आए l तुम राजनर्तकी हो , कीमत मांग सकती हो l " मृदाल ने गंभीरता से कहा ---- " किन्तु हम मनुष्य भी हैं और मनुष्य होने के नाते समाज के हित , अहित की बात सोचना भी हमारा धर्म है l हम सत्ता को दलित करके अपने देशवासियों को मार्ग - भ्रष्ट करने का पाप अपने सिर कदापि नहीं ले सकते l " महाराज के रौद्र रूप को देखकर मृदाल ने बात सँभालते हुए कहा ---- ' महाराज ! आज से चौथे दिन आप मुझे ' चैत्य सरोवर ' के निकट मिलें l " निश्चित दिन जब महाराज चैत्य - विहार ' पहुंचे , तो वहां जाकर उन्होंने जो देखा उससे उनकी तृष्णा और कामुकता स्तब्ध रह गई l मृदाल का शरीर तो वहां पर उपस्थित था किन्तु उसमें जीवन नहीं था , उसने विषपान कर लिया l एक पत्र पास ही पड़ा हुआ था जिसमे लिखा था --- सौंदर्य राष्ट्र के चरित्र से बढ़कर नहीं , चरित्र की रक्षा के लिए सौंदर्य का बलिदान किया जा सकता है , चरित्र को वैभव के सामने झुकाया नहीं जा सकता l '