20 July 2020

WISDOM ----- समय का एक नाम ' काल ' है , इसी से ' महाकाल ' शब्द बना है l

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  --- भौतिक  जगत  में  जिसने  काल  को  पहचान  लिया  और  काल  अर्थात  समय  का  सही - सही    सदुपयोग  करना  सीख  गया ,  तो  समय  की  यह  आराधना  ही    महाकाल  की  उपासना  है   l '
' अखण्ड   ज्योति '  में  प्रकाशित  एक  घटना  है   जो   एक  ऐसे  सूक्ष्म  संसार  की  है   जहाँ  का  टाइम - स्केल  स्थूल  जगत  से  भिन्न  है  ------   '  घटना  हाबड़ा  प. बंगाल  के  प्रसिद्ध   संत   शिव  रामकिंकर  योगत्रयानन्द   के  जीवन  से  संबद्ध   है  ,  उन्हें  पाणिनि  व्याकरण  पर  पतंजलि कृत   महाभाष्य  पढ़ने  की  तीव्र  इच्छा  थी  l  बंगाल  में  उन  दिनों  इसे  पढ़ाने  के  लिए  कोई  विद्वान  नहीं  मिल  सका  l  अत:  महाभाष्य  पढ़ने  के  लिए  वे  बनारस  गए  l  तब  वहां   व्याकरण  आचार्यों  में  पंडित  गोविन्द  शास्त्री  का  बड़ा  नाम  था  l   शिव रामकिंकर   ने  एक  दिन  उनसे   इस  आशय  का  निवेदन  किया  ,  तो  उन्होंने  समय  न  होने  का  बहाना  कहकर  लौटा  दिया   l   दूसरे  दिन  उन्होंने  फिर  निवेदन  किया  , तब  भी   उन्होंने  अवकाश  न  होने  का  बहाना  किया   l
तीसरे  दिन  शिव  रामकिंकर  फिर  उनके  पास  गए    और  उनके   पैर   पकड़  कर  बड़े  दीन    भाव  से   उनसे  समय  निकाल   कर  उन्हें  पढ़ाने  का  निवेदन  किया  ,  किन्तु  आचार्य  क्रुद्ध  हो  गए   और  पैर   झटकते  हुए  उन्हें  वहां  से  चले  जाने  को  कहा  l
  शिव  रामकिंकर जी  इस  अपमान  व  उपेक्षा  से  बहुत  दुःखी   हुए  ,  बिना   खाना  खाये  सो  गए ,  लेकिन  नींद  कहाँ  थी  ,  सोच  रहे  थे  कि  ' मैं   कितना  अभागा  हूँ  l  जिज्ञासा  होने  पर  भी  कोई  ज्ञान - दान  करने  वाला  नहीं  है  l  '  मध्य  रात्रि  को  उनकी  आँख  लग  गई  l   फिर  एक  घंटे  बाद  अचानक  आँख  खुली   तो  देखा  कमरे  में  दिव्य  आलोक  था ,  एक  तेजस्वी   काया   अति  सौम्य  किन्तु  बहुत  वृद्ध  उनके  सामने  थी  ,  उसने  कहा ---- " दुःख  मत  कर  l   किसी  ने  तुम्हे  महाभाष्य  नहीं  पढ़ाया  तो  क्या  हुआ  ?  मैं  पढ़ाऊंगा  l  जा  ग्रन्थ  ले  आ  l  "  शिव  रामकिंकर  जी  ने   उन  महापुरुष  को   साष्टांग  प्रणाम  किया  और   महाभाष्य  ले  आये  l  इसके  बाद  उन  दिव्य  पुरुष  ने  आरम्भ  से  अंत  तक  प्रत्येक  सूत्र  की  विशद   व्याख्या  की   और  ग्रन्थ  जब  समाप्त  हुआ  तब  आशीर्वाद  देकर  चले  गए  l   चेतना  लौटने  पर  शिव  रामकिंकर जी  बहुत  खुश  हुए  और  अपने  भाग्य  को  सराहने  लगे  l   तभी  उन्होंने  दीवार  पर  लगी  घड़ी   में  देखा    तो  आश्चर्य   !   केवल  पंद्रह  मिनट  बीते  थे   l    वह   महाभाष्य   इतना  मोटा  था   कि   पंद्रह  घंटे  में  भी   उसको  पढ़ना  और  समझना  संभव  नहीं  था  l   उन्हें  घोर  आश्चर्य  हुआ   कि   प्रत्येक  सूत्र  की  व्याख्या  उनके  मस्तिष्क  में  है  ,  देव  पुरुष  ने  उन्हें   पूरा  ग्रन्थ  पढ़ाया  लेकिन  इतने  कम  समय  में   यह  अध्यापन  कैसे  संभव  हुआ    ?  इस  उलझन  को   वे  किसी  भी  प्रकार  नहीं  सुलझा  पाए  l
  प्रभु  ईसा ,  महावीर ,   मुहम्मद  साहब    सबने   इस  एक  तथ्य  को  स्वीकार  किया  है   कि   ईश्वर  के  राज्य  में  समय  का  अस्तित्व  नहीं  रहता  l