धर्म प्रचार के लिए भगवान बुद्ध परिव्राजकों को विदा कर रहे थे l उन्होंने अपने शिष्य कलंभन से कहा --- ' वत्स ! लोग अज्ञानवश कुरीतियों में जकड़े हुए हैं l जाओ उन्हें जाग्रति का सन्देश दो , इससे बढ़कर कोई और पुण्य नहीं l " कलंभन एक सामान्य आबादी के गाँव पहुंचा l ग्रामीणों ने उसके विश्राम की समुचित व्यवस्था कर दी l रात बहुत शांति से बीती l सुबह जब वह ध्यान - पूजन समाप्त कर बाहर निकला , तब तक द्वार ग्रामवासियों की भीड़ से भर गया था l गांव वालों के चेहरे बहुत मलिन थे , कई लोग बीमार थे , कुपोषण के कारण बच्चों के शरीर सूखे हुए थे , सब ओर गंदगी थी l एक वटवृक्ष के निकट बैठकर कलंभन ने उपदेश देना आरंभ किया l ग्रामीणों को कुछ समझ में नहीं आया l धीरे - धीरे भीड़ छटने लगी l अब उसकी सभा में ग्रामीणों का आना लगभग समाप्त हो गया l इससे वह बड़ा निराश हुआ और उसने भगवान बुद्ध से कहा --- भगवन ! उपदेश कुछ काम न आया l कृपया मार्गदर्शन करें l " भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य सनातन से कहा ---- ' जाओ उस गाँव में शिक्षा व स्वास्थ्य का प्रबंध करो l ' फिर उन्होंने शिष्यों को समझाया ---- ' इस समय ग्रामीणों की आवश्यकता --- शिक्षा और स्वास्थ्य है l अभी उन्हें जीवन की आशा चाहिए l आज जियेंगे तो कल सुनेंगे भी l