2 October 2022

WISDOM -----

  मनुष्य  के  व्यक्तित्व  की  पहचान  उसकी  वाणी  से  होती  है  ,  इसे  ही  इस  कथा  में  बताया  गया  है ----  एक  अँधा  संन्यासी  कहीं  जा  रहा  था  l  मार्ग  में  उसे  पता  लगा  कि  राजा  की  सवारी  आने  वाली  है  l  थोड़ी  देर  में  ही  रास्ते  से  दोनों  ओर  लोग  फूलमालाएं  लेकर  खड़े  होने  लगे  l  संन्यासी  की  इच्छा  भी  इस  द्रश्य  का  अनुभव  करने  की  हुई  l  वह  देख  भले  ही  नहीं  सकता  था  ,  लेकिन  सबसे  आगे  निकल  कर  खड़ा  हो  गया   l  राजा  के  रथ  के  आगे  सिपाही , मंत्री  और  दरबारी  चल  रहे  थे  l  सबसे  आगे  बाजा  बजाते  हुए   एक  दल  था  l  कुछ  देर  में  शाही  सवारी  एकदम  करीब  आ  पहुंची  l  तभी  एक  सिपाही  ने  डपटकर  सभी  से  कहा --- " दूर  हटो  ! देख  नहीं  रहे  राजा  की  सवारी  आ  रही  है  l  जवाब  में  संन्यासी  ने  कहा  --- " समझ  गया  सिपाही जी  ! "  मंत्रिमंडल  के  सदस्यों  का  समूह  सामने  आया  तो   उनमें  से  एक  ने  आगे  आकर  कहा  -- " संन्यासी जी  !  जरा  संभल  कर , कहीं  भीड़  में  आप  गिर  न  जाएँ  ? "  संन्यासी  ने  जोर  से  कहा --- " समझ  गया ,  मंत्री जी  ! "   थोड़ी  देर  में  राजा  की  शाही  सवारी  वहां  आ  पहुंची  l  राजा  ने  देखा  कि  एक  तेजस्वी  संन्यासी  राह  में  खड़ा  है  l  उन्होंने  रथ  रुकवाया   और  उतारकर   संन्यासी  के  चरण स्पर्श  कर  विनम्रता  से  कहा  --- " महाराज  !  आपको   इस  भीड़  में  आने  की  क्या  आवश्यकता  थी  l  आदेश  दे  दिया  होता  ,  मैं  ही  आपके  दर्शन  के  लिए  चला  आता  l  "  संन्यासी  ने  इस  बार  भी  जोर  से  कहा  --- " समझ  गया  राजन  ! "   राजा  यह  सुनकर  हैरान  रह  गया  l  उसने  पूछ  ही  लिया  --- " आपने  मुझे  कैसे  पहचाना  महाराज  ? "  संन्यासी  ने  कहा --- " हर  व्यक्ति  की  आवाज  में  उसके  व्यक्तित्व  और  गरिमा  की  झलक  होती  है  l  मैं  देख  तो  नहीं  सकता  ,  लेकिन  तीनों  बार  आवाज  सुनकर  ही  समझ  गया  कि  पहला  डांट -डपट  करने  वाला  व्यक्ति  आपका  सिपाही  था  ,  समझदारी  से  बात  करने  वाला  दूसरा  व्यक्ति  आपका  मंत्री  था   और  तीसरी  बार  सज्जनता  और  विनम्रता  से  बात  करने  वाले  आप  स्वयं  हैं  l "  

