बट्रेंड रसेल ने लिखा है ---- " मानव जाति अब तक जीवित रह सकी तो अपने अज्ञान और अक्षमता के कारण ही l यदि ज्ञान व क्षमता मूढ़ता के साथ युक्त हो जाये तो उसके बच रहने की कोई संभावना नहीं l जब तक मनुष्य में ज्ञान के साथ - साथ विवेक का भी विकास नहीं होता , ज्ञान की वृद्धि दुःख की वृद्धि ही साबित होगी l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर बताया है ----- " मानव की समस्याओं का यथार्थ और सार्थक समाधान उसकी अपनी चेतना में है l मानव चेतना को सही और समग्र ढंग से जाने बिना विज्ञान अधूरा है l वह ऐसा ही है कि सारे जगत में तो प्रकाश हो और अपने ही घर में अँधेरा हो l ऐसे अधूरे ज्ञान से और अपनी ही चेतना को न जानने से जीवन दुःख में परिणत हो जाता है l जो मानव चेतना के ज्ञान से विमुख है , वह अधूरा है और इस अधूरेपन से ही दुःख पैदा होते हैं l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ----- विज्ञानं ने अपरिमित्तम शक्तियां मानव को दी हैं , पर उससे शक्ति आई , शांति नहीं शांति पदार्थ को नहीं चेतना को जानने से आती है l जिन्होंने मात्र विज्ञानं की खोज की है वे शक्तिशाली तो हो गए , पर अशांत हैं और जिन्होंने मात्र अध्यात्म का अनुसन्धान किया वे शांत तो हो गए , पर लौकिक दृष्टि से अशांत और दरिद्र हैं l " आचार्य श्री लिखते हैं --- मैं शक्ति और शांति को अखंडित रूप से चाहता हूँ l मैं विज्ञानं और अध्यात्म में समन्वय चाहता हूँ l मनुष्य न तो मात्र शरीर है और न मात्र आत्मा ही l वह दोनों का सम्मिलन है l इसलिए उसका जीवन किसी एक पर आधारित हो , तो वह अधूरा हो जाता है l इस अधूरेपन को पूरा करना ही युग - धर्म है l