एक राजा अत्यंत दयालु एवं धर्मात्मा था , किन्तु उसका पुत्र अत्यंत दुष्ट स्वभाव का था l राजा ने उसे सुधारने का बहुत प्रयत्न किया , परन्तु सारे प्रयत्न विफल ही सिद्ध हुए l सभी उससे परेशान रहते थे l कुलगुरु को जब इस सन्दर्भ में ज्ञात हुआ तो वे राजकुमार से मिलने गए l वे उसे राजभवन में घुमाते हुए एक नीम के वृक्ष के पास ले गए और उसका एक पत्ता तोड़कर राजकुमार को चखने को दिया l पत्ता चखने पर राजकुमार का मुंह कडुआहट से भर गया l उसने कुलगुरु से तो कुछ नहीं कहा , परन्तु उसने क्रोधित होते हुए सेवकों को बुलवाकर उन्हें आदेश दिया कि वे उस पेड़ को जड़ से उखाड़ डालें l
कुलगुरु ने पूछा ---- " उसने ऐसा क्यों किया ? " राजकुमार ने उत्तर दिया ---- " गुरुवर ! यह पेड़ इतना कडुआ है , इसका कडुआपन अनेकों तक पहुँचता , इसलिए मैंने इसे सदा के लिए नष्ट कर दिया l कुलगुरु बोले ---- वत्स ! जो प्रजा तुम्हारे व्यवहार के कड़वे पन से दुःखी है , यदि वह भी प्रत्युत्तर में ऐसा ही व्यवहार तुम्हारे साथ करे तो तुम्हे कैसा लगेगा ? " राजकुमार को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने अपना व्यवहार सदा के लिए बदल दिया l
कुलगुरु ने पूछा ---- " उसने ऐसा क्यों किया ? " राजकुमार ने उत्तर दिया ---- " गुरुवर ! यह पेड़ इतना कडुआ है , इसका कडुआपन अनेकों तक पहुँचता , इसलिए मैंने इसे सदा के लिए नष्ट कर दिया l कुलगुरु बोले ---- वत्स ! जो प्रजा तुम्हारे व्यवहार के कड़वे पन से दुःखी है , यदि वह भी प्रत्युत्तर में ऐसा ही व्यवहार तुम्हारे साथ करे तो तुम्हे कैसा लगेगा ? " राजकुमार को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने अपना व्यवहार सदा के लिए बदल दिया l