WISDOM ----

   लघु -कथा ----  बहुत  पुरानी  बात  है  जब  अरब  देशों  से  व्यापारी  हिंदुस्तान  आते  थे  l  एक  व्यापारी  ने  यहाँ  व्यापर  में  बहुत  धन  कमाया  और  अपने  साथियों  सहित  अपने  देश  लौट  रहा  था  l  रास्ते  में  जंगल  में  एक  संत  का  आश्रम  था , सुन्दर  बगीचा , ठंडा  पानी  --- उसने  संत  से  कुछ  दिन  वहां  रुकने  की  अनुमति  मांगी  l  संत  ने  अनुमति  दे  दी  और  कहा -- यहाँ  आश्रम  में  जितने  भी  पक्षी  आते -जाते  हैं  ,तुम  उन्हें  तंग  नहीं  करना  l  वह  व्यापारी  देखता  था  कि  आश्रम  में  दो -तीन  पिंजरे  हैं  जिनमे  तोते  आदि  के  लिए  दाना -पानी  रखा  है   और  वे  पिंजरे  खुले  हैं  ,  दो  तोते  आते  हैं  , दाना -पानी  ग्रहण  करते  , आपस  में  बहुत  बात  करते , मनुष्य  की  तरह  बोलना  भी  जानते   l  बहुत  प्रसन्न  थे  , जब  चाहे  पिंजरे  में  आते  , जब  चाहे  उड़  जाते  l  संत  के  साथ  रहकर  वे  मन्त्र  आदि  भी  सीख  गए  थे  l   एक  दिन   संत  कहीं  गए  हुए  थे  उसने  मौका  देखकर  एक  तोते  को  पकड़  लिए  और  अपने  साथियों  समेत  अपने  देश  को  चल  दिया  l  संत  के  नाम  एक  पत्र  छोड़  दिया , क्षमा  मांगते  हुए  उसने  लिखा  कि  वह  इस  तोते  को  बहुत  स्नेह  व  प्यार  से  रखेगा  l  अरब  पहुंचकर  उसने  तोते  को  एक  सुन्दर  पिंजरे  में  कैद  कर  दिया  l  वह  तोते  का  बहुत  ध्यान  रखता  , उससे  बातें  करता   लेकिन  पिंजरा  बंद  ही  रखता  था  l खैर !  एक  दो  वर्ष  बाद  उसे  पुन:  व्यापार    के  लिए  हिंदुस्तान  आना  था   उसने  तोते  से  कहा  --मैं  तुम्हारे  देश  जा  रहा  हूँ , अपने  मित्र  के  नाम  कोई  सन्देश  देना  हो  तो  बताओ  l "  तोते  ने  कहा --- " मित्र  से  कहना  --मैं  खुले  आकाश  में  तुमसे  मिलने  का , बातें  करने  का  इंतजार  कर  रहा  हूँ  , कब  और  कैसे  मेरी  यह  इच्छा  पूरी  होगी  ? "    हिंदुस्तान  में  बहुत   दिन  व्यापार  के  बाद  वह  लौटते  हुए  उस  आश्रम  में  गया   l  संयोग  से  उसका  मित्र  तोता  उस  खुले  पिंजरे  में  था  , व्यापारी  ने  उस  तोते  को  उसके  मित्र  का  सन्देश  सुना  दिया  l  सन्देश  सुनते  ही  वह  तोता  प्राणहीन  होकर  गिर  पड़ा  l  व्यापारी  बहुत  डरा  कि  संत  कही  उसे  श्राप  न  दे  दें इसलिए  वह  तुरंत  वहां  से  भागा  और  अपने  देश  पहुंचा  l  तोते  के  लिए  नया  पिंजरा , बहुत  सा  दाना  आदि  बहुत  उपहार  लेकर  आया  l  तोते  ने  पूछा ---- ' मेरे  मित्र  ने  सन्देश  सुनकर  क्या  जवाब  दिया  ? "  व्यापारी  ने  उसे  धैर्य  बंधाते  हुए  कहा  --- "  तुम्हारा  सन्देश  सुनते  ही  वह  मृत  होकर  गिर  पड़ा  l  "  यह  सुनते  ही  वह  तोता  भी  प्राण -हीन  होकर  पिंजरे  में  गिर  पड़ा  l  व्यापारी  ने  अपने  सेवकों  से  कहा --- 'यह  तो  मर  गया , इसे  बाहर  फेंकों  l "  सेवकों  ने  उसे  बाहर  निकाल  कर  जैसे  ही  फेंका  , वह  पंख  फड़फड़ा  कर  ऊपर  पेड़  पर  जा  बैठा   और  कहा --- यही  सन्देश  मेरे  मित्र  का  था  ,  जहाँ  ताकत  से  काम  नहीं  चलता , वहां  बुद्धि  और  विवेक  से  काम  लेना  पड़ता  है  l  "    अब  वह  आजाद  था ,  वहीँ  संत  के  आश्रम  में  दोनों  तोते  प्रसन्न  थे  l